कलीम अज़ीम
मुंबई: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ‘कैराना हिन्दू पलायन’ रिपोर्ट को मुंबई के एक सामाजिक संगठन ‘बेबाक कलेक्टीव’ ने आधारहीन बताते हुए इस रिपोर्ट को निरस्त करने मांग की है.
शुक्रवार 14 अक्टूबर को मुंबई में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने इस रिपोर्ट को सत्तापक्ष के दबाव आकर बनाने का आरोप लगाया है. उनके मुताबिक़ पूरी रिपोर्ट झूठी है.
गौरतलब रहे कि मई – जून में भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने कैराना में मुसलमानों की वजह से हिन्दू समुदाय के पलायन करने का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर उछाला था. हुकुम सिंह के आरोपों को आधार बनाकर सरकार ने आनन-फानन में राष्ट्रीय मानवाधिकार को जांच की ज़िम्मेदारी सौंपी थी. इस आयोग ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट प्रशासन को सौंपी है.
मुंबई के बेबाक क्लेक्टिव ने इस रिपोर्ट पर कई सवाल खड़ा किए हैं. इस रिपोर्ट के आने के बाद इस पर रिसर्च करने वाले अकरम चौधरी बताते हैं कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रिपोर्ट में 25 हज़ार हिन्दू परिवार के कैराना से पलायन करने बात कही गई है, जो कि पूरी तरह से ग़लत है. हमने जब इसकी जांच की तो पता चला कि सिर्फ़ 270 परिवार ही कैराना से बाहर गए हैं, वह भी 12 साल पहले. डर का असल माहौल तो मीडिया की सलेक्टीव पॉलिसी ने पैदा किया है.
मानवाधिकार आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक़ कैराना में लड़कियों से छेड़छाड़ में ‘मुस्लिम गुंडे’ ज़्यादातर लिप्त हैं. वहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दंगा पीड़ितों से स्थानीय जाट समुदाय को डर है. अकरम चौधरी मुस्लिम शब्द पर आपत्ति जताते हुए कहते हैं कि यह संविधान के ख़िलाफ़ है. आरोपी के नाम के साथ धर्म को जोड़ना असंवैधानिक है.
उन्होंने सवाल खड़ा किया कि कैराना में दूसरे धर्मों के लोग भी तरह-तरह की गुंडागर्दी में लिप्त हैं, पर सिर्फ़ मुस्लिम नाम को क्यों उछाला जा रहा है. वहीं आगे वे कहते हैं कि दंगा पीड़ित तो खुद डर के साथ यहां पनाह लिए हुआ है. ये बात सब जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय कितना प्रभावशाली हैं.
अकरम अपनी रिसर्च के दौरान कैराना पुलिस थाने भी गए. वहां छेड़छाड़ के कुल पांच मामलों में तीन मामलों की एफ़आईआर और क्राईम नंबर नहीं थे. इसी तरह रोज़नामचा रजिस्टर भी तीन मामलों की सफ़ाई नहीं दे सका.
शामली में दंगा पीड़ितों के लिए काम करने वाले ममता वर्मा बताती हैं, ‘मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के पीड़ित परिवार शामली के अपने पुश्तैनी मकान छोड़ कैराना में आ बसे हैं, जो अब भी कैराना में जाटो से डरे हुए हैं.’
मुज़फ़्फ़रनगर दंगा पीड़िता फिरदौस बताती हैं, ‘हम दंगो के बाद तो बसे पर आज भी हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते. बच्चों के स्कूल की कोई योजना प्रदेश के सरकार ने नहीं बनायी है. ऊपर से अब भी कैराना में जाटो के डर के साये में जीना पड़ रहा है.’ फिरदौस मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को सांसद हुकूम सिंह की पर्सनल रिपोर्ट बताती हैं.