Home India News ‘इन दलों को चोर-चोर मौसेरे भाई की संज्ञा दें तो ग़लत नहीं...

‘इन दलों को चोर-चोर मौसेरे भाई की संज्ञा दें तो ग़लत नहीं होगा’

राजीव यादव

भारतीय लोकतंत्र में सांप्रदायिक हिंसा राजनीतिक दलों के लिए आवश्यकता बन गयी है. वर्तमान समय में कथित गौवध सांप्रदायिक हिंसा का कारण है, परन्तु हिंदू महिला के साथ मुसलमानों द्वारा कथित बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं भी लंबे समय से सांप्रदायिक हिंसा का कारण बनती रही हैं.

दादरी के अख़लाक़ हत्याकांड के पीछे अगर गौ-हत्या की झूठी कहानी का गढ़ा जाना एक षडयंत्र था तो वहीं मुज़फ़्फ़रनगर, फैज़ाबाद और अस्थान (प्रतापगढ़) की सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में हिंदू महिला के साथ मुसलमानों द्वारा कथित बलात्कार/छेड़छाड़ किए जाने के झूठे आरोप लगाया जाना सांप्रदायिक हिंसा का षडयंत्रकारी आधार बना है.

गौहत्या और हिंदू महिला की इज़्ज़त ऐसे भावुक मुद्दे हैं, जिन पर कहानियां गढ़कर और अफ़वाहें फैलवाकर सांप्रदायिक हिंसा कराई जाती है और राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा किया जाता है.

राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा करवाते हैं और जब सत्ता हासिल कर लेते हैं तब पीड़ितों को न्याय दिलाने का अपना राजधर्म निभाने से गुरेज करते हैं. अपने रचे षडयंत्रों के आधार पर सत्ता हासिल करने वाला राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के उपरांत कैसे अपने ही लोगों को क़ानून के दायरे में ला सकता है. उस समय उनका मक़सद सांप्रदायिक हिंसा में लिप्त अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को बरी करना हो जाता है.

यह भी होता है कि दूसरे राजनीतिक दल के नेताओं और कार्यकताओं के विरुद्ध सत्तासीन राजनीतिक दल दोस्ताना रवैया अख्तियार कर लेता है और उन षडयंत्रकारी अपराधियों के विरुद्ध दर्ज हुए मामलों की निष्पक्ष विवेचना नहीं की जाती, जिसका लाभ अपराधियों को मिलता है. नतीजे में यह सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं कि दंगा किसका षडयंत्र था और उसमें कौन-कौन शामिल थे.

आज के राजनीतिक परिदृश्य में अगर हम इन राजनीतिक दलों को चोर-चोर मौसेरे भाई की संज्ञा दें तो कुछ भी ग़लत नहीं होगा. प्रबुद्ध नागरिकों का यह देश धर्म है कि वे ऐसे अनुत्तरित सवालों पर आवाज़ उठाएं और राजनीतिक दलों की उन महानुभावों को बेनक़ाब करें जिनकी षडयंत्रकारी भूमिका थी और साथ ही सत्ता में बैठे शासकों को भी उनका राजधर्म याद दिलाएं. साथ ही जनता को भी आगाह करें कि लोकतंत्र में जब वे अपना शासक चुन रहे हों तब राजनीतिक व्यक्तियों की कारगुजारियों को भी अपने संज्ञान में लें.

[राजीव यादव मानवाधिकार एक्टिविस्ट हैं. लम्बे समय से उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर कार्य कर रहे हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]