अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
चम्पारण (बिहार) : सत्य, शांति और अहिंसा की धरती चम्पारण पिछले चार दिनों से अशांत है. चम्पारण में एक साथ कई जगहों से साम्प्रदायिक तनाव की ख़बरें आ रही हैं.
पूर्वी चम्पारण के जिला मुख्यालय मोतिहारी से महज़ 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुरकौलिया गांव में पिछले तीन दिनों से साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना हुआ है. अभी स्थिति सामान्य हो ही रही थी कि अचानक यहां एक डॉक्टर मेराज अहमद के मर्डर ने फिर से स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया है. स्थानीय लोग इस मर्डर को साम्प्रदायिक तनाव के साथ जोड़कर देख रहे हैं, जबकि प्रशासन का मानना है कि सामान्य अपराध की घटना है. डॉक्टर मेराज से कुछ दिनों पहले रंगदारी मांगी गई थी.
तुरकौलिया में रहने वाले एक पत्रकार नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बताते हैं कि तुरकौलिया में पिछले कुछ दिनों से बजरंग दल व विश्व हिन्दू परिषद् के लोग सक्रिय नज़र आ रहे हैं. इससे पहले भी छोटी-छोटी घटनाओं को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा चुकी है, लेकिन लोगों की सूझबूझ से कभी माहौल इतना ख़राब नहीं हुआ. मगर इस बार उन्हें कामयाबी ज़रूर मिल गई.
Champaran Communal Tension
वे बताते हैं कि मंगलवार की रात को एक पूजा पंडाल में दो लड़कों के बीच किसी बात को लेकर नोक-झोंक हुई थी. पूजा पंडाल में मौजूद लड़कों ने दूसरे लड़के को खूब पीटा था. अब शायद वह लड़का व उसके दोस्त मुहर्रम के जुलूस में शामिल थे और अपने पीटने का खुन्नस में उन्होंने सड़क के किनारे लगी ट्यूबलाईट को तोड़ दिया. फिर क्या था. इसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर मुद्दा बनाया गया. तरह-तरह की अफ़वाहें फैलायी गयीं और मोतिहारी-अरेराज मुख्यमार्ग को जाम कर दिया गया. बस यहीं से इन्हें नफ़रत के खेत की फ़सल काटने का ज़बरदस्त मौक़ा मिल गया.
इस दौरान कवलपुर के पास दोनों पक्षों के लोग आमने-सामने हो गए. मौक़े पर पुलिस लोगों को नियंत्रित करने पहुंची, लेकिन भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की ओर से लाठीचार्ज किया गया और आंसू गैस के गोले छोड़े गए. हालांकि इस उग्र भीड़ की मांग की देखते हुए एसपी जितेंद्र राणा ने तुरकौलिया थानाध्यक्ष फैसल अहमद अंसारी को निलंबित कर दिया.
अब इस इलाक़े में शुक्रवार को भी धारा 144 लागू रही. पूरा इलाक़ा पुलिस छावनी बना रहा. अधिकांश दुकानें बंद रहीं. हालांकि जिलाधिकारी अनुपम कुमार के मुताबिक़ लोगों को दुकान खोलने से कोई रोक नहीं है. बस ध्यान रहे है कि एक जगह भीड़ जमा न हो.
तुरकौलिया के बाद अब पूर्वी चम्पारण ज़िले का सुगौली शहर दुर्गापूजा की मूर्ति विसर्जन के दौरान हुए पथराव को लेकर साम्प्रदायिक तनाव में है. यहां आधा दर्जन घरों के साथ-साथ कई दुकानों को आग हवाले कर दिया गया है. फिलहाल स्थिति नियंत्रण में लेकिन फिर भी तनावपूर्ण बनी हुई है. पुलिस अभी भी यहां तैनात है.
घटनास्थल पर मौजूद एक चश्मदीद के मुताबिक़ शुक्रवार शाम क़रीब 5 बजे छपवा-रक्सौल मुख्य मार्ग यानी एनएच-28 पर भाड़ी संख्या में लोग मूर्ति विसर्जन के लिए सिकरहना नदी तट जा रहे थे. इस जुलूस में शामिल लोग खुशी में पटाखे भी चला रहे थे. अमीर खान चौक पर कुछ शरारती तत्वों ने पटाखों को जलाकर पास के मुहल्ले में फेंकना शुरू कर दिया. इस मुहल्ले में खासतौर पर एक ही समुदाय से जुड़े लोग रहते हैं. इनमें एक पटाखा एक व्यक्ति के घर पर गिरा और उसके घर में आग लग गयी. इस बीच लाउडस्पीकरों पर लगाए जा रहे नारे और पटाखों की आवाज़ से उन्होंने कुछ और समझ लिया और जुलूस पर पथराव कर दिया. बस पथराव होना था कि भगदड़ मच गयी अब जुलूस की ओर से भी पथराव व उनके घरों पर हमले शुरू हो गए. दोनों ओर से जमकर पथराव हुआ. जुलूस में शामिल आक्रोशित भीड़ ने कसाई टोला की आधा दर्जन झोंपड़ियों को आग के हवाले कर दिया. कई दुकानों में आग लगा दी गई. इस पथराव के दौरान पेट्रोल बम फेंके जाने की भी ख़बर है. लेकिन पेट्रोल बम फेंके जाने की बात को एसपी जितेन्द्र राणा ने खारिज किया है.
बताते चलें कि दो दिन पूर्व भी यहां मुहर्रम के जुलूस में साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने की कोशिश की गयी थी, लेकिन जुलूस की ज़िम्मेदारी संभाल रहे लोगों की सूझबूझ से माहौल को बिगड़ने से बचा लिया गया था.
यह कहानी सिर्फ़ तुरकौलिया व सुगौली की नहीं है. बल्कि पूर्वी चम्पारण के कई गांवों में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना हुआ है. इसमें रामगढ़वा, कटहां, छौड़ादानो व गोबरी गांव का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. शुक्रवार की शाम मोतिहारी में भी झूठी अफ़वाह फैलाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गयी. वहीं पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर में भी बुधवार को मुहर्रम के जुलूस के दौरान पथराव करके माहौल ख़राब करने की कोशिश की गयी, लेकिन प्रशासन व मुहर्रम का जुलूस निकालने वालों की सूझबूझ से शहर जलने से बच गया. हालांकि इस घटना में आधा दर्जन लोग घायल हुए तो वहीं इस माहौल को अपने आंखों से देखकर 75 साल के एक बुजुर्ग भट्टू मियां की हार्टअटैक आने की वजह से मौत हो गयी.
मोतिहारी में दैनिक हिन्दुस्तान से जुड़े एक पत्रकार बताते हैं कि अब तक ये सुनते आ रहे थे कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवा बंद की जाती हैं, लेकिन इस बार पहली बार पूर्वी चम्पारण में भी पिछले 72 घंटों से इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद है. शुक्रवार के दिन कुछ घंटों के लिए मोबाईल सेवा भी बंद कर दी गयी थी.
वे आगे बताते हैं कि इंटरनेट सेवा बंद होने के बावजूद इलाक़े में तरह-तरह की अफ़वाहें लगातार फैलायी जा रही हैं. शुक्रवार की शाम मोतिहारी शहर में भी दंगा होने की अफ़वाह फैला दी गयी थी.
यहां के मनपसंद समझदार लोगों का यह भी कहना है कि शरारती तत्वों की अफ़वाहों के अलावा यहां के स्थानीय अख़बारों की भूमिका काफी चिंताजनक है. सारे अख़बार एक ख़ास समुदाय को दोषी मानते हुए एकतरफ़ा ख़बरें लिख रहे हैं. यहां बताते चलें कि पिछली मुहर्रम के मौक़े पर मोतिहारी के अख़बारों ने ही पाकिस्तानी झंडा लहराए जाने की ख़बर को प्रकाशित किया था, बाद में मालूम हुआ कि पूरी ख़बर ही बेबुनियाद थी. उस ख़बर की पूरी तहक़ीक़ात TwoCircles.net द्वारा की गयी थी. ( आप इस ख़बर को यहां पढ़ सकते हैं )
बताते चलें कि आज़ादी के पहले और बाद भी चम्पारण देश के लिए काफी अहम रहा. कभी जवाहरलाल नेहरू तक ने कहा था कि यह शहर भारत के महानगर वाला शहर हो सकता है. 1974 की संपूर्णक्रांति में भी चम्पारण की अहम भूमिका थी. लोग बताते हैं कि जेपी आन्दोलन के बाद से इस शहर की हालत बेहतर होने के बजाय लगातार बिगड़ती रही. गांधी की इस ज़मीन पर गांधी से जुड़ी धरोहरों को भी धीरे-धीरे ख़त्म कर दिया गया. कभी इस ज़मीन पर जनसंघ यहां सक्रिय हुआ करता था, लेकिन अब यहां बीजेपी का राज है. यहां यह भी बताना ज़रूरी है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा बिहार में हार गई, मगर चम्पारण में उसका दबदबा क़ायम रहा. चम्पारण में भाजपा का न सिर्फ़ वोट शेयर बढ़ा है, बल्कि दूसरे ज़िलों की तुलना में अच्छी-ख़ासी सीटों पर सफलता भी मिली है. पश्चिम व पूर्वी चम्पारण जिले में कुल 21 सीटें हैं. इन 21 सीटों में 12 भाजपा व एक लोजपा को मिली हैं, जबकि पूरे बिहार में भाजपा महज़ 53 सीटों पर ही सिमट कर रह गयी थी.
इन दिनों चम्पारणवासी अपने गौरवशाली इतिहास का शताब्दी वर्ष मना रहे हैं. गांधी के सत्याग्रह को हर पहलू से याद किया जा रहा है, लेकिन सच पूछें तो चम्पारण को इतिहासकारों ने भले ही कभी अहिंसा के प्रयोगस्थली के तौर पर देखा हो, लेकिन अब जब भी चम्पारण का इतिहास लिखा जाएगा तो इसकी चर्चा हिंसा फैलाने व साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने वाले शरारती तत्त्वों की प्रयोगशाला के तौर पर होगा.