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लखनऊ : मोदी सरकार द्वारा अयोध्या में रामायण म्यूजियम बनाने की घोषणा के साथ ही अखिलेश सरकार द्वारा भी अयोध्या में अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला थीम पार्क बनाने की घोषणा को रिहाई मंच ने सपा सरकार की नर्म हिन्दुत्वादी राजनीति बताया है.
मंच ने आरोप लगाया कि सपा-भाजपा गठजोड़ 2017 के चुनाव को नर्म और कट्टर हिन्दुत्व के बीच केन्द्रित रखना चाहती हैं, ताकि संघ का भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का एजेंडा पूरा हो सके.
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि अखिलेश सरकार की कैबिनेट में अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला थीम पार्क बनाने की मंजूरी केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा द्वारा अयोध्या में रामायण म्यूजियम बनाने की घोषणा के साथ ही लिया जाना साफ़ करता है कि सपा और भाजपा में भारत को हिंदू-राष्ट्र बनाने के लिए कम्पीटीशन चल रहा है.
उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव की कैबिनेट द्वारा इस प्रस्ताव को पास करते हुए यह लिखा जाना कि इससे ‘भारतीय संस्कृति’ को बढ़ावा मिलेगा साबित करता है कि सपा भी भाजपा की तरह हिंदू संस्कृति को ही राष्ट्रीय संस्कृति मानती है.
उन्होंने कहा कि हिंदू संस्कृति को ही भारतीय संस्कृति के बतौर प्रचारित कर सपा देश की बहुलतावादी भारतीय संस्कृति को नकार रही है, जो उसके हिंदुत्वादी विचारधारा को अब खुलकर अपना लेने को पुष्ट करता है.
मंच महासचिव ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव के पूरे साढ़े चार साल की सरकार आरएसएस के हिंदुत्ववादी एजेंडे पर चलती रही है. इसी के तहत सपा ने अयोध्या में गीता बांटा, मथुरा में दुनिया का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर बनवा रही है, समाजवादी श्रवण यात्रा स्कीम चला रही है, जिसके तहत हिंदुओं को मुफ्त में धार्मिक पर्यटन करवाया जा रहा है. तो वहीं सात मॉडल सिटी योजना में सिर्फ हिंदू धर्म से जुड़े शहरों अयोध्या, चित्रकूट, बनारस, चरखारी, महोबा, वृंदावन और सीतापुर को शामिल किया गया है.
रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि अखिलेश सरकार जो मुसलमानों के वोट के सहारे सत्ता तक पहुंची है, ने इसी हिन्दुत्वादी सांस्कृतिक समझ के कारण 2015 में सूचना और जनसम्पर्क विभाग द्वारा ‘शाने विरासत’ शीषर्क से जो कैलेंडर प्रकाशित किया था, उसमें सिर्फ़ बनारस के मंदिरों और घाटों की तस्वीर छापी थी. यहां तक कि उसमें दुनिया के सातवें अजूबे के बतौर प्रसिद्ध ताजमहल, बौद्ध धर्मस्थल सारनाथ, ज्ञानवापी मस्जिद, लखनऊ के विश्व प्रसिद्ध इमामबाड़े तक कि तस्वीर नहीं थी.
उन्होंने कहा कि सपा सरकार की कैबिनेट में ऐसे साम्प्रदायिक निर्णय का पास हो जाना स्पष्ट करता है कि सपा सरकार में मुस्लिम मंत्रियों की वही हैसियत है जो मोदी सरकार में मुख्तार अब्बास नक़वी और नज़मा हेप्तुल्ला की है.
उन्होंने कहा कि सपा शायद अब इस सच्चाई को मान चुकी है कि उसे मुसलमानों का वोट नहीं मिलने वाला है. इसीलिए वो हिंदू वोटों के लिए खुलकर हिंदुत्ववादी राजनीति कर रही है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आस्ट्रेलिया से पढ़ाई करने वाले अखिलेश यादव को जानना चाहिए कि 1857 की साझी शहादत-साझी विरासत की नगरी अयोध्या-फैज़ाबाद का जो वर्तमान स्वरूप दिखता है उसे मुस्लिम नवाबों ने बसाया था. ऐसे में अगर पर्यटन को ही बढ़ावा देना है तो अखिलेश यादव फैज़ाबाद को बसाने वाले नवाब सआदत हसन खान का महल जिसे अफीम कोठी कहा जाता है, बड़ी बुआ की मजार, गुलाबबाड़ी, बहू बेगम का मक़बरा, इरानी स्थापत्य कला की बेहतरीन नजीर ऐतिहासिक चौक की दरें और मोती महल का संरक्षण कर उसे पर्यटन के लिए विकसित करें. जिसकी शुरूआत उन्हें सबसे पहले गुलाबबाड़ी के एक हिस्से पर कब्ज़ा करके बनाए गए सपा ज़िला कार्यालय को वहां से हटाकर करनी चाहिए.
वहीं इन दोनों घोषणाओं को चुनावी राजनीति का हिस्सा बताकर सपा और भाजपा पर सवाल उठाने वाली मायावती को भी चाहिए कि बहू बेगम मक़बरे के बाहरी हिस्से पर कब्ज़ा करके बनाए गए बसपा ज़िला कार्यालय को वहां से हटाएं.