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नई दिल्ली : देश के संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अपने मज़हब और आस्था पर अमल करने, उसके प्रसार व प्रचार, उसके लिए संस्था स्थापित करने और उसकी शिक्षा को फैलान का पूरा अधिकार दिया है. धर्म की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का पूरक है. संविधान में इसकी गारंटी दी गई है और इसे व्यक्ति का मूल अधिकार बताया गया है.
जमाअत इस्लामी हिन्द के अमीर यानी अध्यक्ष मौलाना जलालुद्दीन उमरी ने अपना यह विचार एक सभा में रखा. मौलाना उमरी ने आगे कहा कि तलाक, बहुविवाह एवं शरियत से संबंधित अन्य मामले पूर्णतया इस्लामी आदेश हैं. मुसलमान अपने धार्मिक मामलों में शरियत पर अमल करने के लिए बाध्य हैं. उन पर किसी भी तरह दूसरे क़ानून थोपे नहीं जा सकते.
उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के दायरे में आने वाले क़ानून खालिस मज़हबी क़ानून हैं. हुकूमत को उनका सम्मान करना चाहिए न कि उन्हें ख़त्म करने की साज़िश करनी चाहिए.
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार मुसलमानों को दूसरे देशों का तौर-तरीक़ा अपनाने पर मजबूर नहीं कर सकती, बल्कि उसे तो यह देखना चाहिए कि हर धर्म और आस्था के मानने वाले लोगों पर किसी तरह का उत्पीड़न तो नहीं किया जा रहा है और उन्हें सम्पूर्ण आज़ादी हासिल हो रही है या नहीं. लेकिन इसके उलट सरकार इस प्रयास में लगी हुई है कि देश में समान सिविल कोड लागू कर दिया जाए.
मौलाना उमरी ने हैरत जताते हूए कहा कि जो लोग तीन तलाक या अन्य मामलों पर मतभेद कर रहे हैं, उनकी संख्या आटे में नमक के बराबर है. वे देश के सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं. बल्कि 99 प्रतिशत मुसलमान शरियत पर चलने और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपने मामलों को हल करने के इच्छुक हैं. इसके लिए देश में विभिन्न भागों से आवाज़ें उठाई जा रही हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार को व्यक्ति की आस्था और धर्म से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए. मुसलमान कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी मौत के बाद उन्हें दफ़न करने के बजाए आग के हवाले किया जाए. उसी तरह हिन्दू, सिख, ईसाई और दूसरे धर्मों के मानने वालों का हाल है. सरकार विभिन्न धर्मों के मानने वालों पर समान क़ानून को लागू नहीं कर सकती. यह उनके पर्सनल लॉ में सीधा हस्तक्षेप है, जिसे वे किसी भी तौर पर क़बूल नहीं करेंगे.
मौलाना उमरी जो धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ भी हैं, ने कहा कि जमाअत इस्लामी हिन्द इस महत्वपूर्ण मामले में पूरी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन करती है. जमाअत उसके साथ हर जगह खड़ी है और उसके हौसले को ज़रा भी झुकने नहीं देगी. मुस्लिम पर्सनल लॉ ही हिन्दुस्तान के तमाम मुसलमानों की प्रतिनिधत्व संस्था है.
उन्होंने कहा कि मुसलमानों की धारणा है कि कुरआन और हदीस और शरियत में किसी भी तरह की तब्दीली क़यामत तक संभव नहीं. किसी भी बहाने से इसमें संषोधन की गुंजाइश नहीं.
उन्होंने जोर देकर कहा कि तीन तलाक, बहु-विवाह एवं इस्लाम के अन्य पहलू पर सभी मुस्लिम जमाअतें एकमत हैं. जो लोग इसमें मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें सफलता नहीं मिलेगी.
उन्होंने यह भी कहा कि तीन तलाक के मामले को बेहतर तरीक़े से समझने का प्रयास नहीं किया गया है, बल्कि उसको उलझाने की प्रयास किया जा रहा है और बहुविवाह का मामला छेड़कर मुसलमानों की छवि बिगाड़ी जा रही है और यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि मुसलमान महिलाओं पर अत्याचार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हक़ीक़त तो यह है कि एक से अधिक विवाह का चलन मुसलमानों में न के बराबर है. चार शादियों के मामले में भी आम लोगों को गुमराह किया जा रहा है. इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त सशर्त है. कुछ महिलाओं को इसके खिलाफ़ उभार कर सरकार कुछ हासिल नहीं कर पायेगी. समाज सुधार के नाम पर समान सिविल कोड को लागू करने के प्रयास से देश में अव्यवस्था फैल जाएगी जो देशहित में ठीक नहीं है.
मौलाना उमरी ने तीन तलाक पर बातचीत करते हुए कहा कि समुदाय के अधिकतर उलेमा व फुक्हा (विद्वान व न्यायविद) एक ही बार में दिए गए तीन तलाक को तीन ही मानते हैं. अगर पति यह कहे कि उसने तीन तलाक दी है, लेकिन अगर वह यह कहता है कि उसकी मंशा एक ही तलाक देने की थी तो उसे एक तलाक ही समझा जाएगा.
उन्होंने एक ही बार तीन तलाक को गैर इस्लामी तरीक़ा बताया. उन्होंने दूसरी और महत्वपूर्ण बात यह बताई कि इस्लाम ने पत्नी को ‘खुला’ का अधिकार दिया है. अगर वह अपने पति से खुश नहीं है तो वह मांग करेगी कि वह अपना महर वापस ले ले और उसे आज़ाद कर दे. अगर पति राज़ी न हो तो वह दारुल कज़ा जा सकती है और क़ाजी ‘खुला’ लेने में उसकी मदद करेगा.
मौलाना उमरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह मामला खालिस धार्मिक है. यह हमारे निजी पारिवारिक और खानदानी मसले हैं, उनसे सरकार को वास्ता नहीं रखना चाहिए. हम अपने मसलों को स्वंय हल करने की क्षमता रखते हैं. उनमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप क़बूल नहीं.