आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
बिजनौर: दलितों की देवी के तौर पर प्रचार पाने वाली मायावती ने अपना पहला चुनाव बिजनौर लोकसभा से लड़ा था. उनका सामना रामविलास पासवान और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से था. दलितों के सबसे बड़े नेता बाबू जगजीवन राम की बेटी होने का लाभ लेते हुए कांग्रेस की मीरा कुमार यह चुनाव जीत गयी थीं.
बिजनौर एक ऐसी जगह है जहां दलित और मुस्लिम दोनों मिलकर 80 प्रतिशत से ज्यादा हैं. मायावती चुनाव हार गयी मगर देश जान गया था कि कुछ हलचल जरूर होगी. बसपा की प्रत्याशी ने लगभग एक लाख वोट पाया था और तीसरे नम्बर पर रही थीं. बसपा के संस्थापक कांशीराम ने इसे अपनी जीत बताया था.
बाद में चलकर 2007 में जब बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो सबसे पहले बिजनौर के नतीजे आये. जनपद की सभी 6 विधानसभा सीटों पर बसपा के विधायक बने. ओमवती नगीना से, शीशराम नजीबाबाद से, मोहम्मद गाजी अफजलगढ़ से, इक़बाल ठेकेदार चांदपुर से,अशोक चौहान धामपुर से और शाहनवाज़ राणा बिजनौर शहर से जीत गए.
बिजनौर की जीत के बाद मायावती ने पत्रकारों ने इसे अपने लिए विशेष बताया. 2011 में भी बिजनौर से बसपा के चार विधायक जीत गए. इनमें से नजीबाबाद विधायक तस्लीम अहमद सपा में और धामपुर विधायक ओमकुमार भाजपा में चले गए. नया परिसमन के बाद एक नई विधानसभा सीट नहटौर बनी.
आगामी विधानसभा चुनावों के मद्द्देनज़र बसपा की निगाहें फिर से बिजनौर पर हैं. बसपा बिजनौर को अपनी राजनीतिक नर्सरी मानती है. इस बार यहां अपनी सुरक्षित विधानसभा सीटों को छोड़कर बाकि सभी पर बसपा ने मुसलमान प्रत्याशियों को चुनावी कमान दी है. बढ़ापुर से मोहम्मद गाजी ,चांदपुर से इक़बाल, नूरपुर से गौहर इक़बाल, अफजलगढ़ से फहद यजदानी, बिजनौर शहर से रशीद अहमद, नजीबाबाद से मुअज्जम खान को चुनाव लड़ने का मौका मिला है.
बिजनौर मुस्लिमबहुल इलाक़ा है और यहां 18 में से 17 नगर पंचायत अध्यक्ष मुसलमान हैं. यह पूरे भारत मे एक रिकॉर्ड है. यहां दूसरी सबसे बड़ी आबादी दलितो की है. दोनों को मिला दें तो कुल मिलकर लगभग 80 प्रतिशत हो जाते हैं. बिजनौर में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की लगातार साज़िश रची जा रही है.
कुटिल राजनीतिक पंडितो को लगता है यदि बिजनौर की विधानसभा सीटों पर दलित मुस्लिम एकता बरकरार रही तो यहां स्कोर फिर 7-0 हो जायेगा. अकेले मुसलमान यहां 42 फीसदी हैं. हालांकि यहां समाजवादी पार्टी ने भी कुछ जगहों पर मुसलमान प्रत्याशियों को ही तरजीह दी है. जैसे अफजलगढ़ से शेख सुलेमान, नूरपुर से नईमुल हसन, नजीबाबाद से तस्लीम अहमद और चांदपुर से शेरबाज पठान सपा के टिकट पर लड़ रहे हैं. संभव है कि इस समीकरण से भाजपा को फायदा हो मगर इसकी सम्भावना कम ही है क्योंकि दलितों की संख्या अधिक है.
पूर्व बसपा विधायक शीशराम सिंह कहते हैं, ‘बिजनौर बसपा के लिए महत्वपूर्ण जिला है. हमने यहां प्रारम्भ से ही दलित मुस्लिम एकता पर काम किया. बहनजी का पहला चुनाव भी यहीं से था. इसलिए यहां से भावना का जुड़ाव भी है.’
वे जीत के प्रति आश्वस्त करते हैं, ‘दलित मुस्लिम एकजुट हों तो सभी सीटे आसानी से जीत जाएंगे. हम पहले भी ऐसा कर चुके हैं.’