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बसने से पहले ही उजड़ गएं दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के ‘टीचर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूटस’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के रोज़गार का एक और सुनहरा ख़्वाब चूर-चूर होता नज़र आ रहा है. पूर्व केन्द्रीय सरकार ने जून, 2012 में बड़े ज़ोर-शोर से ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ स्कीम का ऐलान किया था. ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ स्कीम के तहत दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के समाज से शिक्षा की रोशनी को आगे लाना और चारों ओर फैला देने का मक़सद था. लेकिन आज आलम यह है कि ये स्कीम अभी तक अपने पैरों पर ही खड़ी नहीं हो सकी है.

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उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक अपवाद को अगर छोड़ दें तो कहीं भी ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ दिखाई नहीं देते हैं. सुदूर पूरब में कागज़ी औपचारिकता के नाम पर कुछ ‘टीचर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूटस’ ज़रूर खोले गए हैं, मगर यह भी गुमनामी के अंधेरे में हैं.

आरटीआई से मिली जानकारी बताती है कि ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ स्कीम के तहत कुल 196 टीचर ट्रेनिंग सेन्टर खोलने की बात कही गई थी. लेकिन बाद में सिर्फ़ 122 सेन्टर ही पारित किया गया. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि अब तक पूरे देश में सिर्फ़ 25 ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ ही कार्यरत है.

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जानकारी यह भी बताती है कि गुजरात, हरियाणा, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा व राजस्थान जैसे राज्यों में तो ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ खुल चुके हैं. लेकिन जिन राज्यों में तथाकथित सेकूलर पार्टियों की सरकार है, वहां आज तक यह सेन्टर महज़ एक सपना बना हुआ है.

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में कुल 36 ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ खोले जाने थे, लेकिन आज तक एक भी सेन्टर यहां नहीं खोला जा सका है. जबकि साल 2013-14 में 21 सेन्टर खोलने के खातिर केन्द्र सरकार द्वारा 1409.97 लाख रूपये जारी भी किया जा चुका है.

यही हाल बिहार का भी है. यहां 8 ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ पारित किया जा चुका है. लेकिन अभी तक एक भी सेन्टर हक़ीक़त के धरातल पर कहीं नज़र नहीं आता. जबकि यहां साल 2012-13 में 1230 लाख रूपये उस समय के केन्द्र सरकार द्वारा जारी किया जा चुका है.

हालांकि यहां बात भी स्पष्ट रहे कि उत्तर प्रदेश में सरकार ने फिलहाल अपने 21 ब्लॉकों में बनने वाले ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूट ऑफ टीचर एजुकेशन’ के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया है. जुलाई 2015 में उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा सचिव एचएल गुप्ता ने तमाम डायट प्राचार्यों को एक नोटिस जारी कर निर्देश दिया कि सभी निर्माण कार्य रोक दिए जाएं और जितना पैसा खर्च हुआ है, उसकी जानकारी उपलब्ध करा दी जाए. क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार ने पैसे देने से इन्कार कर दिया है. केन्द्र की मोदी सरकार सिर्फ़ श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर व बस्ती में बनने वाले सेन्टर के लिए वित्तीय मदद देने को तैयार है.

अब आप ही सोचिए, जहां देश की दलित-आदिवासी व अल्पसंख्यकों की बड़ी तादाद अपेक्षा के अंधेरों में जकड़ी हुई समान अवसर न मिलने की त्रासदी भोग रही हो, वहां सरकारी-तंत्र की ये उपेक्षा बताती है कि प्राथमिकताओं का स्तर कितना गिर चुका है.

संविधान ने सभी को समानता का अवसर दिया है. बराबरी का अधिकार दिया है. सरकारों का फ़र्ज़ है कि इन अधिकारों को ज़मीन पर लागू करे, मगर इसके लिए नियत का साफ़ होना बेहद ही ज़रूरी है. ‘ब्लॉक इंस्टीट्यूटस ऑफ़ टीचर एजुकेशन’ की कहानी दरअसल इसी नियत की बानगी है. पूरे देश भर में दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के नाम पर अपनी उपलब्धियों का ढ़िंढ़ोरा पीटने वाले सरकारी-तंत्र को ऐसी कड़वी हक़ीक़तों से सबक़ लेना चाहिए और समय रहते आंखें खोल लेना चाहिए.