अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस अपने गुमशुदा बेटे की तलाश में जब से दिल्ली आई हैं, तब से उनकी आंखों में आंसुओं का सैलाब है. जहां कहीं भी होती हैं, अचानक अपने बेटे नजीब को याद कर फ़फ़कते हुए रो पड़ती हैं. रविवार को अपने बेटे को ढूंढने की अपील करने के लिए इंडिया गेट की तरफ़ बढ़ रहीं फ़ातिमा की आंखों से एक बार फिर आंसू निकले. मगर इस बार बेटे की याद में नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस के बर्बर सुलूक़ की वजह से.
दिल्ली पुलिस उन्हें घसीटते हुए, टांगकर, बस में भरकर अपने साथ ले गई. इस कार्रवाई की तस्वीरें जब सोशल मीडिया पर आईं तो इस अमानवीय हरक़त पर हर किसी का सिर शर्म से झुक गया. तस्वीरें भी ऐसी हैं जो आज़ाद हिन्दुस्तान की सबसे शर्मनाक तस्वीरों में से एक लगती हैं.
मगर इन सबके बावजूद फ़ातिमा ना डरी हैं, न हटी हैं. भले वो रो रही हैं, लेकिन पूरी ताक़त से डटी हैं. नजीब को ढूंढने के आंदोलन को मज़बूत बनाने के लिए वह हर चौखट पर दस्तक दे रही हैं. हर किसी से अपील कर रही हैं कि उन्हें और उनके बेटे के इंसाफ़ के लिए आगे हैं. सरकार और पुलिस पर दबाव बनाएं ताकि नजीब को ढूंढने का काम तेज़ किया जा सके और दोषियों पर कार्रवाई की पहल हो सके.
फ़ातिमा नफ़ीस पिछले 23 दिनों से अपने लख़्ते-जिगर नजीब के इंतज़ार में भटक रही हैं. उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने वाला नजीब जेएनयू का होनहार छात्र है और एक मां ने अपने इस बेटे की सलामती और तरक़्क़ी के हज़ार सपने संजोए हुए है. बस किसी तरह बेटा वापस आ जाए और उनके सपनों और अरमानों को पंख लग सके.
वहीं बड़े-बड़े मामलों को चुटकी में ख़त्म कर देने का दावा करने वाली पुलिस प्रशासन अभी तक इस केस की परतें खोल पाने में नाकाम नाकाम साबित हो रही है. पुलिस-प्रशासन की नाकामी का दर्द इस मां के चेहरे पर खून के आंसू की शक्ल में जम गया है.
इस मां के आंसू को मैंने कई जगहों पर देखा है. मैंने ही क्या बल्कि पूरे देश ने इस मां को फूट-फूटकर रोते भी देखा है. जेएनयू के तक़रीबन हर छात्र ने अपने बेटे को पाने की गुहार के दर्द को बखूबी महसूस किया है. मैंने देखा कि कैसे यह मां हर रोज़, हर वक़्त अपने बेटे नजीब की सलामती के लिए दुआ करती है. ये मां कभी पूरी रात जागकर और दिन बेटे की तकलीफ़ों को दिल में लिए कभी पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाकर काटती है तो कभी अपनी मांग के खातिर सड़कों पर बैठी रहती है. ये मां हर बच्चे से पूछती है कि मेरा नजीब वापस आ जाएगा ना… आख़िरकार जो मां अब तक अपने घरों से बाहर नहीं निकलती थी वो आज अपने बेटे के इंतज़ार में थक-हार कर सड़कों पर उतरी. और फिर बेरहम व निकम्मी दिल्ली पुलिस ने इस मां के साथ जो कुछ किया वो अब पूरी दुनिया के सामने है.
हिरासत में लिए जाने के बाद इस मां के ज़रिए बोले वो शब्द अब भी मेरे कानों में गुंज रहे हैं –‘मुझे घसीट कर ले जाया गया, मेरे हाथ-पैर में दर्द है. मैं हाई ब्लड प्रेशन की मरीज़ हूँ और मेरी हालत ठीक नहीं है. मैं तो यही कह रही हूँ कि मेरा बेटा मुझे ला दो, मैं ये नहीं पूछने वाली कि वो कहां था, उसे कहां रखा गया. मैं बस उसे लेकर चली जाऊंगी.’
