अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रपुर/मोतिहारी (बिहार) : पूरा देश ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष’ सेलिब्रेट कर रहा है, लेकिन बिहार के लोग बुरी तरह हैरान हैं कि वो किस ‘गांधी’ को सच्चा माने और किसे झूठा. भाजपा के लोग केन्द्र सरकार द्वारा भेजे गए ‘गांधी’ को सच्चा गांधी बता रहे हैं. सच व झूठ के इस खेल में नौबत हंगामे की भी आ गई. भाजपा समर्थक पार्टी का झंडा लिए मुज़फ़्फ़रपुर स्टेशन पर घूमते नज़र आएं. अंततः नीतीश के ‘गांधी’ को वापस लौटना पड़ा और मोदी के ‘गांधी’ मोतिहारी के लिए रवाना हुए.
दरअसल, ‘चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष’ के अवसर पर केन्द्र व राज्य सरकार दोनों के ही इरादा में था कि प्रतीकात्मक रूप से गांधी के रूप का एक किरदार चम्पारण की बिहार की धरती पर आएगा और गांधी की हर उस एक्टिविटी का अनुसरण करेगा, जो गांधी ने यहां की ज़मीन पर सौ साल पहले किया था. लेकिन इस इरादे को अपने अंजाम तक पहुंचाने के खेल में केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ने अपने सरकारी गांधीगिरी में गांधी की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं.
स्पष्ट रहे कि 10 अप्रैल यानी पिछले पांच दिनों से राज्य सरकार की ओर से ‘गांधी’ का किरदार निभाते हुए डॉ. भोजनंदन प्रसाद सिंह मुज़फ़्फ़रपुर में घुम रहे थे. लेकिन शनिवार 15 अप्रैल को जब मुज़फ़्फ़रपुर से मोतिहारी रवाना होने की बात आई तो एक नए ‘गांधी’ के रूप में राजेन्द्र कुमार राठौर यात्रा से पहले मुज़फ़्फ़रपुर स्टेशन पहुंच गए. स्टेशन का माहौल बदल गया. भाजपा समर्थक तिरंगा के साथ-साथ पार्टी का झंडा लिए घूमने लगे. टकराव की स्थिति बनी, लेकिन इसमें राज्य सरकार के ‘गांधी’ डॉ. भोजनंदन प्रसाद सिंह के समर्थकों को पीछे हटना पड़ा. कुछ देर बाद एक मीटिंग करके भाजपा के झंडों को हटा लिया गया. आरपीएफ़ व जीआरपी के जवानों ने सुरक्षा व्यवस्था की कमान अपने हाथों में ले लिया. राजेन्द्र कुमार राठौर चम्पारण शताब्दी एक्सप्रेस नाम के एक विशेष ट्रेन से रवाना हो गए.
अब स्टेशन पर मौजूद लोग पुराने व इस नए ‘गांधी’ की तुलना कर रहे थे. लोगों का कहना था, मुज़फ़्फ़रपुर तक ‘गांधी’ के हाथ में भगवद् गीता नहीं थी, लेकिन नए ‘गांधी’ के हाथ में गीता है. पुराने ‘गांधी’ सौल साल पहले आए गांधी वाले स्टाईल में थे, लेकिन नए ‘गांधी’ का स्टाईल अलग है…
ऐसी कई बातें हवा में तैर रही थी. ट्रेन रवाना हो चुकी थी. ट्रेन में भाजपा नेताओं के अलावा केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह के निजी सचिव और भाजपा के कई स्थानीय नेता मौजूद थे. हालांकि बावजूद इसके एक डिब्बे की ये स्पेशल ट्रेन पूरी तरह से भर नहीं पाई. रास्ते में कई जगह भाजपा समर्थकों ने पार्टी के झंडे के साथ ‘गांधी’ का स्वागत किया. बापूधाम मोतिहारी पर अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ मंत्री राधामोहन सिंह ने ‘गांधी’ का इस्तक़बाल किया. दिलचस्प बात ये है कि यहां ज़िला प्रशासन का कोई भी अधिकारी इस ‘गांधी’ के स्वागत के लिए नहीं पहुंचा. ‘गांधी’ अब मोतिहारी में घूम रहे हैं.
हालांकि इस बीत रविवार के दिन यह भी ख़बर आई कि बिहार में अब एक तीसरे ‘गांधी’ की भी इंट्री हो चुकी है. वो उन जगहों पर भ्रमण कर रहे हैं जिन स्थानों का गांधी से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
ये क़िस्सा जितना दिलचस्प और हास्यास्पद है, उतना ही सोचनीय भी. गांधी के नाम पर आपसी प्रतिस्पर्धा की लड़ाई लड़ रही सरकारें इस तरह से गांधी के आदर्शों को मज़ाक़ में तब्दील करने पर अड़ी हुई है. इस तरह गांधी सिर्फ़ औपचारिकता का एक टोकन बन कर रह गए हैं. चम्पारण की ज़मीन का ये दुर्भाग्य ही है कि ऐसा दिन राजनीत की प्रतिस्पर्धा ने इसके खाते में लिख दिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि गांधी के नाम पर हो रही इस खींचतान का गांधी के अनुयायी जमकर विरोध करेंगे.