Home Dalit निकाय चुनाव : बसपा की वापसी में ‘आवाज़’ है…

निकाय चुनाव : बसपा की वापसी में ‘आवाज़’ है…

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

सहारनपुर/मेरठ/अलीगढ़ : पहली बार मेयर चुनाव से रूबरू हो रहे सहरानपुर में बसपा प्रत्याशी हाजी फ़ज़लूर रहमान बेहद नज़दीकी मुक़ाबले में भाजपा प्रत्याशी से 1986 वोटों से हार गए. बसपा प्रत्याशी को 119193 वोट मिले. इमरान मसूद ने पूरी ताक़त से कांग्रेस प्रत्याशी शशि वालिया को चुनाव लड़वाया, लेकिन वो तीसरे नम्बर पर रहे. उन्हें 69 हज़ार वोट मिले.

मुस्लिम समाज की भारी नाराज़गी झेल रहे इमरान मसूद को बसपा की हार का ज़िम्मेदार माना गया. खुद इमरान मसूद ने अपने फेसबुक लाइव में यह माना है कि हाजी फ़ज़लूर रहमान को 45 हज़ार दलित वोट मिले हैं, बाक़ी वोट मुसलमानों ने दिए हैं.

वहीं बसपा प्रत्याशी भी मानते हैं कि उन्हें 90 प्रतिशत दलित वोट मिला और 60 फ़ीसदी मुस्लिम वोट मिले हैं.

पहली बार मेयर की सीट के लिए चुनाव हो रहे सहारनपुर में अब आधा दर्जन से ज्यादा दलित बहुल गाँव जोड़े गए हैं, जिनमें भीम आर्मी के सर्वाधिक प्रभाव वाला गांव रामनगर भी है.

रामनगर में 3 हज़ार से ज्यादा दलित वोट हैं. भीम आर्मी के ज़िलाध्यक्ष कमल वालिया इसी गाँव के हैं और अभी जेल में हैं.

उनकी मां बबीता TwoCircles.net से बातचीत में कहती हैं, ठाकुरों के जुर्म के बाद उन्हें मुसलमानों ने अच्छा सहयोग किया है. वो उनके साथ हर मुश्किल में खड़े दिखाई दिए हैं. गांव में जब पुलिस भीम आर्मी के नाम पर दलित लड़कों को गिरफ्तार कर रही थी तो इन लड़कों को मुस्लिमों ने अपने घर में पनाह दी. सही यह है मुसलमान के नज़दीक होने पर दलित खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है.

फ़ज़लूर रहमान का किनारे पर जाकर हार जाने का ग़म सहारनपुर के अशोक गौतम को बहुत ज्यादा है. वो कहते हैं, हम जैसे तमाम दलितों का यह मानना है कि भाजपा हमारी नेता मायावती और हम दलितों का वजूद मिट्टी में मिला देना चाहती है. इसलिए समाज ने यह तय किया है कि जो भी भाजपा का विरोधी होगा, हम उसका साथ देंगे. अब मुसलमानों का भी बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हो रहा है और वो हर मुश्किल घड़ी में हमारे साथ खड़े रहे हैं. फिर हमने उनको वोट पूरी ताक़त से दी, मगर मुस्लिमों की वोट में ही बंटवारा हो गया. आप सच मानिए मैंने कई दलितों की आंख में आंसू देखे.

सहारनपुर से 140 कि.मी. पश्चिम उत्तर प्रदेश की अघोषित राजधानी कही जाने वाली बड़े महानगर मेरठ में इस बार बसपा के झंडा लहरा गया है. यहां से हस्तिनापुर के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता वर्मा चुनाव जीत गई हैं. 40 हज़ार वोटों से जीतने वाली सुनीता वर्मा ने भाजपा की कांता कर्दम को हरा दिया.

इस बार मेरठ की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई थी. बसपा से पिछले 25 सालों से जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता अब्दुल गफ़्फ़ार के मुताबिक़, मुसलमानों ने दिल खोलकर बसपा को वोट दिया. उन्हें लगता था कि सिर्फ़ बसपा ही भाजपा को हरा सकती है. दलित और मुस्लिम एक हो गए. अब 40 हज़ार की जीत कुछ तो कहती है.

सरधना विधानसभा से चुनाव लड़ चुके पूर्व मंत्री हाजी याक़ूब के पुत्र हाफ़िज़ इमरान कुरैशी कहते हैं कि वो बता नहीं इस जीत से वो कितने खुश हैं. अगर वो खुद जीतते तो भी उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिलती.

दरअसल अब वो छाती चौड़ी करके दलितों के बीच जा सकते हैं. यक़ीनी तौर पर लोकसभा चुनाव में इसका असर पड़ेगा.

हालांकि कुल 14 मेयर सीटो में से बसपा ने सिर्फ़ 2 सीटें ही जीती हैं, जबकि कांग्रेस और सपा को कोई सीट नहीं है.

पहले बसपा के ज्यादा मेयर जीतने की ख़बर थी, मगर देर रात कहानी बदल गई. बसपा के पूर्व कोर्डिनेटर शमीम अहमद ने हमें बताया कि कहानी तो मेरठ में भी बदली जा सकती थी, मगर हम लोगों ने जद्दोजहद की और डटे रहें.

बसपा को एक और महत्वपूर्ण जीत अलीगढ़ से मिली है. यहां के मोहम्मद फुरकान ने भाजपा के राजीव कुमार को हरा दिया है. फुरकान को एक लाख 25 हज़ार वोट मिले और वो 10 हज़ार से जीत गए. समाजवादी पार्टी के मुजाहिद क़िदवई को 16 हज़ार पर संतोष करना पड़ा.

अलीगढ़ के जावेद मेवाती के मुताबिक़, यहां के लोग समझ गए कि भाजपा को कौन हरा सकता है. इसलिए बसपा जीत गई.

दरअसल मायावती ने इस चुनाव को काफ़ी गम्भीरता से लिया और जनता से संवाद किया. इसका फ़र्क़ दिखाई दे रहा है. इस चुनाव में बसपा को 2 मेयर के अलावा 29 नगर पालिका अध्यक्ष और 45 नगर पंचायत अध्यक्ष भी मिले. 262 नगर पालिका और 218 नगर पंचायत सभासद भी जीते हैं.