अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना:बिहार की राजधानी में मुसहर जाति के लोग इन दिनों भारी संकट में हैं. मुसहरों की जमीन पर एक बिल्डर की बुरी नज़र है. रोज़ी-रोटी को तरसते ये लोग पीढ़ियों से इस ज़मीन पर रहते आ रहे हैं. इनके पास जमीन के ज़रूरी दस्तावेज़ भी हैं और अपनी रिहाईश के पक्के सबूत भी. मगर इन लोगों का कहना है कि शहर का एक बड़ा बिल्डर रामप्रसाद यादव फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे इन्हें इनकी ही ज़मीनों से बेदख़ल करने पर तुला हुआ है.
दरअसल, यह मामला पटना के प्रसिद्ध बेली रोड पर स्थित जगदेव पथ के निकट बसे मुहसर टोला बस्ती का है. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्राईम लोकेशन पर होने की वजह से बिल्डरों की नज़र हमेशा से इस बस्ती पर रही है. स्थानीय लोगों की मानें तो ज़मीन के इस खेल में पिछले दो सालों में मुहसर जाति के 6 लोगों की जान जा चुकी है. मुसहरों की इन मौतों का सिलसिला भी बेहद ख़ौफ़नाक है. किसी को दिनदहाड़े गोली मार दी गई तो किसी को रात के साये में ट्रैक्टर के नीचे कुचलकर ख़त्म कर दिया गया.
इस इलाक़े में रहने वाले 38 साल के पप्पू कुमार बताते हैं, ‘मेरे दादा-परदादा यहीं रहते आए हैं. 1989 में इंदिरा आवास योजना के तहत यहां 100 घर भी बनाए गए. हमारे पास ज़मीन के सारे कागज़ात मौजूद हैं. लेकिन बिल्डरों की नज़र हमारे ज़मीन पर हमेशा से रही है.’
वो बताते हैं कि पुलिस-प्रशासन भी हमेशा बिल्डरों के ही साथ रहा है. प्रशासन ने कहा था कि उन्हें इस ज़मीन के बदले पास के क़ब्रिस्तान में ज़मीन दी जाएगी लेकिन अब वो ज़मीन भी बिल्डरों के क़ब्ज़े में है.
स्पष्ट रहे कि क़ब्रिस्तान की इस ज़मीन को लेकर जून, 2014 में मुसहर समाज के इन लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था. इनका आरोप है कि उस समय बिल्डरों ने भुट्टी देवी को सबके सामने गोली मार दी थी.
जब हम सिद्धार्थ नगर उस क़ब्रिस्तान को देखने पहुंचे तो वहां क़ब्रिस्तान के नाम पर कुछ भी नहीं था. कंपाउंड के अंदर कुछ काम भी चल रहा था. लोगों से बात करने वहां के स्थानीय लोगों ने इस बारे में कुछ भी बताने से साफ़ इंकार कर दिया. बल्कि वहां मौजूद एक-दो लोगों ने फोटो लेने पर हमारा विरोध भी किया. मुसहर टोला के एक स्थानीय निवासी के मुताबिक़ बिल्डर के आदमी थे.
इस संबंध में पूछताछ करने और शिकायत दर्ज कराने हम यहां मौजूद शास्त्रीनगर थाने भी गए, लेकिन वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने थानाध्यक्ष के छुट्टी पर जाने की बात बताई. पुलिसकर्मियों ने इस क़ब्रिस्तान के संबंध में पूछे जाने पर अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की. थानाध्यक्ष ने फोन पर बताया कि यह मामला दूसरे थानाक्षेत्र के अंतर्गत आता है.
यहां रहने वाली 32 साल की मालती देवी बताती हैं, ‘प्रशासन भी बिल्डरों के साथ मिला हुआ है. उन्हें यहां से ज़बरदस्ती निकाला जा रहा है. बिल्डरों की बात दूर, खुद प्रशासन के लोग यहां के लोगों को बरगला कर निकालने के लिए लगे हुए है. उन्होंने हमें यहां से निकालने के लिए झूठ का सहारा लिया. कहा गया कि आप लोगों को क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर बसाया जाएगा, लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो पहले से ही बिल्डरों ने उस ज़मीन को भी अपने क़ब्ज़े में ले रखा था.’
