सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी: केंद्र की मोदी सरकार ने मुस्लिमों की समस्याएं सुनने के लिए देशभर में ‘प्रगतिशील पंचायत’ या ‘प्रोग्रेसिव पंचायत’ के नाम के तहत पंचायतों का आयोजन करने का निर्णय लिया है. सरकार की मानें तो यह अल्पसंख्यकों के उत्थान और उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास है लेकिन इस फैसले के बेहद राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं.
कुछ ही महीनों बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र इसे भारतीय जनता पार्टी का एक पैंतरा माना जा रहा है.
गौरतलब है कि ‘प्रगतिशील पंचायत’ की शुरुआत हरियाणा के मेवात जिले से हो रही है. ज्ञात हो कि मेवात जिला पिछले कई महीनों से साम्प्रदायिक घटनाओं के कारण सुर्ख़ियों में छाया हुआ है. इसकी शुरुआत कल यानी गुरुवार से होगी और इसमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी व अन्य केंद्रीय मंत्री शिरकत करेंगे.
इसके पहले भी मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा था, ‘अल्पसंख्यकों के लिए कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही न हों, बल्कि मैदानी स्तर पर भी नजर आनी चाहिए. इस संबंध में सरकारी अधिकारियों की अहम भूमिका है. उन्हें मैदानी स्तर तक लोगों के पास जाना होगा और प्रत्येक कल्याण योजनाओं की उचित निगरानी करनी होगी ताकि उनके लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सकें.’
बीते रविवार को रेडियो पर सुनाए गए ‘मन की बात’ के संस्करण में भी प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिमों को वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल करने पर कड़ा ऐतराज़ जताया था. उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय की बात दुहराते हुए कहा था, न मुसलमानों को पुरस्कृत करें, न तिरस्कृत करें. बल्कि उनका परिष्कार करें. मुसलमान कोई वोट की मंडी का माल नहीं और घृणा की वस्तु नहीं है. उसे अपना समझे.’
मोदी के इस वक्तव्य के बाद से लगातार मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की कोशिशें साफतौर पर देखी जा रही थीं. कुछ दिनों पहले भी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ हुई मीटिंग के बाद भी यही अवधारणा सामने आई थी.
कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफज़ल ने कहा है कि ये यूपी चुनाव के पहले भाजपा का महज़ एक हथकंडा है. मुसलमानों के खिलाफ बयान देने वाले अपने मंत्रियों के खिलाफ क्या मोदी कभी कुछ बोलेंगे?