TwoCircles.net Staff Reporter
पटना : ‘भाजपा की केंद्र सरकार किसी प्रकार न्यायपालिका में अपने लोगों को लाकर अपने समाज विरोधी नीतियों को दबाना या छुपाना चाहती है. हालांकि साम्प्रदयिक सदभाव को बनाये रखने के लिए न्यायपालिका ने कई क़दम उठाये हैं, लेकिन जितना काम होना चाहिए था, उतना नहीं हो पाया है.’
ये बातें शनिवार को पटना के बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन हॉल में ‘साम्प्रदायिक सदभाव में न्यायपालिका की भूमिका’ विषय पर ‘राम जेठमलानी फैंस क्लब’ की ओर से आयोजित एक सेमिनार में पटना हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा ने कहा. वो इस सेमिनार की अध्यक्षता कर रहे थे.
इस सेमिनार में इनके अलावा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ. अब्दुल ग़फूर, एमएलसी और पूर्व मंत्री राम लषण राम ‘रमण’, भारत के पहले प्रधानमंत्री (प्रीमियर) बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस के पौत्र एडवोकेट मोहम्मद काशिफ़ यूनुस, अधिवक्ता अरुण कुशवाहा, कांग्रेस के सीनियर लीडर अज़मी बारी, बारी अंजुम, इरशाद अली आज़ाद, कमाल अख्तर, हारून रशीद, ब्रज किशोर कुशवाहा भी बतौर वक्ता शामिल रहें.
कॉलेजियम को हटाकर कमीशन या दूसरे उचित माध्यम के ज़रिये जजों की बहाली की बात मंत्रीगण और अधिवक्ताओं के भाषण में उठती रही. मंत्री अब्दुल ग़फूर और पूर्व मंत्री राम लषण राम ‘रमण’ ने इस बात का समर्थन किया कि कॉलेजियम सिस्टम को हटाने की वकीलों की मांग जायज़ है. राम लषण राम ने ये भी कहा कि –‘किसी भी केस में सच्चाई की तरफ़ से खड़े होने की कोशिश वकीलों को करनी चाहिये.’
इस अवसर पर बोलते हुए ‘राम जेठमलानी फैंस क्लब’ महाससिव एडवोकेट मोहम्मद काशिफ़ यूनुस ने कहा कि –‘बम्बई बम ब्लास्ट के इलज़ाम में याक़ूब मेमन को तो फांसी दे दी गई, लेकिन भारत की न्यायपालिका जब तक बम्बई सांप्रदायिक दंगे करने वालों और बाबरी मस्जिद को शहीद करने वालों को फांसी पर चढ़ाने में नाकामयाब रहेगी, तब तक धार्मिक और सांप्रदायिक सदभाव बनाये रखने में न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठते रहेंगे.’
उन्होंने कहा कि –‘ज़्यादातर सीनियर एडवोकेट्स और रिटायर्ड जजों का रवैया उदासीन है, जिसके कारण बहुत ज़्यादा काम नहीं हो पा रहा है. इस मसले पर पूरे भारत वर्ष में वकीलों और जजों बीच जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है.’