दौलत देवी भी अपने घर के कागज़ात दिखाते हुए बताती हैं,‘हमारे पास घर के तमाम कागज़ात हैं. बावजूद इसके हमें लगातार धमकी दी जा रही है. हमारे 6 लोगों को मार दिया गया. आगे भी मारने की धमकी दी जा रही है. हमारे कई मर्दों के पुलिस बार-बार जेल में डाल देती है ताकि हम औरतों को निकालने में आसानी हो.’
34 साल के राजू बताते हैं, ‘इस संबंध में हम लोगों ने हर जगह शिकायत की है. हमारी ही बिरादरी के जीतन राम मांझी जब मुख्यमंत्री थे, तब हम लोगों ने जाकर मुलाक़ात भी की, लेकिन उनका आश्वासन भी झूठा ही निकला.’
इस संबंध में बिहार महादलित आयोग के चेयरमैन डॉ. हुलेश मांझी बताते हैं, ‘मुझे भी इस संबंध में वहां के स्थानीय लोगों ने शिकायतपत्र दिया था. शिकायत मिलते ही मैंने इस इलाक़े का दौरा किया. वहां के डीएम व संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को कार्रवाई करने को बोला, लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई है.’
वे बताते हैं, ‘इस बस्ती में क़रीब 100 घर हैं, जिनमें क़रीब 150 परिवार बसते हैं. लालू राज में इन्हें पर्चा दिया गया था. सरकारी योजना के तहत इनके आवास बने हैं. लेकिन प्राईम लोकेशन पर होने की वजह से बिल्डर किसी भी हालत में इन्हें यहां से निकालना चाहते हैं.’
हुलेश मांझी जी भी जानकारी है कि इस मामले में अब तक 6 लोगों को जान से मारा जा चुका है. कई लोगों के हाथ-पैर तोड़ डाले गए हैं. वे आश्वासन देते हैं, ‘मैं इस संबंध में जल्द ही मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जी से मुलाक़ात करूंगा, ताकि इस संबंध में उचित कार्रवाई किया जा सके.’
वहीं इस इलाक़े में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सविता अली बताती हैं, ‘यह सब कुछ प्रशासनिक मिलीभगत से ही हो रहा है. पटना के एक पॉश इलाक़े के बग़ल में होने के बावजूद यह बस्ती हर बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. गंदगी इतनी अधिक है कि लोगों में कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं और उन बीमारियों की वजह से लोग मर रहे हैं. अब तक एक दर्जन से अधिक बच्चे अनाथ हो गए हैं.’
सविता पूछती हैं कि विकास का दावा करने वाली सरकार इस बस्ती की अनदेखी क्या सिर्फ़ इसलिए कर रही है कि यह दलित बस्ती है?
हद तो यह है कि बेहद दहशत और डर के साये में जी रहे ये ग़रीब लोग अधिकारी से लेकर नेता तक हर किसी का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं, मगर व्यवस्था का ‘चाबुक’ हर बार इनके ही पीठ पर पड़ता है.
स्पष्ट रहे कि पिछले दिनों अप्रैल महीने की 5 तारीख़ को इस बस्ती के कुछ लोग सड़क किनारे सो रहे थे, तभी रात के क़रीब 2 बजे बालू से लदे एक ट्रैक्टर ने चार लोगों को कुचल दिया. इस घटना में कारू मांझी, कनौली मांझी और जीतू मांझी की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं फेकन मांझी गंभीर रूप से घायल हैं, जिनका इलाज अभी चल रहा है.
इस घटना को जहां प्रशासन एक सड़क दुर्घटना मान रहा है, वहीँ स्थानीय लोग इसे बिल्डर वाले मामले के साथ जोड़कर देख रहे हैं. क्योंकि उनका कहना है कि दो दिन पहले उन्हें बिल्डर ने ऐसी धमकी दे डाली थी.
अजीब तथ्य यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार इन्हीं दलितों का वोट लेकर गद्दी पर आसीन हैं और उन्हीं के राज में मुहसर जाति के लोग अब लाचार होकर घूम रहे हैं. इन पर कभी भी बिल्डर के आतंक का साया गहराता जा रहा है. अपनी ज़मीन छिनने के बाद क्या होगा? ये सवाल इनकी आंखों में खौफ़ बनकर तैरता है. दिक्कत इस बात की है कि इस ख़ौफ़ का न तो इलाज है और न ही दूर-दूर तक इलाज की कोई संभावना ही नज़र आती है.