Home Indian Muslim उस्ताद इमरत खां का पद्मश्री स्वीकार करने से इनकार

उस्ताद इमरत खां का पद्मश्री स्वीकार करने से इनकार

फहमिना हुसैन, TwoCircles.net

दिल्ली: सितार और सुरबहार के उस्ताद इमरत खां को भारत सरकार ने इस साल जब पद्मश्री देने का ऐलान किया तो सरकार ने नहीं सोचा होगा कि वे किसी बड़े कलाकार का सम्मान देकर अपमान भी कर सकते हैं. उस्ताद इमरत खां ने इस पुरस्कार को लेने से इनकार कर दिया है. उस्ताद का कहना है कि उन्हें यह बहुत देर से दिया जा रहा है और यह उनकी विश्वव्यापी शोहरत और योगदान के अनुरूप नहीं है.

उस्ताद इमरत खां के शिष्यों और बेटों को पद्मविभूषण और भारत रत्न जैसे सम्मान मिल चुके हैं. 82 वर्ष के उस्ताद इमरत खां ने अपने पत्र में आगे लिखा है, ‘ज़िंदगी के इस मुक़ाम पर मुझे यह ठीक नहीं लगता कि उम्र या शोहरत के पैमाने पर मेरे काम और ख़िदमत को मेरे शागिर्दों और बेटों के स्तर सेकम करके अाँका जाए.’

17 नवंबर 1935 को कोलकाता में जन्मे उस्ताद इमरत खां को संगीत विरासत में मिला था. उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन खान और दादा इमदाद हुसैन खान किसी तारीफ के मोहताज नहीं है. उस्ताद इमरत खां ने उस समय अपनी क्षमता का लोहा मनवा लिया, जब एक रिकॉर्डिंग में उन्होंने सितार तथा सुरबहार का अकेले ही इस्तेमाल किया.

उस्ताद इमरत खां की महत्ता का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहवाशिंगटन की सेंट लुईस यूनिवर्सिटी में संगीत के छात्रों को नियमित रूप से तालीम भी देते हैं. इस साल 25 जनवरी की शाम केंद्र सरकार ने पद्मसम्मानों के लिए नामों की घोषणा की, जिसमें इमरत खान का नाम भी शामिल था लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया.

उस्ताद इमरत खां ने पद्मश्री अवार्ड को लेने से इनकार करते हुये भारत सरकार को जो पत्र लिखा है, उसका हिन्दी कवि असद ज़ैदी ने हिन्दी अनुवाद किया है. हम उसे यहां आभार के साथ साझा कर रहे हैं.

मेरी ज़िन्दगी के अाख़िरी दौर में, जबकि मैं 82 साल का हो चला हूं, भारत सरकार ने मुझे पद्मश्री अवार्ड देना तय किया है.

इसके पीछे जो नेक इरादा है, मैं उसकी क़द्र करता हूँ, लेकिन इस अवार्ड के मक़सद को लेकर बिना किसी दुराग्रह के यह कह सकता हूं कियह मेरे लिए ख़ुशी की नहीं, उलझन की बात है. यह अवार्ड अगर मिलना था तो कई दशक पहले मिल जाना चाहिए था — जबकि मुझसेजूनियर लोगों को पद्मभूषण दिया जा चुका है.

मैंने भी हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में बहुत योगदान दिया है और उसके व्यापक प्रसार में लगा रहा हूं. ख़ासकर सितारवादन की विकसितशैली और अपने पूर्वजों के सुरबहार वाद्य को दुनिया भर में फैलाने में मैंने अपना जीवन समर्पित कर दिया. मुझे हिन्दुस्तानी कला औरसंस्कृति के अाधारस्तंभों, अपने समय की महान विभूतियों के साथ बराबरी की सोहबत में संगीत बजाने का सौभाग्य हासिल हुअा. इनमेंउस्ताद विलायत खां साहब, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब, उस्ताद अहमद जान थिरकवा खां साहब, पंडित वी जी जोग और अन्य बड़ीहस्तियां शामिल हैं. इनमें से हरेक निर्विवाद रूप से हिन्दुस्तानी संगीत के उच्चतम स्तर तक पहुंची हुई हस्ती है, और इन सभी को पद्मभूषणया पद्मविभूषण से नवाज़ा गया था.

 मेरा काम और योगदान सबके सामने है और मेरे शिष्य, जिनमें मेरे बेटे भी शामिल हैं, अपने समय की कसौटी पर खरे उतरेंगे और इस बातका सबूत देंगे कि मैं किस हद तक अपने अादर्शों और अपनी जड़ों के प्रति सच्चा रहा हूं. संगीत ही मेरा जीवन है और मैंने एकनिष्ठता सेहिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रंग-रूप और रूह की पाकीज़गी को बचाए रखा है, और किसी भी तरह के बिगाड़ से उसकी हिफ़ाज़त कीहै. मैं और मेरे शिष्य विश्व के सभी अालातरीन मंचों पर सितार और सुरबहार के माध्यम से इस धरोहर को पेश करते रहे हैं. ये संगीतकारइसी रिवायत को अाज की पीढ़ी तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं.

ज़िंदगी के इस मुक़ाम पर मुझे यह ठीक नहीं लगता कि उम्र या शोहरत के पैमाने पर मेरे काम और ख़िदमत को मेरे शागिर्दों और बेटों केस्तर से कम करके आंका जाए.

मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी समझौते नहीं किए. अब जाकर ऐसे अवार्ड को लेना, जो भारतीय संगीत में मेरे योगदान और मेरी अंतर्राष्ट्रीयप्रतिष्ठा से क़तई मेल नहीं खाता, अपनी और अपनी कला की अवमानना करना होगा. मैं ख़ुदगर्ज़ नहीं हूं, लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत केसुनहरे दौर के महानतम संगीतज्ञ मुझे जो प्यार, भरोसा और इज़्ज़त बख़्श चुके हैं मुझे उसका भी ख़याल रखना है. मैं इसी धरोहर कीअाबरू रखने के ख़याल से यह क़दम उठा रहा हूं.

विनीत

इमरत खां