अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
दिल्ली: लगता है कि सरकार और सर्वे एजेंसियों के लिए मुस्लिम तबकों के बच्चों की पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं है. सरकारें ही क्यों, मिल्ली तंजीमों ने भी मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई पर अंकुश लगाने का काम किया है. एक सर्वे के मुताबिक़ दिल्ली में 6 से 13 साल तक के उम्र के लगभग 85 हज़ार बच्चे स्कूली शिक्षा नहीं पा रहे हैं. इस संख्या का तकरीबन 62 फीसदी हिस्सा मुस्लिम बच्चों का है.
यह आंकड़ें न सिर्फ़ चौंकाने वाले हैं, बल्कि देश के मुस्लिमों की शैक्षिक बदहाली का सच बताने के लिए भी काफी हैं.
यह आंकड़ें पिछले महीने राज्यसभा में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने पेश किए. इन आंकड़ों को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सांसद केके रागेश द्वारा पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में दिया गया था.
साल 2014 में आईएमआरबी नामक संस्था द्वारा किए गए सर्वे से यह बात सामने आई है कि दिल्ली में कुल 85084 बच्चे स्कूल से दूर हैं, इस संख्या में लगभग 52138 बच्चे मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.
इस सर्वे की तह में जाकर तहक़ीक़ात करने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएं. हमें पता चला कि इस सर्वे से उन मदरसों व मकतबों को अलग रखा गया, जिसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा दी जाती है और जो सरकार से अधिकृत नहीं हैं. साथ ही बालवाड़ी, आंगनवाड़ी और उन संस्कृत पाठशालाओं को भी अलग रखा गया, जहां गणित व दूसरी भाषाओं को नहीं पढ़ाया जाता.
बताते चलें कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के एक सर्वे के अनुसार दिल्ली में कुल 446 मदरसे हैं (इस संख्या के इससे अधिक होने की भी संभावना है), जो सरकार से संबद्धित नहीं है. सर्वे में यह भी बताया गया है कि दिल्ली के 417 मदरसों में कुल 50540 बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं. लेकिन सरकार से अधिकृत न होने की सूरत में इनमें पढ़ने वाले 6 से 13 साल की उम्र तक के बच्चों को आउट ऑफ स्कूल यानी स्कूल से दूर माना है.
भारत में मुस्लिम समुदाय में तालीम को लेकर एक चुनौती हमेशा से बरकरार रही है. मदरसों को लेकर कई तरह की मौलिक चुनौतियां भी सामने आती रही हैं. वहीँ दूसरी तरफ़ देश की राजधानी दिल्ली में मदरसा बोर्ड न होने की वजह से यहां के मदरसे अधिकृत नहीं हैं. इसका सीधा-सीधा खामियाजा इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों और यहां तालीम बांटने वाले टीचरों को उठाना पड़ रहा है.
दिल्ली में मदरसा बोर्ड का न होना एक बड़ी समस्या है. मदरसा बोर्ड स्थापित करने के लिए पहले प्रयास भी हुए हैं, लेकिन कई संगठनों के विरोध के चलते स्थापना नहीं हो सकी. एक ख़बर के मुताबिक़ फरवरी 2012 में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार मदरसा बोर्ड के गठन का प्रस्ताव लेकर सामने आई थी, लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत और कुछ अन्य मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था, जिससे बोर्ड के गठन का सारा मामला खटाई में चला गया. हक़ीक़त तो यह है कि दिल्ली में यदि मदरसा बोर्ड नहीं है तो इसके लिए दिल्ली सरकार से अधिक ज़िम्मेदार दिल्ली की कुछ मिल्ली तंजीमें हैं.
साल 2013 में फिर से मदरसा बोर्ड के गठन की कोशिश शुरू हुई. 2013 के जुलाई महीने में दिल्ली में मदरसा बोर्ड के गठन के लिए ‘गरीब नवाज़ फाउंडेशन’ ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. कोर्ट ने भी सरकार को ही आदेश दिया कि इस मामले में वो पहल करे. लेकिन बावजूद इसके दिल्ली के मदरसे आज भी एक अदद मदरसा बोर्ड के लिए तरस रहे हैं. और जब तक दिल्ली में मदरसा बोर्ड नहीं है, न तो इन मदरसों के पाठ्यक्रमों की कोई मान्यता है और न ही सरकारी इमदाद का कोई इंतज़ाम. ऐसे में मदरसा बोर्ड के इस राजनीति का सीधा नुक़सान मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों व पढ़ाने वाले शिक्षकों को उठाना पड़ रहा है.