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ट्रिपल तलाक : ‘शरीअत क़ानून में बदलाव की सख्त ज़रुरत’ – तरन्नुम सिद्दीक़ी

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दिल्ली:‘ट्रिपल तलाक़’ यानी तीन तलाक का मुद्दा इन दिनों काफी चर्चा में है. जहां एक तरफ़ कुछ महिलाएं इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव चाहती हैं, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने संशोधन से इंकार कर दिया है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सरोजिनी नायडू सेन्टर फॉर विमेन्स स्टडीज़ की विधिक व जेंडर एक्सपर्ट तरन्नुम सिद्दीक़ी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इस इंकार को ग़लत बताती हैं.

Tarannum Siddiquee

हमसे बातचीत में तरन्नुम कहती हैं, ‘जो व्यवस्था मौजूदा समय में पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वीकारी है, वह क़ुरआन और इस्लाम के नज़रिये से पूरी तरह मेल नहीं खाती है, क्योंकि ये क़ुरआन और सुन्नत के मुताबिक़ नहीं है.’

वो बताती हैं कि 20 से अधिक देशों ने शरीअत में बदलाव लाकर ट्रिपल तलाक़ को बैन कर दिया है. हमारे देश भारत में भी शरीअत क़ानून में बदलाव की ज़रूरत है.

तरन्नुम सिद्दीक़ी बताती हैं, ‘इस्लाम में तलाक़ शब्द को अल्लाह के नज़दीक सबसे बुरे लफ़्ज़ों में से माना जाता है. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के समय ऐसे मसलों पर खुद हमारे पैग़म्बर बैठकर हल निकालते थे.’

वह आगे बताती हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी ‘ट्रिपल तलाक़’ को ‘तलाक़ बिद्दत’ कहा गया है और इस तलाक़ को सबसे बुरा माना गया है.

ऐतिहासिक नज़रिए से तरन्नुम कहती हैं, ‘अगर हम इतिहास में जाकर देखें तो पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के समय अगर कोई शख्स तीन बार तलाक़ देता या कहता था तो उसे एक समझा जाता था और वही प्रक्रिया अपनाई जाती थी, जो ‘तलाक़ अल-अहसन’ में अपनाई जाती है.’

इस सन्दर्भ में वे आगे बताती हैं, ‘इसका ज़िक्र क़ुरआन के सूरह अल-बक़र और सूरह अल-तलाक़ में भी मिलता है. यही प्रक्रिया आगे चलकर ख़लीफ़ा हज़रत अबू बकर के समय भी अपनायी गयी. इसके बाद ख़लीफ़ा हज़रत उमर में शासनकाल में दो साल यही तरीक़ा अपनाया गया, उसके बाद इसमें थोड़ा बदलाव करके ट्रिपल तलाक़ को तलाक़ मान लिया गया. लेकिन बाद में फिर से इस बात पर बहस कर वापस क़ुरआन व सुन्नत को ही अपनाया गया.’

तरन्नुम कहती हैं कि अब शरीअत क़ानून में बदलाव की सख्त ज़रूरत है. इस्लामिक विद्वानों को इस मसले पर क़ुरआन व सुन्नत के हवाले से देखकर संशोधन के बारे में सोचना चाहिए.

बताते चलें कि तरन्नुम सिद्दीक़ी इन दिनों मुस्लिम पर्सनल लॉ रिफ़ॉर्म पर शोध कर रही हैं. इससे पूर्व वे ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिख चुकी हैं.

हाल ही में उत्तराखंड की महिला सायरा बानो के सुप्रीम कोर्ट जाने और कुछ महिलाओं के तलाक़ के मामले सामने आने के बाद से ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे को लेकर बहस तेज़ हो गई है. कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सरकार का रूख जानने के लिए नोटिस जारी किया था. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार पर धार्मिक मामले में दख़ल देने का आरोप लगाते हुए कहा था कि तलाक़ के मुद्दे पर कोई बदलाव नहीं होगा, क्योंकि वह शरीयत के दायरे से बाहर नहीं जा सकता.

वहीं मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ (बीएमएमए) ने हाल ही में ट्रिपल तलाक़ की व्यवस्था को ख़त्म करने की मांग को लेकर देशभर से 50,000 से अधिक महिलाओं के हस्ताक्षर लिए और राष्ट्रीय महिला आयोग से इस मामले में मदद मांगी है.