क्या लालू की रैली पर टिका है ‘विपक्षी एकता’ का दारोमदार?

अफ़रोज़ आलम साहिल, twocircles.net


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पटना : लोकतंत्र में भीड़ बहुत कुछ कहती हैं. लेकिन मैं यहां इस बात पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं करने जा रहा कि आज की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) द्वारा आयोजित ‘देश बचाओ, भाजपा भगाओ’ रैली में कुल कितने लोग शामिल हुए थे.

अलग-अलग लोगों के अलग-अलग आंकड़ें हो सकते हैं. यक़ीनन किसी भी कार्यक्रम का कोई भी आयोजक हमेशा भीड़ की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर ही पेश करता है और उनसे खार खाए लोग हमेशा उस कार्यक्रम को फ्लॉप ही बताते हैं. और जब ये खेल सियासत का हो, तो हक़ीक़त का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं. लेकिन मुझे कहने में कोई हर्ज नहीं है कि जितने लोग गांधी मैदान में जमा थे, उसी अनुपात में लोग गांधी मैदान के चारों तरफ़ सड़कों पर नज़र आएं. लोगों के आने-जाने का सिलसिला राबड़ी देवी के भाषण तक चलता रहा.

बताते चलें कि इस रैली के आयोजन की घोषणा लालू प्रसाद ने काफ़ी पहले मई महीने में ही की थी, तब नीतीश कुमार लालू के साथ ही थे और महागठबंधन की सरकार चला रहे थे.

इस रैली को लेकर राजद काफी उत्साहित थी. हालांकि एक डर उसे ज़रूर सता रहा था कि क्या बाढ़ की चपेट में आए राज्यों के लोग इस रैली में शामिल होंगे. लेकिन गांधी मैदान में आए लोगों के हाथ बैनर-झंडे से यह ज़रूर समझ में आ रहा था कि बाढ़ पीड़ित इलाक़ों के लोग भी आए हैं और भारी संख्या में आए हैं.

राजद के अलावा समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी इस रैली में खूब दिखे और पूरे उत्साह में दिखे. हां, इतना ज़रूर है कि कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता अपने झंडे-बैनर के साथ नज़र नहीं आया. पूरे गांधी मैदान में मुझे एक शख़्स ज़रूर नज़र आया जो एनसीपी के झंडे के साथ आया था.

बताते चलें कि पूरा पटना शहर एक दिन पहले से ही राजद नेताओं-कार्यकर्ताओं, उनके पोस्टर-बैनरों से अटा पड़ा था. लेकिन रविवार सुबह से ही पटना की सड़कें राजद के नेता व कार्यकर्ताओं से पट गया. हर तरफ़ से अलग-अलग ज़िलों से आए कार्यकर्ता पूरे जोश व ख़रोश के साथ बैंड-बाजों व ढोल-ताशों की धुन पर नाचते हुए गांधी मैदान की ओर पद-यात्रा कर रहे थे. इसमें सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह भी देखने लायक़ था.

रास्ते में जगह-जगह ‘लालू जी संग क्रांति का फिर बिगुल बजाना है, तानाशाहों के हाथों से देश बचाना है…’ बज रहे गाने की धुन कार्यकर्ताओं के जोश को दुगुना कर रही थी.

इस रैली में सबसे अधिक संख्या युवाओं की थी और मंच से आज युवा नेता भी खूब गरजे. चाहे वो अखिलेश यादव हो या जयंत चौधरी या फिर लालू के दोनों बेटे.

वैसे इस रैली में विशेष तौर पर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद, सीपी जोशी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जनता दल यूनाइटेड के बागी नेता नेता शरद यादव, राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन, आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीक़ी, रघुवंश प्रसाद सिंह और शिवानंद तिवारी, एनसीपी के तारिक़ अनवर, सीपीआई के डी. राजा, सीपीएम के सुधाकर राव रेड्डी सहित लालू यादव परिवार के सदस्य पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजप्रताप, तेजस्वी और मीसा भारती समेत और भी कई नेता मौजूद थे. सोनिया व राहुल गांधी इस रैली में नहीं आए थे, लेकिन उनका संदेश यहां ज़रूर पढ़ा गया.

इस रैली की ख़ास बात ये रही कि पहली बार समस्त विपक्षी दलों के नेता अपनी एकजूटता का प्रदर्शन अपने भाषणों के ज़रिए करते रहे. प्रधानमंत्री मोदी व आरएसएस को खूब निशाने पर लिया और देश में सामंतवादी राजनीति की जगह सेक्युलर व समाजवादी राजनीति की वकालत की. साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि, जो लोग देश को तोड़ रहे हैं, वो देश-भक्त नहीं, देश-द्रोही हैं. नीतीश कुमार को जहां वक्ताओं ने ‘पलटू राम’ कहा तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘झांसा राम’ की उपाधि से नवाज़ा गया.

बीच-बीच में लालू यादव भी माईक संभालते रहे और लोगों से शांति की अपील करते रहें. लालू ने यह भी ऐलान किया कि इस रैली में भाकपा माले के दीपांकर भी आने वाले थे, लेकिन अचानक विदेश चले जाने के कारण नहीं आ सकें, लेकिन उन्होंने कहा है कि वो भी हमारे इस लड़ाई में साथ हैं.

