अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली/अहमदाबाद : केन्द्र की मोदी सरकार भले ही ‘सबका साथ —सबका विकास’ की बात करती हो, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह-राज्य में तमाम अल्पसंख्यक अपने अधिकारों से महरूम हैं.
बताते चलें कि पूरे भारत में गुजरात ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां अल्पसंख्यकों के लिए कोई आयोग, विभाग या मंत्रालय अलग से नहीं है. बल्कि सरकारी दावों के मुताबिक़ इसे सामाजिक कल्याण व आधिकारिता मंत्रालय देखता है.
लेकिन अब गुजरात में भी अल्पसंख्यक आयोग को बनाने को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के अलावा यहां के अवाम की मुहिम भी शुरू हो चुकी है. 18 दिसम्बर 2016 को यहां माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमिटी का गठन किया गया. ये कमिटी आगामी 18 सितम्बर 2017, सोमवार को राज्य के सभी 33 ज़िला कलेक्टर को ज्ञापन देगी.
इस कमिटी के कन्वेनर मुजाहिद नफ़ीस TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं कि, गुजरात में क़रीब 10 फ़ीसद मुसलमान हैं. इसके अलावा क़रीब 2 फ़ीसदी दूसरे अल्पसंख्यक तबक़े के लोग भी यहां रहते हैं. लेकिन इनके लिए यहां शिकायत करना तो बहुत दूर की बात है, सरकार ने इन्हें डरा कर रखा हुअा है कि ये अपने अधिकारों की मांग तक नहीं कर पाते. दुर्भाग्य की बात यह है कि केन्द्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय की कोई स्कीम यहां ज़मीन पर नहीं है. अल्पसंख्यक मुस्लिम छात्रों को स्कॉलरशिप ही नहीं मिलती.
मुजाहिद नफ़ीस बताते हैं कि, इसी साल मार्च महीने में पाटन ज़िले के वडावली में साम्प्रदायिक दंगा हुआ. क़रीब 3 हज़ार लोगों ने आकर यहां क़रीब 10 करोड़ का नुक़सान किया. एक की मौत हुई, 15 गंभीर रूप से घायल हुए. दर्जनों घर व दुकान जला दिए गए, लेकिन गुजरात सरकार ने इसे साम्प्रदायिक दंगा माना ही नहीं. ऐसे में अगर यहां अल्पसंख्यक आयोग होता तो कम से कम इस मामले में अपनी रिपोर्ट तो पेश करता.
वो आगे एक और घटना का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि, अरवली ज़िले के वडागाम में सिंधी लोगों को इस क़दर परेशान किया गया कि यहां से 35 परिवारों को पलायन करना पड़ा. लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया. ऐसे में अल्पसंख्यक आयोग का होना ज़रूरी है, क्योंकि अल्पसंख्यक गुजरात में सबसे अधिक वंचित वर्ग है. यहां इनको हर जगह साम्प्रदायिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
मुजाहिद नफ़ीस बताते हैं कि, गुजरात में अल्पसंख्यकों के विकास, रक्षण के लिए 8 सूत्रीय मांगों के साथ अल्पसंख्यक अधिकार अभियान शुरू किया गया है. इसके प्रथम चरण में गुजरात के सभी ज़िलों से 1 लाख पोस्टकार्ड मुख्यमंत्री को भेजा गया है.
ये पूछने पर इसका कोई लाभ मिला? तो इसके जवाब में वो बताते हैं, जी, काफी हद तक लाभ मिला. मात्र पोस्टकार्ड लिखने से राज्य सरकार नें प्रधानमंत्री के नया 15 सूत्रीय कार्यक्रम की मॉनिटरिंग कमिटियों का गठन शुरू किया है. मुस्लिम बहुल जुहापुरा में ई.डब्ल्यू.एस. हाउसिंग स्कीम लांच की. जहां गुजरात सरकार पहले अल्पसंख्यक शब्द से परहेज़ करती थी, लेकिन बीते 2 दिनों से राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए केन्द्रीय मंत्री के द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर योजनाओं का बखान कर रही है. हालांकि अल्पसंख्यकों के विकास, रक्षण के मूलभूत प्रश्न पर अभी भी कोई नहीं बोल रहा है.
बताते चलें कि माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमिटी की मांग है कि राज्य में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की स्थापना की जाए. राज्य के बजट में अल्पसंख्यक समुदाय के विकास के लिए ठोस आवंटन किया जाए. राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाए व इसके संवैधानिक मज़बूती का विधेयक विधानसभा में पास किया जाए. राज्य के अल्पसंख्यक बहुल इलाक़ों में कक्षा 12 तक के सरकारी स्कूल खोले जाएं. इसके अलावा अन्य कई मांगे हैं, जिसको लेकर ये कमिटी गुजरात में अपनी मुहिम चला रही है.
इस कमिटी के कन्वेनर के मुताबिक़, 21 अगस्त 2017 से 18 सितम्बर 2017 तक ‘अल्पसंख्यक अधिकार आन्दोलन’ महीना के रूप में मनाया जाएगा. इस महीने में राज्य भर में पब्लिक मीटिंग, सेमिनार, हस्ताक्षर अभियान चलाया जायगा. फिर राज्य भर से 1 लाख व्यक्तिगत रिप्रजेंटेशन हस्ताक्षर कराकर मुख्यमंत्री गुजरात को राज्य के प्रतिनिधिमंडल द्वारा सौंपा जाएगा.