Home India News मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय लगभग तय

मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय लगभग तय

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी ‘कौमी एकता दल’ का समाजवादी पार्टी में मिलने के आशाएं दिख रही हैं. हो न हो, इस खबर के साथ उत्तर प्रदेश की सियासी राजनीति में बड़े फेरबदल की तरह देखा जा रहा है.

दल ने शनिवार को यह साफ संकेत दिए. मुहम्मदाबाद स्थित अंसारी स्कूल में दल की शाम को बहुप्रतीक्षित बैठक हुई. इस बैठक में दल के राष्ट्रीय, प्रदेश सहित कई जिलों के पदाधिकारियों ने शिरकत की. सभी इस बात से लगभग सहमत हुए कि वक्त का तकाजा है कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए सारे राग-द्वेष भुला कर लामबंद हुआ जाए. वक्ताओं ने कहा कि सपा ही ऐसी पार्टी है, जो सांप्रदायिक ताकतों को करारा जवाब दे सकती है. समाजवादी पार्टी की मजबूती के लिए उसका साथ दिया जाए.


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बैठक में इस बात में मंथन होता रहा कि पार्टी से समझौता किया जाए या पार्टी में विलय कर लिया जाए. दल के पदाधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया कि बतौर किराएदार रहना ठीक नहीं, विलय का फैसला ही ज्यादा मुफ़ीद होगा. बाहुबली डॉन मुख्तार अंसारी के छोटे भाई अफजाल अंसारी ने बिहार की राजनीति का हवाला देते हुए साफ़ कहा कि जिस तरह बिहार में लालू-नीतिश अपने मतभेद भुलाते हुए साथ आए, वैसे ही हमें भी साथ आना होगा.

हालांकि इस फैसले पर अभी सपा की ओर से फाइनल मुहर लगना बाकी है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि सपा यह महज़ एक औपचारिकता भर है. प्रदेश में पहले से अल्पसंख्यकों के मन में सपा की नीयत को लेकर सवाल उठते रहे हैं ऐसे में कौमी एकता दल का सपा में विलय हर लिहाज़ से सपा के लिए एक अच्छी खबर है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और मऊ में अच्छी पकड़ रखने वाला कौमी एकता दल पूर्वांचल की राजनीति में गहरा रखा है. पूर्वांचल के अल्पसंख्यक समुदाय के बीच कौमी एकता दल का ओहदा बढ़ा हुआ है. इसके पहले भी 2014 के लोकसभा चुनावों में कौमी एकता दल ने अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा न होने देने के लिए अपना कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा करने का निर्णय लिया था. ऐसा इसलिए किया गया था कि उस समय बनारस से नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ रहे थे.

हाल में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के एक और प्रमुख दल भारतीय समाज पार्टी(भासपा) से गठबंधन करके मायावती की पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी(बसपा) को तगड़ा झटका दिया है. प्रदेश में बसपा के बाद भासपा के पास अच्छा दलित वोट बैंक है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि कौमी एकता दल से गठबंधन करके सपा ने अल्पसंख्यक वोटों को साधा ही है और साथ में भाजपा को तगड़ा जवाब भी दिया है.