Home India Politics मध्य प्रदेश के धार ज़िले में ‘दंगे का सायरन’

मध्य प्रदेश के धार ज़िले में ‘दंगे का सायरन’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

धार(मध्य प्रदेश): पिछले 12 अक्टूबर को मध्य प्रदेश के धार ज़िले के पीपल्या गांव में मुहर्रम के दिन साम्प्रदायिक तनाव पैदा हुआ, जिसमें 25 मकानों और 5 दुकानों में आगजनी व लूटपाट की गई. स्थानीय लोगों की मानें तो गांव की मस्जिद में भी आगजनी की गई और वहां रखे गये धार्मिक ग्रंथों व किताबों को जला दिया गया. पंखे, माईक, लाईट को तोड़ा गया. मीनार पर चढ़कर अज़ान देने के उपयोग में आने वाले लाउडस्पीकर तक को भी निशाना बनाया गया. लेकिन इसी पीपल्या में जहां आगजनी हुई है, वहीं मुस्लिम परिवारों के बीच एक मंदिर भी है जिसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा और यह अपनी पवित्रता के साथ सुरक्षित है.

Pipalya Village

इस साम्प्रदायिक घटना के बाद 26 अक्टूबर 2016 को राष्ट्रीय सेक्युलर मंच की चार सदस्यी फैक्ट फाईंडिंग टीम ने इस गांव का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट को भारत के नागरिकों तक पहुंचाने की कोशिश की.

इस फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने इस दंगे से जुड़े हर सच को देखा, परखा व जाना. टीम ने इस सच्चाई से जुड़े एक-एक तथ्य को बाक़ायदा क़लमबद्ध किया.

इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में एक बेहद ही चौंकाने वाले व डरावने सच का पर्दाफ़ाश किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ एक प्रभावशाली नेता ने अपने घर पर दंगे को भड़काने व मैनेज करने का पूरा सिस्टम लगा रखा है. यह सिस्टम एक सायरन के ज़रिए काम करता है.

रिपोर्ट में गांव वालों के हवाले से यह बात लिखी गई है कि ‘डॉक्टर राधेश्याम पाटीदार ने अपने मकान पर स्थायी रुप से सायरन लगाया हुआ है, जिसकी आवाज़ आस-पास के दूसरे गांवों तक भी जाती है. सायरन का इस्तेमाल लम्बे समय से भीड़ को इकट्ठा करने और उकसाने के लिए किया जाता रहा है.’

इस सायरन के बजने के स्पष्ट मायने होते हैं. सायरन के एक बार बजने के मायने है कि साधारण रुप से एकत्रित होना है. दो बार सायरन बजने का मतलब किसी गंभीर गतिविधि के लिए एकत्रित होना है. और अगर सायरन तीन बार बजे तो इसका मतलब है कि तैयारी के साथ इकट्ठा होना है.

ख़ास बात यह है कि इस सायरन के होने की जानकारी धार के सभी घरों में है. मगर गांव के लोगों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन इस पर आंख मूंदे हुए है. पुलिस को इन बातों से कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता कि कभी भी इस सायरन के ज़रिए भीड़ को इकट्ठा करके किसी भी समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा सकता है और बेहद ही ख़ौफ़नाक साम्प्रदायिक वारदातों को अंजाम दिया जा सकता है और दिया जा रहा है. जबकि इस बात के भी तथ्य सामने आ चुके हैं.

Pipalya Village

TwoCircles.net ने इस तथ्य की जांच के लिए इस गांव के कई लोगों से बात की. इसी पीपल्या गांव के रहने वाले एक शख़्स (जिनका नाम सुरक्षा कारणों से यहां प्रकाशित नहीं किया जाता रहा है) का कहना है कि घटना वाले दिन भी इन लोगों ने सायरन बजाकर लोगों को जमा किया और मस्जिद पर धावा बोला. इसके लिए इन्होंने दो दिन पहले भी सायरन बजाकर एक मीटिंग की थी.

इनका यह भी आरोप है कि गांव के लोग इस दंगे के बाद 4 अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज करा चुके हैं, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस घटना को अंजाम देने वाले खुलेआम घूम रहे हैं.

वहीं एक दूसरे शख्स (नाम सुरक्षा कारणों से अप्रकाशित) बताते हैं कि इस गांव में यह सायरन 14-15 सालों से है. उनके मुताबिक़ इस गांव में जैन समाज का सिर्फ़ एक ही परिवार रहता है. मनोज जैन, जो कि कांग्रेस के कार्यकर्ता भी हैं, की किसी बात पर आरएसएस के लोगों से बहस हो गई थी. तब भी इन लोगों ने सायरन बजाकर लोगों को जमा किया था और मनोज जैन की जमकर पिटाई की थी. हालांकि अब वो परिवार डर के कारण इन्हीं लोगों का साथ देता है.