खैर, कई बड़े सियासतदां इस मां से मिलने के लिए आए. सबने इस मां को सांत्वना दी. कुछ ने अपनी राजनीति चमकाई, मगर इस मां का पड़ाव सिर्फ़ अपने बेटे के ख़ातिर था. इसके लबों पर बस एक सवाल था –मेरा बेटा कहां है? लेकिन इसके सवाल का जवाब कोई तैयार नहीं है. वो सरकार जो ‘सबका साथ –सबके विकास’ की बात करती है, वो भी इस सवाल पर खामोश है. बेशर्मी की हद तो देखिए कि इनकी सियासत में किस क़दर नफ़रत हावी है कि इस पार्टी की एक भी नामचीन महिला राजनेता इस मां का दर्द बांटने नहीं आईं, क्योंकि नजीब उनका बेटा नहीं, उन्हें इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता या फिर नजीब की मां उनके धर्म से नहीं…
जब से नजीब गायब हुआ है, इस मां के हलक से निवाला नहीं उतरता. ये मां बस अपने बेटे की याद में ज़िन्दा रहने की क़वायद में मर-मर कर जी रही है. मेरा दिल तो यही कह रहा है कि इस मां के सब्र का बांध अब जवाब देने लगा है. मुझे डर इस बात का है कि नजीब कुछ और दिन में नहीं लौटा तो इस मां की ज़िन्दगी और उम्मीद दोनों ही ख़तरे में पड़ सकती है.
लेकिन नफ़रत की सियासत करने वालों को इससे क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है. उन्हें तो बस सत्ता चाहिए. ये कितना अजीब है कि जेएनयू से लेकर राजपथ की सड़कों तक नजीब के नाम पर सियासत का खून जम चुका है, मगर नजीब की मां के आंसू किसी को नज़र नहीं आ रहा है.
जिन्हें इस मां का दर्द व आंसू नज़र आ रहा है, उन्हें सरकार के इशारे पर हमारी दिल्ली पुलिस हर तरह से दबा देना चाहती है. ऐसा नहीं है कि इंडिया गेट पर इससे पहले धरना-प्रदर्शन नहीं हुआ है. लेकिन सुबह से ही यहां धारा -144 लगा दिया गया. इंडिया गेट जाने वाली हर सड़क को बंद कर दिया गया. इन्हें इस बात से भी कोई फर्क़ नहीं पड़ा इनके इस हरकत पूरी दिल्ली थम जाएगी. दिल्ली के हवा में तो प्रदुषण वैसे भी घुला हुआ है, आज इस पुलिस ने और ज़हर घोलने का काम किया.
सच पूछे तो मोदी की दिल्ली पुलिस ने इस बेहद ही संवेदनशील मामले में दरिन्दगी की सारी हदें पार कर दी. बेटे के लिए इस तड़पती मां को न सिर्फ़ घसीटा गया, बल्कि उसके साथ बदसलूकी के साथ हिरासत में भी लिया गया. यही नहीं, नजीब के समर्थन में जुटे छात्र-छात्राओं व नजीब की बहन सदफ़ मुशर्रफ़ को भी इस दिल्ली पुलिस ने नहीं बख़्शा. जानवरों की तरह सलूक किया गया.
समझ में नहीं आता कि ये आज़ाद हिन्दुस्तान की पुलिस है या हम आज भी अंग्रेज़ों की गुलामी झेल रहे हैं. आने वाले वक़्त में पुलिस का किरदार और भी ज़्यादा सख्त और निर्मम होते जाने की आशंका जताई जा रही है. ये भी हो सकता है कि हो सकता है कि स्टेट मशीनरी इस मामले से निकलने के लिए नजीब के घर वालों को ही इस मामले की साज़िश को जोड़ना शुरू कर दे. ऐसा पहले भी हो चुका है. इसलिए इस ‘डर’ से इंकार नहीं किया जा सकता है. ज़रूरत समय रहते नजीब के इंसाफ़ की मांग को आंधी में तब्दील कर देने की है कि उस आंधी के सामने सियासत के बड़े से बड़े क़िले तिनके की तरह उड़ जाएं और धर्म के नाम पर नफ़रत की सियासत करने वालों को करारी शिकस्त झेलनी पड़े.