TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : मुज़फ़्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा के बाद लगभग 15 लाशें गायब हैं, जो अब तक नहीं मिल सकी हैं. यह सब ग्राम लिसाढ़, हड़ौली, बहावड़ी, ताजपुर सिंभालका के निवासी हैं. सरकार कहती है कि लाश मिलने पर इन्हें मृत घोषित किया जाएगा, जबकि चश्मदीद गवाह कहते हैं कि हमारे सामने हत्या हुई.
हैरानी की बात यह है कि पुलिस तो घटना स्थल पर तुरंत पहुंच गई थी, फिर यह लाशें किसने गायब कीं? 18 से अधिक लोग गुमशुदा हैं, जिनके परिजनों ने एफ़आईआर दर्ज कराई है. अगर वो जीवित होते तो अब तक लौट आते. इसी तरह लगभग 10 हत्याएं जनपद बागपत में हुई, जिन्हें सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा में हुई मौत नहीं माना है. 25 से अधिक मामले ऐसे भी हैं जिनकी निष्पक्ष विवेचना नहीं हुई और इन व्यक्तियों की सांप्रदायिक हत्याओं को पुलिस ने आम लूट पाट की घटनाओं में शामिल कर दिया. मुख्य साजिशकर्ता भाजपा और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं और इनसे जुड़े संगठन के नेताओं के विरुद्ध धारा-120 बी आपराधिक साजिश रचने के जुर्म में कोई जांच ही नहीं की गई. इस तरह सरकार ने दंगा क्यों हुआ, किसने कराया, कौन साजिशकर्ता था उन पर पर्दा डाल दिया.
इन तमाम बातों का खुलासा मुज़फ़्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा की चौथी बरसी पर बुधवार को उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में स्थित यूपी प्रेस क्लब में रिहाई मंच द्वारा एक सम्मेलन में जारी एक रिपोर्ट ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खड़ी है?’ से होता है. यह रिपोर्ट मानवाधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट असद हयात, रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव व प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने तैयार की है.
इस रिपोर्ट में कहा कहा गया है कि ग्राम लिसाढ़ में 15 मुसलमानों का क़त्ल हुआ, जिसके संबन्ध में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और चश्मदीद गवाहों ने अपनी गवाही दी. गवाहों का कहना था कि उन्होंने क़त्ल होते हुए और लाशों को गिरते हुए देखा, परन्तुं किसी भी व्यक्ति की लाश ग्राम लिसाढ़ में नहीं मिली. आखिर वह लाशें कहा गईं? आश्चर्यजनक बात यह थी कि इन्हीं 13 व्यक्तियों में से 2 लाशें गांव लिसाढ़ से लगभग 70 किलो मीटर दूर जनपद बागपत की नहर से बरामद हुईं. प्रश्न यह है कि वह लाशें वहां कैसे पहुंचीं? यह लाशें दंगाई व्यक्तियों द्वारा पुलिस के सहयोग के बिना नहीं फेंकी जा सकतीं. 11 लाशें अभी तक नहीं मिल सकी हैं.
यह रिपोर्ट बताती है कि ग्राम मीमला के जंगल में पांच मुस्लिम महिलाओं व पुरूषों की लाशें देखी गई थीं, जिसके विषय में ग्रामीणों द्वारा पुलिस को सूचित किया गया. पुलिस आई परन्तु पंचनामा नहीं भरा और अगले दिन प्रातः यह लाशें बिना पंचनामा भरे पुलिस द्वारा हटा दी गईं. इन्हें कहां फेंका गया इसका कोई पता नहीं है. यह लाशें किसकी थीं, इसका भी पता नहीं चला है. इसके अतिरिक्त ग्राम हड़ौली निवासी जुम्मा, ग्राम बहावड़ी निवासी शकील, ग्राम ताजपुर सिंभालका के अब्दुल हमीद की लाशें भी आजतक नहीं मिल सकीं. जिन्हें क़त्ल करके दंगाईयों द्वारा सबूत मिटाने के उद्देश्य से ग़ायब कर दिया गया. यह सब पुलिस की मिली-भगत के बिना संभव नहीं है.
इतना ही नहीं, इसके अतिरिक्त 15 व्यक्ति अभी तक गुमशुदा हैं, जिनके सम्बन्ध में अभी तक कोई जानकारी नहीं है. रिहाई मंच को आशंका है कि इनकी हत्याएं हो चुकी हैं और लाशें गायब कर दी गई हैं. लेकिन चूंकि लाशें नहीं मिली हैं, इसीलिए इनके परिजनों को मुआवजा नहीं मिला है.
यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा मुसलमानों को लक्ष्य करके हिंसा 28 अगस्त 2013 से ही प्रारम्भ हो गई थी. कई गांवों में मस्जिदों और ईदगाहों पर हमले हुए, जिनमें सम्पत्तियों को नुक़सान पहुंचाया गया. मुसलमानों को पीटा गया और घायल किया गया. जिसकी इस सम्बंध में कई रिपोर्ट दर्ज हैं. इन हमलों में तेज़ी 7 सितम्बर की पंचायत के बाद आई. ग्राम वाजिदपुर, जनपद बागपत में मस्जिद में गोलियां चलाई गईं, जिसमें दो लोग मारे गए और कई घायल हुए. अनेक हत्याएं ऐसी हैं जो 15 सितम्बर 2013 से दो-तीन माह बाद तक जारी रही हिंसा में हुईं. इनकी पृष्ठभूमि में पुरानी दुश्मनी नहीं थी, बल्कि साम्प्रदायिकता थी.
यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि इन घटनाओं में कई क़त्ल मुज़फ्फ़रनगर शहर में हुए. बुढ़ाना थाना अन्तर्गत तिहरा हत्या कांड इसी की कड़ी है. बागपत जनपद में थाना रमाला के ग्राम सूप में किरठल निवासी एक मुस्लिम स्कूल मास्टर की हत्या और ग्राम वेल्ली थाना बुढ़ाना में करीमुद्दीन की हत्या इसी कड़ी में है. हत्याओं का यह सिलसिला जनपद मेरठ में भी जारी रहा जहां कई गावों में निर्दोष मुसलमानों की हत्याएं र्हुइं. शाहपुर जनपद मुज़फ्फ़रनगर में चांदपुर निवासी इरफान पुत्र मीर अहमद की हत्या हुई जिसे पुलिस द्वारा प्रेम-प्रसंग में हुई हत्या बता दिया गया.
सरकार द्वारा जिन हत्याओं को स्वीकार किया गया है वह आंकड़ा अलग है. ये हत्याएं ग्राम बहावड़ी, लाख, फुगाना, खरड़, कुटबा में हुईं, जिनकी संख्या 25 हैं.
रिहाई मंच द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट मुज़फ़्फ़रनगर दंगे और सरकार की भूमिका पर कई सवाल खड़े करती है. उन तमाम सवालों को TwoCircles.net सिलसिलेवार तरीक़े से अपने पाठकों के लिए आगे प्रकाशित करेगी.