अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
कैराना(उत्तर प्रदेश): कैराना से पलायन करने वालों की सूची जारी करने वाले सांसद हुकूम सिंह बेहतर जीवन की तलाश में खुद भी कैराना से पलायन कर चुके हैं. लेकिन उन्होंने जो सूची तैयार की है, उसमें उन्होंने अपना नाम नहीं लिखा.
जी हां! कैराना से पलायन की सूची बनाने वाले हुकूम सिंह खुद पलायन के आरोपों से घिरे हुए हैं. कैराना के लोगों का आरोप है कि हुकुम सिंह खुद कैराना से तीन दशक पहले पलायन कर चुके हैं. कैराना छोड़कर हुकूम सिंह का पूरा परिवार मुज़फ़्फ़रनगर में जा बसा था.
शामली वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन व कैराना के नामित सभासद फ़रहत ख़ान बताते हैं, ‘मुझे अफ़सोस इस बात का है कि बाबू हुकूम सिंह जी ने कैराना से पलायन करने वालों की जो सूची मीडिया और शासन-प्रशासन को दी है, उसमें उन्होंने सबसे ऊपर अपना नाम क्यों नहीं लिखा?’
फ़रहत के मुताबिक़ हुकूम सिंह आज से तक़रीबन 35 साल पहले कैराना से पलायन करके मुज़फ़्फ़रनगर के हिन्दूबहुल इलाके गांधी कॉलोनी में जा बसे थे. आज से 6 साल पहले 2010 में वहां उनके परिवार के साथ एक बेहद दुखद घटना घटी. उनकी पत्नी को बदमाशों ने घर में घुसकर मार दिया था. उसके बाद फिर से बाबू हुकूम सिंह जी ने कैराना को ही सबसे सुरक्षित जगह माना और मुज़फ़्फ़रनगर को छोड़कर वापस कैराना चले आए और आज शहर से थोड़ा अलग हटकर सुनसान इलाक़े में भयमुक्त होकर रह रहे हैं.
कैराना के लोगों का यह भी कहना है कि उनकी पत्नी के क़त्ल में किसी ‘दूसरे समुदाय’ का हाथ नहीं था. अन्यथा हुकूम सिंह अवसाद के इस घटना को भी सियासी मोड़ दे सकते थे.
इस संबंध में सांसद हुकूम सिंह से बात करने पर वे बताते हैं, ‘कैराना में हमारा पुश्तैनी मकान है. लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर उस समय जिला था. बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में हम वहीं चले गए. वहां बच्चों की एजुकेशन थी. मैं भी वहां रहकर प्रैक्टिस कर रहा था.’
वे बताते हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर में ही उनकी धर्मपत्नी को गुंडों ने मार दिया था.
बताते चलें कि कैराना में गुंडागर्दी और रंगदारी के पीछे सियासी हाथ की बात सामने आ रही है. कैराना के लोगों का आरोप है कि बाबू हुकूम सिंह खुद गुंडों और असामाजिक तत्त्वों को पनाह देते हैं.
आरोप लगाने वाले तो कैराना के गैंगेस्टर मुक़ीम काला के सिर पर भी हुकूम सिंह का हाथ होने की बात करते हैं. यहां के लोगों के मुताबिक़ हुकूम सिंह ने कभी भी मुक़ीम काला के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग नहीं की और न ही इसे कभी मुद्दा बनाया.
कैराना की लोगों की मानें तो असली मुद्दे से ध्यान हटाकर हुकूम सिंह जी अपराध व रंगदारी की असल कहानी को हिन्दू-मुसलमान के बीच के फ़साद की ओर ले गए. ये सोची-समझी साज़िश है, जिसका अंजाम बेहद खतरनाक हो सकता है.
कैराना के लोग बताते हैं कि हुकूम सिंह का मुज़फ़्फ़रनगर की ओर पलायन महज़ एक भौतिक पलायन था, क्योंकि सियासी रूप से उनके पैर कैराना में मज़बूत बने रहे. अब तक वे सदभाव के नाम पर वोट मांगते रहे और इस सदभाव के नाम पर जाटों और मुसलमानों ने उन्होंने दिल खोलकर वोट दिया, लेकिन यहां भाजपा की सियासी चाल बदली है. अब उन्हें सिर्फ़ कैराना का वोट नहीं चाहिए, बल्कि वोटों की ज़रूरत पूरे उत्तर प्रदेश में है, जहां के चुनिंदा हिस्सों में भाजपा फिलहाल काफी कमज़ोर नज़र आ रही है.