अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
अलीगढ़ : ज़मानत पर रिहा हुए सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फिर से जेल की सलाखों पीछे हैं. उन्हें दुबारा जेल गए 18 दिन हो चुके हैं लेकिन उनके समर्थक अभी भी सड़कों पर हैं. बिहार के विभिन्न इलाक़ों में अभी भी उनकी रिहाई को लेकर धरना-प्रदर्शन जारी है. दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना आयोजित हो चुका है. मगर अब उनके समर्थकों ने सीवान में चल रहे एक धरने में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अल्टीमेटम दिया है कि अगर 10 दिनों के अंदर लालू यादव शहाबुद्दीन की रिहाई के लिए कुछ नहीं करते हैं तो कार्यकर्ता भूख हड़ताल और चक्का जाम करने का आंदोलन करेंगे. वहीं गोपालगंज राजद विंग पार्टी से लालू यादव को ही निकालने का प्रस्ताव पारित कर चुकी है.
मो. शहाबुद्दीन के मसले को लेकर TwoCircles.net ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सेन्टर ऑफ़ एडवांस स्टडी इन हिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर मोहम्मद सज्जाद से लंबी बातचीत की. डॉ. सज्जाद खुद बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले हैं. कुछ महीने पहले तक वे एएमयू की किशनगंज शाखा के निदेशक थे. उन्होंने बिहार की मुस्लिम राजनीति को न सिर्फ़ समझा है, बल्कि कई किताबें भी लिखी हैं. ‘मुस्लिम पॉलिटिक्स इन बिहार’ उनकी काफी चर्चित व प्रसिद्ध पुस्तक रही है. उनका शोध भी इसी विषय पर रहा है.
TwoCircles.net के साथ बातचीत में डॉ. सज्जाद ज़मानत पर रिहा हुए मो. शहाबुद्दीन और फिर उनके ज़मानत रद्द होने की पूरी प्रक्रिया में हुई राजनीतिक सक्रियता को आला दर्जे के नेताओं द्वारा ध्रुवीकरण का खेल बताते हैं. उनका कहना है, ‘इस पूरे खेल को देखने से मालूम पड़ता है कि ध्रुवीकरण का खेल टॉप लेवल पर चल रहा है. लेकिन यह खेल खेलने वाले समझ लें कि आज के परिप्रेक्ष्य में धार्मिक ध्रुवीकरण का एकमात्र लाभ एक ही पार्टी को मिलेगा और वो पार्टी है बीजेपी.’
डॉ. सज्जाद का कहना है, ‘11 साल में जेल से रिहा होने के बाद जिस तरह से गाड़ियों का क़ाफ़िला निकला. इस पर दो सवाल गंभीर सवाल खड़े होते हैं. अगर ऐसा उनकी राजनीतिक पार्टी ने किया तो फिर उस पार्टी का लॉ एंड ऑर्डर और गवर्नेंस को लेकर जो वादे है, उन पर सवाल खड़े होते हैं. और अगर ऐसा उनकी कम्यूनिटी ने किया तो फिर यह सवाल उनके कम्यूनिटी पर खड़ा होता है कि किसी कम्यूनिटी का हीरो एक गैंगस्टर क्यों बन जाता है?’
बकौल, डॉ. सज्जाद इसी सीवान से एक वक़्त आमिर सुबहानी भी निकले. आमिर सुबहानी कुछ दिनों तक यहां के युवाओं के रोल-मॉडल भी रहे. लेकिन उसी ज़माने में जब शहाबुद्दीन उठते हैं तो शहाबुद्दीन भी युवाओं के रोल-मॉडल बन जाते हैं. हर मुहल्ले में एक छोटा गुंडा तैयार हो गया और खुद को शहाबुद्दीन की तरह बनने की बात करने लगता है. आख़िर ऐसा क्यों? इस सवाल पर समाज व सरकार दोनों को सोचना पड़ेगा.
यह एक बड़ा सवाल है कि युवाओं का रोल-मॉडल कौन बनेगा? कला, संगीत, साहित्य, शिक्षा, एक्टिविज़म, खेल, पत्रकारिता और इस तरह की चीज़ों में आगे जाने वाले लोग रोल-मॉडल बनेंगे या कोई अपराधी या गैंगस्टर युवाओं का रोल-मॉडल होगा?
इस लंबी बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में डॉ. सज्जाद बताते हैं, ‘ये जो तेरा डॉन, मेरा डॉन चल रहा है. यही समाज को बर्बाद किए हुए है. शहाबुद्दीन को कोर्ट ने बरी नहीं किया है, उन्हें सिर्फ़ ज़मानत मिली थी कि इतना बड़ा जश्न. इससे पहले मुन्ना शुक्ला भी बरी होकर आए थे. लेकिन इस तरह से तो गाड़ियां नहीं निकली थीं. पप्पू यादव भी बाहर आएं, उनमें भी ऐसा नहीं हुआ.’
डॉ. सज्जाद का कहना है कि सवाल यह नहीं उस कम्यूनिटी के डॉन को छोड़ा गया है तो हमारे कम्यूनिटी के डॉन को क्यों नहीं छोड़ा गया? सवाल यह है कि किसी भी कम्यूनिटी में कोई डॉन उस कम्यूनिटी का हीरो कैसे हो जाता है? यह बहुत बड़ा व गंभीर सवाल है. यह हिन्दू-मुस्लिम का सवाल नहीं है. यह भूमिहार-राजपूत-यादव का सवाल नहीं है. और यह सवाल बहुत नया भी नहीं है. यह बहुत पुराना सवाल है और इस सवाल पर गहराई से सोचने की ज़रूरत है.’
डॉ. सज्जाद से लंबी बातचीत के कुछ अंश आप नीचे तीनों वीडियो में देख सकते हैं: