Home India News भारतीय संविधान दुनिया के बेहतरीन संविधान में से एक -जस्टिस ए.एम.अहमदी

भारतीय संविधान दुनिया के बेहतरीन संविधान में से एक -जस्टिस ए.एम.अहमदी

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नई दिल्ली : ‘‘संविधान सभा के सम्मानित सदस्य बहुत समझदार और खुले विचारों के थे, जिन्होंने अनुच्छेद -32 को शामिल करके भारत के सभी नागरिकों के मूल अधिकारों को सुनिश्चित किया. यह वही अनुच्छेद है जिसे भविष्य की कोई भी सरकार संविधान में संशोधन करके बदल नहीं सकती.’’

यह विचार शनिवार यानी 5 अक्टूबर को इन्स्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ (आई.ओ.एस.) की 30वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘भारत के वर्तमान संदर्भ में समानता, न्याय और भाईचारे की ओर एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण शिक्षा द्वारा’ विषय पर कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक समारोह में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. एम. अहमदी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में व्यक्त किया.

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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केशवानन्द भारती बनाम स्टेट के ऐतिहासिक निर्णय में यह निर्णय दिया था कि संविधान में दिए गए मूल अधिकारों को संविधान में संशोधन करके भी बदला नहीं जा सकता, क्योंकि यह उसका मूल तत्व हैं.

उन्होंने क़ानून की शिक्षा हासिल कर रहे युवाओं से कहा कि वे भारतीय संविधान का गहन अध्ययन करें ताकि विश्व के बेहतरीन संविधानों में से एक भारतीय संविधान की व्यापकता का अंदाजा हो सके.

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद -32 संविधान के खण्ड 4 का एक भाग है, लेकिन इसकी महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह मूल अधिकारों की गारण्टी देता है. शिक्षा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा से दिमाग खुलते हैं. हमारे संविधान में भी शिक्षा का अधिकार दिया है जिसके तहत यह उम्मीद की गई थी कि संविधान लागू होने के 10 साल बाद शिक्षा के क्षेत्र में काफी पहल होगी. लेकिन, इतने वर्षों के बाद भी आज हम दूसरों के मुक़ाबले काफी पीछे हैं.

उन्होंने बताया कि मुख्य न्यायाधीश रहते हुए विभिन्न मुख्यमंत्रियों को नए शैक्षिक संस्थान खोलने का सुझाव दिया था जिस पर कुछ राज्यों ने अमल भी किया. इसी के तहत नालसार युनिवर्सिटी, बैंगलोर की स्थापना हुई. इसी के बाद 6 से 14 साल के बच्चों के लिए भी मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की गई.

उन्होंने विशेषकर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं से कहा कि वे अपने समुदाय को इस बात के लिए राजी करें कि वे अपने बच्चों को तालीम दिलाएं. अनुच्छेद -14 के तहत दिए गए ‘समानता का अधिकार’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में आई.ओ.एस. बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. वे इस विषय पर सभी सामग्री एकत्रित करके इस पर अनुसंधान कराकर उसके निर्णयों को अवाम तक पहुंचा सकें.

समारोह का उद्घाटन करते हुए पूर्व केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री के. रहमान ख़ान ने कहा कि भाईचारा और समानता दो ऐसे विषय हैं, जिन पर विस्तृत चर्चा की ज़रूरत है. आज प्रेस आज़ाद नहीं है और आज़ाद प्रेस के सामने बहुत बड़ा ख़तरा है. सच बात कहने वाले को देशद्रोही कहा जाता है. अफ़सोस तो इस बात का है कि न्यायपालिका का भी एक हिस्सा न्याय के प्रति तटस्थ दिखाई नहीं देता है. इस संदर्भ में कर्नाटक हाईकोर्ट का हाल में दिया गया फैसला कि टीपू सुल्तान की जन्मतिथि इसलिए नहीं मनाई जा सकती क्योंकि वे एक शासक थे. जबकि सच्चाई यह है कि सभी शासकों के जन्म तिथियों पर बड़े बड़े समारोह आयोजित किए जाते हैं.

आई.ओ.एस. चेयरमैन डॉ. मो. मंज़ूर आलम ने अपने भाषण में कहा कि आई.ओ.एस. की इस 30 वर्षीय यात्रा में हमने मुसलमानों के साथ-साथ हाशिए पर पहुँच गए लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं पर भी काम किया है.

उन्होंने कहा कि जब आई.ओ.एस. की स्थापना हुई थी तो तब उसका विरोध भी हुआ. लेकिन संतोषजनक बात यह रही कि सभी न्यायप्रिय ग़ैर मुस्लिमों ने इस काम में हमारा साथ दिया. युवाओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे भविष्य को समझें और वर्तमान हालात से मायूस न हों बल्कि उसके लिए चिन्तित रहें.

पूर्व केन्द्रीय संचार मंत्री, डॉ. शकील अहमद ने कहा कि हम अपने देश में शायद इस्लामी शिक्षा से काफी दूर हो गए हैं जबकि मस्जिदों में नमाज में भी संख्या बढ़ी है, लेकिन व्यवहार से काफी दूर हैं. हमें दीन की दावत देने की ज़िम्मेदारी दी गई है, लेकिन हम इसमें काफी पीछे हैं. इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि हम विभिन्न धर्मों के मानने वालों के बीच संवाद करें, क्योंकि समाज का जो वर्ग हमसे दूर है, उसे अपने बारे में बताएं. हमारे विरोधी इस बात का ज़ोर-ज़ोर से दुष्प्रचार कर रहे हैं कि इस्लाम तलवार से फैला है. यह बात ग़लत है. यदि ऐसा होता तो सत्ता केन्द्र आगरा और बाद में दिल्ली के पड़ोस में जहाँ मुसलमानों की आबादी बहुत कम थी, उनका धर्मांतरण करवाया जाता. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. इसलिए, इस दुष्प्रचार का जवाब देना बहुत ज़रूरी है.

इस अवसर पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो वाईस चांसलर, ब्रिगेडियर एस. अहमद अली, मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय, जोधपुर के वाईस चांसलर, प्रो. अख़्तारूल वासे, इग्नू के वाईस चांसलर प्रो. एम. असलम और आई.ओ.एस. महासचिव प्रो. जे़ड. एम. ख़ान ने भी अपने विचार व्यक्त किए. लगभग आधा दर्जन किताबों का विमोचन और आई.ओ.एस. द्वारा जारी वर्ष 2017 का कैलेण्डर भी जारी किया गया. आई.ओ.एस. की 30 सालाना क्रियाकलापों पर आधारित एक प्रदर्शनी भी लगायी गई जिसे देखने वालों की काफी भीड़ थी.