खुशगवार मौसम में मंच से हेमंत सोरेन बोल रहे थे. इसी बीच बारिश की छींटे पड़नी शुरू हो गईं. लेकिन जैसे ही बारिश की छींटे पड़नी शुरू हुई, लालू ने माईक संभालते हुए कहा कि, ‘इंद्र भगवान इत्तर छींट रहे हैं…’ लालू के इस बोल से सबका जोश दुगुना हो गया और सभी टिके रहे.

मंच पर जैसे ही शरद यादव ने माईक संभाला तो सड़कों पर मौजूद लोग भी ताली बजा रहे थे. आज शरद यादव भी खूब गरजे और गरजते हुए ये संदेश दे दिया कि नीतिश से लड़ाई लंबी चलेगी. बिहार के लोगों ने महागठबंधन को जनादेश दिया था. उन्होंने यह भी कहा कि, मुझे सत्ता का मोह नहीं है और देश स्तर पर महागठबंधन बनेगा.

आज अपनी टूटी-फूटी हिन्दी के साथ सबसे जोशीले अंदाज़ में ममता बनर्जी भी नज़र आईं. जमकर बोलीं. पूरे भाषण में आरएसएस, भाजपा व मोदी को निशाने पर रखा. बीच-बीच में उनके ज़रिए बोले जा रहे शेर लोगों को खूब पसंद आ रहा था. अखिलेश  यादव का भाषण भी लोगों के बीच चर्चा में रहा. सबने उनके इस भाषण की तारीफ़ की.

आमतौर पर ख़ामोश रहने वाले तेज प्रताप यादव भी आज पूरे जोश में नज़र आए और लालू के अंदाज़ में ही अपनी बातें रखी. शंख बजाकर भाजपा व आरएसएस से लड़ाई का ऐलान किया. वहीं तेजस्वी भी नीतिश कुमार के साथ-साथ मोदी पर भी गरजते नज़र आए. युवाओं के नौकरी वाले झांसे के बारे में सवाल किया. इनके निशाने पर आरएसएस भी था. आज तेजस्वी किसी मंझे हुए नेता की तरह अपना भाषण दे रहे थे.

राबड़ी देवी भी निशाना साधने में पीछे नहीं रहीं. खूब बोलीं. जब राबड़ी बोल रही थी, तब लालू हंसते हुए नज़र आ रहे थे. उन्होंने आज साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि इसी गांधी मैदान में मोदी आए थे और उनकी रैली में बम बजा, जिसे पटाखा बताया गया. लेकिन सच तो यह है कि ये बम भाजपा के लोगों ने फिट किया था. राबड़ी के ठेठ बिहारी व भोजपुरी अंदाज़ वाले भाषण को आज लोग बहुत दिलचस्पी के साथ सुन रहे थे. उनके भाषण के दौरान कई लोगों को मैंने यह कहते हुए सुना कि, अनपढ़ होकर भी कितना अच्छा बोल रही हैं.

सबसे आख़िर में बारी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की थी. उन्होंने एनडीए के नेताओं को अपना प्रोडक्ट बताया. साथ ही बिहार के बाढ़ के बारे में बोलते हुए कहा कि, बाढ़ आया नहीं, बाढ़ को लाया गया है.

उन्होंने आरोप लगाया कि, बांध पर अरबों रूपये खर्च किया गया है. सब एक ही जाति का ठेकेदार और इंजीनियर मिलकर घोटाला किया और बाढ़ को लाया. और फिर अब बांध की मरम्मती के लिए गरीबों का पैसा फिर से पानी में जाएगा. बाढ़ राहत के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी के ज़रिए 500 करोड़ दिए जाने की भी लालू ने निंदा की.

लालू यादव ने यह भी कहा कि, सृजन घोटाले के क़ागज मेरे पास हैं. ये नीतीश कुमार की अंतिम पलटी है. संघ मुक्त भारत का नारा देते थे, बीमारी का बहाना बनाकर हमसे दूरी बनाई और संघ की गोद में जा बैठे.

भले ही इस रैली में बहन मायावती न आई हों लेकिन लालू ने दलित वोटरों को साधने की हर मुमकिन कोशिश की. उन्होंने साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि, नीतीश को दलितों से नफ़रत है.

लालू ने अपने संबोधन में देश में चल रहे गाय के नाम पर लीनचिंग का मुद्दा भी उठाया. साथ ही यह भी कहा कि नीतिश को वोट मेरे चेहरे की वजह से मिला. पूरे बिहार में अल्पसंख्यकों ने आंख मूंदकर महागठबंधन को वोट किया था.

लालू के इस भाषण के साथ यह रैली खत्म हुई... लोग धीरे-धीरे गांधी मैदान से निकल रहे थे. लोग पैदल ही अपने मंज़िल की ओर बढ़ रहे थे. और हर किसी के ज़ुबान पर युवा नेताओं के भाषण की चर्चा थी. यहां यह भी बताता चलूं कि जब लालू बोल रहे थे तो लोगों में वो उत्साह बिल्कुल भी नहीं दिखा, जो उत्साह तेजस्वी, तेज प्रताप व राबड़ी देवी के भाषण में दिख रहा था.

‘देश बचाओ, भाजपा भगाओ’ नामक इस रैली में विपक्षी एकता की तस्वीर तो ज़रूर नज़र आई, लेकिन ये तस्वीर कितनी कारगर साबित होगी और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका कितना और क्या असर होगा, सारी निगाहें इसी पर टिकी हुई हैं.

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