विक्की कुमार
आज किसी काम से पटना जाना हुआ. संयोग से मैं जिस प्राइवेट गाड़ी से पटना जा रहा था उसी गाड़ी में एक शिक्षक मौजूद थे. गाड़ी 10 सीटों वाली टाटा सूमो थी, सो सारे सवार एक दूसरे से बात कर सकते थे.
हालांकि मैं, शिक्षक महोदय और एक यूपीएसी की तैयारी करने वाला छात्र उन 10 सवारियों में शामिल थे. अचानक शिक्षक महोदय ने बिहार में शराबबंदी को सही ठहराते हुए अपनी बात शुरू की. फिर क्या था मैं भी ऐसे ही मौके का इंतजार कर रहा था जो सोशल मुद्दे उठाए और हमारी पटना की दुरी 3 घंटे होने के बावजूद 10 मिनट की महसूस हो. बात शराबबंदी के सही और गलत से शुरू हुई और कांग्रेस-बीजेपी होते हुए कश्मीर पर रुक गई. मैं भी कश्मीर मसले को समझना चाह रहा था और शिक्षक महोदय की बातों से ऐसा लगा कि वो इसे समझाने में मेरी मदद कर सकते है. साथ ही यूपीएसी की तैयारी करने वाले छात्र उसमें तर्क-वितर्क कर कश्मीर मसले को समझने में मदद कर रहे थे.
हालांकि यह रोचक था कि आज के शिक्षक महोदय शायद ही इतने गहन विचार रखते होंगे और ख़ासकर सरकारी स्कूल के शिक्षक. अब देखिये शिक्षक समुदाय का समूह मेरे ऊपर आरोप न लगाए कि मैं शिक्षक समुदाय की बेइज्जती कर रहा हूं. आज की शिक्षा का दर्जा देखकर तो ऐसा ही लग रहा है और ये शिक्षक समुदाय के लोग भी जान रहे है अगर मैं गलत होता तो दिल्ली सरकार द्वारा सरकारी स्कूल की 6ठी और 9वीं कक्षा के छात्र की रिपोर्ट ऐसी नहीं आती कि सरकारी स्कूल के बच्चे अपनी हिंदी की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सकते. खैर छोड़िये इन सब बातों को. यह एक अलग मुद्दा है और इस पर अलग बहस हो सकती है. मैं जो समझना चाह रहा था वह था कश्मीर मसला.
मैं आपको बता दूं जो शिक्षक हमारे साथ प्राइवेट गाड़ी में पटना जा रहे थे वे एक शिक्षक होने के साथ-साथ मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखते थे. उनके धर्म को बताने के पीछे मेरा यह कारण है कि उन्होंने मुझे ऐसी कई बातों से अवगत कराया जो हर किसी को समझना चाहिए, चाहे वो हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखता हो या मुस्लिम धर्म से. कश्मीर मसले को समझने के लिए मैंने एक साधारण-से सवाल ‘क्या आपका धर्म आतंकवाद को समर्थन करता है’ से शुरू किया? उन्होंने कहा, ‘देखिये हमारा धर्म ही नहीं किसी का धर्म आतंक का समर्थन नहीं करता है. और रही बात आतंकियों कि तो मैं आपको बता दूं कि शायद वे इस्लाम को सही से नहीं जानते है. अगर जानते तो ऐसी हरकत कभी नहीं करते.’
फिर मेरा दूसरा सवाल था, ‘फिर कश्मीरियों में भारत के प्रति इतनी नफरत क्यों है?’ उनका जवाब था, ‘देखिये, हम और हमारी सरकार ये तो कहती है कि कश्मीर हमारा है लेकिन कभी यह नहीं कहती कि कश्मीरी हमारे हैं. अगर कहती भी है तो सिर्फ वो कहने को होता है हकीकत में नहीं.’
मेरा तीसरा सवाल था कि जो लोग कश्मीर को स्वतंत्र होने की बात कहते है क्या वे सही हैं? तो इस बार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र ने मुझसे कहा, ‘देखिये जनाब वे बिलकुल गलत कर रहे है. मान लीजिए वे स्वतंत्र हो भी जाते है तो उनके पास है क्या कि वे स्वतंत्र होने के बाद कुछ कर सकें.’ फिर हमारी बात ऐसे कई मुद्दे को समझते-समझाते इस बात पर आकर रुक गई कि आखिर इस मसले का हल क्या है? उन शिक्षक का जवाब सही या गलत आप खुद समझ सकते है. उनका कहना था कि सबसे पहले तो इसे हर समुदाय को हर संघठन हर सरकार को पुरानी बातों को भूलकर एक मंच पर आकर इसका हल निकलना चाहिए. कुछ आप मैनेज करे कुछ हम मैनेज करे और एक हल निकले. साथ ही उन्होंने कहा, ‘देखिये जनाब सबसे पहले तो सोचने वाली बात ये है कि आखिर लोग सड़कों पर आ क्यों रहे है? क्या एक बिजी व्यक्ति के पास इतना समय है कि वो अपने हाथों में पत्थर लेकर सड़को पर आये? कौन यह चाहता है कि हम ऐसा काम करे? क्या हम औरो की तरह सुबह 9 बजे ऑफिस जाये और शाम 4 बजे वापस घर नहीं लौट सकते? अपने बीवी-बच्चों के पास अपना समय बिताएं? अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सेविंग की योजना बनाएं. लेकिन कश्मीर के लोगों को देखकर ऐसा लगता है कि वे ऐसा नहीं सोचते होंगे.’
साथ ही उन्होंने बड़ी मजेदार बातों से अपनी बात ख़त्म की. उन्होंने कहा, ‘देखिये! हमारी सरकार को यह करना चाहिए कि वहां ऐसा माहौल बना दे कि लोग हाथों में पत्थर लेकर सडकों पर आने के बजाय हाथों में एक बैग लेकर सड़को पर तो आएं लेकिन अपने ऑफिस जाने के लिए, अपने बच्चों के भविष्य के लिए, अपनी मनी सेविंग के लिए. जब लोग इतने व्यस्त हो जायेंगे तो लोग ऐसे मुद्दे पर ध्यान ही देना बंद कर देंगे. और ऐसा सिर्फ एक तरीके से किया जा सकता है, सिर्फ और सिर्फ रोजगार का पहाड़ खड़ा करके.’
हमारी पटना की दूरी कब 3 घंटे की होने के बावजूद 10 मिनट में बदल गई पता ही नहीं चला.
[विक्की कुमार मीडिया के छात्र हैं और बिहार के अरवल में रहते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]