अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
साठी/बेतिया (बिहार) : बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के साठी थाना से मुड़कर जैसे ही हम साठी-भसुरारी रोड जाते हैं, टूटी हुई सड़क शुरु हो जाती है. इस उबड़-खाबड़ सड़क पर डेढ़-दो किलोमीटर चलने के बाद एक दायीं तरफ़ जाने वाली एक पक्की सड़क मिलती है जहां से बेलवा गांव शुरू होता है. यह एक मुस्लिम बहुल गांव है. यहां की 90 फ़ीसद से अधिक आबादी मुसलमानों की है. यहां के ज़्यादातर बाशिंदे खेती-बाड़ी करते हैं तो नौजवानों की बड़ी आबादी खाड़ी देशों में मेहनत-मजदूरी करती है.
इस गांव में दाखिल होते ही जगह-जगह लोगों की भीड़ अख़बार पढ़ते हुए मिली. ये सब लोग बस अपने गांव के एक 20 साल के नौजवान एहतशामुल हक़ की गिरफ़्तारी की ख़बर पढ़ रहे थे और शायद चर्चा कर रहे थे कि अब आगे हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा?
एहतशामुल हक़ के घर के बाहर भी बच्चों व बड़ों की भीड़ जमा है. मोबाइल निकालने पर औरतें गलियों में छिपने की कोशिश करती हैं. जैसे ही एक बुजुर्ग से बात करना शुरू करता हूं, वैसे ही उनकी बड़ी बच्ची उन्हें डांटते हुए वापस बुला लेती है.
एहतशामुल हक़ के छोटे भाई अताउल हक़ मीडिया से नाराज़ नज़र आते हैं. वो बताते हैं कि अभी हमें पता ही नहीं है कि मेरे भाई का गुनाह क्या है, लेकिन मीडिया ने उससे पहले ही उसे आतंकवादी बना दिया. बेशर्मी की हद देखिए कि किसी रिपोर्टर ने हमसे हमदर्दी दिखाकर मां की फोटो ले ली और अब वो फोटो अख़बार में है और नीचे लिखा है —‘आतंकी की मां’
अताउल हक़ को मैं अपने भरोसे में लेता हूं. तब जाकर उनका गुस्सा थोड़ा शांत होता है. बातचीत में वो बार-बार ये पूछता है कि क्या ये सब ख़बर देवबंद में भी छपी होगी? वो ये सवाल इसलिए पूछ रहा था क्योंकि वो देवबंद का छात्र है और तीन-चार दिन पहले ही घर आया था. अब उसको इस बात की चिंता सता रही है कि देवबंद लौटने के बाद वो अपने दोस्तों व उस्ताद को क्या मुंह दिखाएगा?
अताउल बताता है कि सुबह वो एहतशामुल हक़ के साथ ही नमाज़ पढ़ने के लिए गया था. नमाज़ पढ़ने के बाद दोनों साथ ही घर लौटे थे. भाई नीचे के कमरे में कुरआन पढ़ रहा था और मैं ऊपर वाले कमरे में चला गया था. तभी अचानक छत पर मेरे कमरे में मुझे 6-7 लोगों ने पकड़ लिया और कहने लगे कि यही है, ले चलो इसे. मुझसे मेरा मोबाइल छीन लिया गया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद मुझे छोड़कर मेरे भाई को साठी थाने में ले गए. मैं पीछे-पीछे वहां भी मिलने गया लेकिन मुझे वहां धक्का देकर भगा दिया गया. अब तीन दिन हो गए, लेकिन अभी हमें नहीं पता कि मेरा भाई कहां है.
एहतशामुल हक़ की मां सलामुन निशा का कहना था कि, ‘फ़ज़्र की नमाज़ के बाद क़रीब 20-25 लोग डकैत की तरह खुद से दरवाज़ा खोलकर घर में घुस गए. एहतशाम के अब्बू नमाज़ पढ़ रहे थे. जबकि घर में बच्ची, बहू-बेटियां सो रही थी. बावजूद इसके सबके फोटो लेने लगे. घर का सारा सामान तितर-बितर कर दिया. सबके मोबाइल फोन छीन लिए. बच्चों की सारे किताबों को एक गमछे में बांधकर कुछ ही मिनटों में लेकर चलते बने. हम पूछते रह गए, लेकिन किसी ने हमारी एक न सुनी. बल्कि उनका साफ़तौर पर कहना था कि हम लोग अभी नहीं बताएंगे, आप लोग थाने पर आइएगा.
मगर थाने पर जाने से किसी को बात करने नहीं दे रहे थे. वहां अधिकारी ने बताया कि हम एहतशामुल को साठी से बेतिया थाना ले जा रहे हैं. पूछताछ करके छोड़ देंगे. लेकिन तीन दिन हो गए अभी तक हमें नहीं पता कि मेरे बच्चे को वो कहां लेकर गए हैं. स्थानीय पुलिस ने भी हमें कोई सूचना नहीं दी है. अब आप ही बताओ कि पुलिस मेरे बच्चे को कहां लेकर गई है? आप मीडिया वालों को सब मालूम रहता है.’ आगे बातचीत में वो बताती हैं कि, ‘सारी किताब उन्होंने लौटा दिया है. लेकिन हम लोगों के दो मोबाइल अभी तक नहीं मिले हैं.’
