Home India Politics मोदी के संसदीय क्षेत्र में सोने की खरीददारी में अफसर-नेता निबटा रहे...

मोदी के संसदीय क्षेत्र में सोने की खरीददारी में अफसर-नेता निबटा रहे 500-1000 के नोट

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: 8 नवम्बर की रात जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 500 व 1000 की नोटबंदी का ऐलान करके हटे, वैसे ही प्रधानमंत्री की संसदीय सीट बनारस में एक अलग नज़ारा देखने को मिला.

नोटबंदी का फरमान जारी होते ही एक तरफ जहां सभी दुकानों के शटर गिर गए, वहीँ नगर के चुनिंदा सर्राफ़ा की दुकानों में अचानक भीड़ बढ़ गयी. और यही नहीं, भीड़ इतनी भरी रही कि कुछ दुकानें तो भोर तीन बजे तक खुली रहीं.

Untitled

दरअसल जिन धनपतियों ने अपने घरों में पैसे छिपाकर रखे हुए थे, उन्होंने सोने की खरीददारी को हथियार बनाकर अधिक से अधिक पैसे को साधने की कोशिश की. इस किस्म की खरीददारी करने वालों में आला दर्जे के अधिकारी, कुछ पूर्व विधायक और शहर के कई गणमान्य शामिल थे.

नगर के भेलूपुर स्थित आभूषणों के एक शोरूम में रात 2 बजे तक खरीददारी हुई. वहीँ रथयात्रा स्थित एक नामी-गिरामी शोरूम में लगभग रात तीन बजे तक खरीददारी होती रही.

बनारस में खरीददारी का आलम यह था कि सोना जो 8 नवम्बर की रात 27,000 रुपए प्रति दस ग्राम के भाव से चल रहा था, वह 9 नवम्बर को बाज़ार खुलते-खुलते एक रात में 44,000 रूपए प्रति दस ग्राम का रेट पार कर गया. जानकार बताते हैं कि सोने की खरीददारी में अचानक आए उछाल और बढती जा रही मांग की वजह से सोने के रेट में ऐसा उछाल आया है.

ऐसा नहीं कि सिर्फ 8 नवम्बर की रात को ही बनारस के जमाखोरों ने खरीददारी की, खरीददारी अगले दिन भी हुई और अभी भी कुछेक जगहों पर जारी है. यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि सरकार द्वारा चिन्हित कुछ जगहों को छोड़ दिया जाए तो सभी जगहों पर 500 व 1000 के नोटों में कारोबार करना गैरकानूनी है लेकिन बनारस के सर्राफा व्यवसायियों ने इसकी भी काट निकाल ली.

आठ नवम्बर की रात 12 बजे के बाद बिके सभी आभूषणों के खरीद की रसीद या तो आठ नवम्बर की दिखाई जा रही है, या उस तारिख के पहले की. ताकि कागज़ पर 500 व 1000 के नोटों को लेकर कोई घपला न हो.

सिगरा-रथयात्रा स्थित एक आभूषण शोरूम के कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘जिस रात आदेश आया था न, केवल उसी रात हम लोग की दुकान से लगभग दस करोड़ के आसपास का माल बिक गया था. एक भी ग्राहक ऐसा नहीं था जो 500-1000 के अलावा कोई और नोट लेकर आया हो.’

एक और सर्राफा व्यवसायी इस खेल को तसल्ली से समझाते हैं. वे कहते हैं, ‘देखिए, मान लीजिये आपको अभी सोना चाहिए. हम देंगे. लेकिन उसकी भी कीमत है. आप 75 हजार का सोना खरीदेंगे तो आपको हमें लगभग 1 लाख रूपए देने होंगे. रसीद आपको 75 की ही मिलेगी. जितने की रसीद नहीं अहि, समझ लीजिये कि वो हमारी रिस्क मनी है.’

लेकिन चिंताजनक स्थिति यह है कि कोई भी दुकानदार इस तरह से खरीददारी कर रहे या कर चुके ग्राहकों का नाम लेने को तैयार नहीं है. उनका कहना है कि नाम ले लेने से उनके धंधे या उनकी जान पर आफत आ सकती है. लेकिन दुकानदार यह ज़रूर बताते हैं कि इस तरह से खरीददारी करने आए अधिकारी और नेताओं ने अपने नाम से खरीददारी न कर, अपनी पत्नी से लेकर दूर-दराज़ तक के सम्बन्धियों के नाम से खरीददारी की.

मोदी के संसदीय क्षेत्र में यानी उनकी नाक के चल रहे इस खुले खेल में हुक्मरानों से लेकर अधिकारियों तक के शामिल होने की सुगबुगाहट है क्योंकि नोटबंदी – जिसमें आम जनता बेहद परेशान है – के दौरान आला दर्जे के लोगों खुला खेल यूं ही नहीं चलता होगा.