फैक्ट फाईंडिंग टीम में गए राष्ट्रीय सेक्यूलर मंच के अध्यक्ष एल.एस. हरदेनिया बताते हैं, ‘हमने सायरन अपनी आंखों से देखा है. हमने इसकी शिकायत पुलिस से भी की. लेकिन जब हमने पुलिस से इस संबंध में बताया कि यहां सायरन का दुरूपयोग किया जा रहा है तो उनका जवाब था कि हमें सायरन की जानकारी नहीं है. हम इस संबंध में मध्यप्रदेश के डीजी से भी बात कर चुके हैं.’

TwoCircles.net ने इस कुक्षी इलाक़े के सब-डिवीज़नल ऑफ़िसर ऑफ़ पुलिस प्रियंका दुबे से भी बातचीत थी. प्रियंका दुबे ने बताया कि गांव में सायरन लगा ज़रूर था, लेकिन वो इसलिए नहीं कि दंगा किया जाए. वो दरअसल इसलिए लगा था कि गांव के मंदिर में जब कभी आरती, महाआरती या भोज आयोजित करना हो या किसी भी धार्मिक क्रियाकलाप को लेकर सूचित करना हो तो लोगों के दरवाज़े-दरवाज़े नहीं जाना पड़े, बल्कि सायरन बजाकर एक बार में ही लोगों के एकत्रित किया जा सके.

प्रियंका दुबे के मुताबिक़ यह सायरन पिछले 3-4 सालों से है. हालांकि वो यह भी बताती हैं कि फिलहाल इस सायरन को हटा लिया गया है. कारण पूछने पर वो बताती हैं कि कुछ लोगों ने इसका ग़लत मतलब निकाल लिया है, इसलिए इसे हटवा दिया गया है.

इस पूरे मसले में राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के प्रवक्ता साजिद कुरैशी कहते हैं, ‘भाजपा मध्यप्रदेश में तक़रीबन 15 सालों से सरकार में है. इस दौरान आरएसएस जिस तरीक़े से साशन-प्रशासन में सम्मिलित हो गया है, वह पूरे मालवा प्रखंड को साम्प्रदायिक दंगे की आग में झोंकना चाहता है.’

आगे उनका कहना है, ‘मैं पिपल्या की घटना को एकतरफ़ा साम्प्रदायिक हिंसा कहूंगा. क्योंकि यहां दूसरा पक्ष इतना कमज़ोर व शांतिप्रिय है कि इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनके इलाक़े में मंदिर है और उसे उन्होंने कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया. जबकि पहले पक्ष ने मस्जिद को पूरी तरह से ख़त्म कर देने की पूरी कोशिश की. सच पूछिए तो इन लोगों ने पूरे प्लान के तहत 5 हज़ार लोगों को एकत्रित करके इस घटना को अंजाम दिया था. हज़ारों की संख्या में दूसरे गांव के लोग भी इस घटना में शामिल थे.’

बताते चलें कि इस पिपल्या गांव की पूरी आबादी लगभग 5 हज़ार है. स्थानीय लोगों के मुताबिक़ इस गांव में 350 से लेकर 400 मकान हिन्दुओं के हैं, तो वहीं सिर्फ़ 60-65 घर मुसलमानों के हैं. इस गांव में 1992 में भी दंगा हो चुका है. इसके बाद भी कई बार यहां माहौल ख़राब करने की कोशिशें लगातार की जाती रही हैं. इससे पूर्व भी इसी मस्जिद को निशाना बनाया गया था, जिसे इस बार भी आग लगाकर ध्वस्त करने की कोशिश की गई.

धार ज़िले का सिंडिकेट इसलिए भी बेहद ख़ौफ़नाक है क्योंकि ये एक सिलसिले की ओर इशारा करता है. अगर गहराई से पड़ताल की जाए तो इस बात के पुख्ता सबूत मिलेंगे कि ये मामला सिर्फ़ एक ज़िले का नहीं है, बल्कि साम्प्रदायिक ताक़तों ने मुल्क में इस तरह का तंत्र विकसित कर लिया है, जिसका प्रतीक कहीं सायरन, कहीं शंख, कहीं लाउडस्पीकर तो कहीं तलवार बन चुकी है. अगर समय रहते इस सिस्टम के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो जल्द ही इस मुल्क को दंगे की आग में झोंकने का एक नया फुलप्रूफ़ प्लान ज़मीन पर उतारा जा सकता है.