सलामुन निशा डबडबाई आंखों से आंसू पोछते हुए कहती हैं, ‘मेरा बेटा कभी कोई ग़लत काम नहीं कर सकता. पूरे गांव के लोग उसे मानते थे. उसे कोई बुरा नहीं कह सकता.’
पास में ही खड़ी रामकली देवी भी कहती हैं, ‘लड़का बहुत अच्छा था. सबकी इज़्ज़त करता था. पुलिस गलत पकड़ कर ले गई है.’ हम जैसे ही उसका वीडियो बनाते हैं, वो कहने लगती है कि, ‘मेरा फोटू टीवी पर मत दिखाइएगा. मेरे घर वाले सब मारने लगेंगे.’ रामकली देवी एहताशुल की मां को सांत्वाना देने आई थी.
एहताशुल हक़ के खालू अशरफ़ आलम बताते हैं कि हमारा परिवार बहुत प्रतिष्ठित परिवार है. ज़रूर पुलिस को कोई गलतफ़हमी हुई है. आख़िर उसका जुर्म क्या है, पुलिस हमें बताती क्यों नहीं? उसके खालू भी स्थानीय मीडिया की रिपोर्टिंग से काफी नाराज़ दिखे.
गांव के अधिकतर लोग इस मामले में बोलने से बचते नज़र आए. कुछ लोगों का यह भी कहना था कि ‘वो मुसलमान है, ऊपर से हाफ़िज़ भी. यही उसका सबसे बड़ा गुनाह है.’ कुछ लोग कहते हैं कि ‘सारी जड़ तो ये मोबाइल है. अब बाहर जाते हैं. वहां जाते हैं तो घर वालों से बात करने के लिए मोबाइल चाहिए ही, अब वो मोबाइल में क्या कर रहे हैं, हमें क्या पता? अब हमें बच्चों को बाहर भेजने से पहले हज़ार बार सोचना पड़ेगा.’
हमने इस घटना के संबंध में साठी थाने में भी जाकर समझने की कोशिश की. थाना अध्यक्ष अवधेश कुमार झा आपसी बातचीत में बताते हैं, ‘एटीएस की टीम बुधवार रात में ही आ गई थी. हो सकता है कि वो अपने हिसाब से रेकी कर रहे हों. थाने को इसकी सूचना गुरूवार सुबह में चार बजे दी गई. उनके साथ सुबह में थाने से भी 10-11 लोग गए थे.’
किस आरोप में एहताशुल हक़ को गिरफ़्तार किया गया है? इस सवाल के जवाब में अवधेश झा बताते हैं कि, ‘शायद उसपर यूपी में एफ़आईआर दर्ज है, जिसमें कई गंभीर आरोप हैं. उस पर 121 A और 120 B जैसे देशद्रोह के गंभीर धाराएं लगी हुई हैं.’
वो आगे देशद्रोह की परिभाषा बताते हुए कहते हैं, ‘देश ही सबकुछ है. हम सब देश के लिए हैं. जो देश की संप्रभुता व अखंडता के ख़िलाफ़ लड़ रहा है, वो देशद्रोह है.’
मीडिया में प्रकाशित ख़बर के बारे में पूछने पर उन्होंने इस बातचीत में यह भी स्पष्ट किया कि, ‘एटीएस ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया. अब किसी मीडिया वाले ने अलग से एटीएस से बातचीत की हो तो मैं कुछ नहीं कह सकता.’ इस बातचीत में उन्होंने यह भी बताया कि, ‘उसके घर से 3 मोबाइल, एक लैपटॉप और एक टैबलेट एटीएस की टीम अपने साथ लखनऊ लेकर गई है.’ घर वालों को सूचना क्यों नहीं दी गई कि एटीएस उसे लखनऊ लेकर गई है? इस पर अवधेश झा साफ़ तौर पर बताते हैं कि, ‘घर वालों को इसकी सूचना दे दी गई है.’
बताते चलें कि एहतशामुल हक़ एक मध्यम वर्गीय परिवार से है. घर वालों के मुताबिक़ वो खैरवा मदरसा से हिफ़्ज़ करके हाफ़िज़ बना था. उसके बाद इलेक्ट्रीशियन का काम सीखकर सऊदी गया था. दो-ढाई साल काम करके वो गांव लौट आया. पिछले 6-7 महीने से वो गांव में ही था. दिन भर गांव में ही रहकर खेती-बाड़ी देखता था. इसके पिता हाफ़िज़ मोहम्मद अलाउद्दीन पास के ही गांव में एक मदरसे में टीचर हैं.