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मड़िहान : जहां काम नहीं, कमलापति त्रिपाठी और लोकपति त्रिपाठी का नाम बोलता है

मड़िहान बाज़ार की सड़क

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

मीरजापुर : ‘ललितेश मड़िहान के हीरो हैं. उनके यहां से जीतने में कोई दाग नहीं है,’ हम मड़िहान बाज़ार में बात कर रहे हैं तभी पास खड़े एक सफ़ेद पैंट-शर्ट पहने युवक ने यह बात की और गाड़ी स्टार्ट करके चलता बना.

ललितेशपति त्रिपाठी

मीरजापुर में कांग्रेस के दिवंगत नेता पं. कमलापति त्रिपाठी के बेटे पं. लोकपति त्रिपाठी के कामों का बोलबाला है. लोकपति त्रिपाठी ने मीरजापुर में अस्पताल, कॉलेज और स्कूल खुलवाए. उनके जाने के बाद उनके बेटे राजेशपति त्रिपाठी आए लेकिन वह कांग्रेसी नेता की तरह ही सिमटे रहे और अभी भी पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक गिने जाते हैं. मड़िहान मीरजापुर मंडल की विधानसभा सीट है. आखिर में राजेशपति त्रिपाठी के बेटे ललितेशपति त्रिपाठी हैं, जो बीते विधानसभा चुनावों से मड़िहान के विधायक हैं.

मीरजापुर शहर से मड़िहान की दूरी 30 किलोमीटर से भी ज्यादा है. इस सीट का निर्माण 2012 विधानसभा चुनावों के दौरान ही हुआ है. आने-जाने में पहाड़ियों की चढ़ाई है, हलके या भारी सभी किस्म के वाहन आते जाते हैं लेकिन सड़क ऐसी है कि किसी भी साधन से सफ़र करने में आपको थकान होना तय है. कई जगह बोल्डर उखड़े हुए हैं, सड़कों में छः-छः इंच तक के गड्ढे हैं और धूल उड़ती है तो कुछ देर के लिए दिखना बंद हो जाता है. सड़क बनाने के लिए पत्थर न जाने कब से डालकर छोड़ दिए गए हैं. मड़िहान जाने वाली सड़क पर पहिया रिपेयर करने वाले अवतार पटेल हंसते हुए बताते हैं, ‘सड़क बन गयी, यानी समझ लीजिए कि अपना धंधा चौपट. अभी तो डायल पहिया या पंचर रिपेयर करने में खर्चा निकल जाता है.’

मड़िहान बाज़ार की सड़क

यानी साफ़ है कि अनुप्रिया पटेल की सांसदी वाली और ललितेशपति त्रिपाठी की विधायकी वाली ये सीट अभी भी मूलभूत सुविधा यानी सड़क से जूझ रही है. हालांकि जब आप मड़िहान पहुंचते हैं तो आशा रहती है कि बहुत कुछ अच्छा मिलेगा. मिलता भी है. पहाड़ के ऊपर मोबाइल में 3G का नेटवर्क मिल जाता है, कई मोबाइल टावर दिख जाते हैं, तहसील सदर है, यानी इलाके की भाषा में कहें कि मामला टाइट है लेकिन फिर भी ललितेशपति त्रिपाठी लोगों को पूरी तरह से खुश नहीं कर सके हैं. चौराहे पर चाय-पान की दुकान चलाने वाले 53 वर्षीय देवी प्रसाद कहते हैं, ‘देखs… ललितेश के बारे में बात करबs त काम त नाही कराए हैन, लेकिन हई बात त माने के पड़ी जब लोग परेसान होए लगेलन त बतिया सुनेलन. भले समस्या सुलझा न सकतन, लेकिन सुनेलन जरूरे से.’ (ललितेश के बारे में बात करेंगे तो साफ़ है कि ललितेश ने काम नहीं कराया है, लेकिन लोगों को जब परेशानी होती है, तो ललितेश उनकी समस्याएं सुनते हैं. भले ही वे समस्याएं सुलझा न सकें लेकिन सुनते हैं ज़रूर)

मड़िहान बाज़ार में मिले वोटर

देवी प्रसाद आगे कहते हैं, ‘हार-जीत क बात राहे द. के हराय ओन्हें? सपा से मिल गएन जाके तो वोट बढ़ गया ओनका.’(उनकी[ललितेशपति त्रिपाठी] की हार-जीत की बात रहने दीजिए. उनको कौन हरा सकेगा? सपा से मिलने के बाद उनके वोट में बढ़ोतरी हो गयी है.)

सच भी है कि सपा से मिलन के बाद इस सीट पर ललितेशपति त्रिपाठी मजबूत हुए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में ललितेशपति त्रिपाठी ने 63,492 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी जबकि समाजवादी पार्टी के सत्येन्द्र पटेल 54,969 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. अगर इन दोनों वोटों को जोड़ दिया जाए तो ललितेशपति त्रिपाठी का पलड़ा और मजबूत हो जाता है.

ललितेशपति के बारे में मीरजापुर के शुक्ल्हां में रहने वाले भैरवनाथ शुक्ला बताते हैं, ‘ये बात तो साफ़ है कि ललितेशपति त्रिपाठी मड़िहान से जीत जाएंगे. लेकिन वो अपने दादा-परदादा के राजनीतिक इतिहास का लाभ उठा रहे हैं. इलाके में कुछ ऐसा मूलभूत नहीं दिख रहा है कि जिसके बारे में कहा जाए कि ये ललितेशपति का कराया गया काम है, लेकिन उनकी पहचान ज़्यादातर लोकपति त्रिपाठी के कर्मों की वजह से है, जिसका ऋणी मीरजापुर का लगभग हरेक तबका है.’

मुलायम सिंह यादव विश्वविद्यालय

मड़िहान की सीट पर सपा के वोट के कांग्रेस में विलय हो जाने के आसार इसलिए भी साफ़ हैं क्योंकि इस क्षेत्र में राज्य सरकार की ओर से कई परियोजनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. रास्ते में एक नहर बनाने का काम मिलता है, जिस पर कार्य बेहद तेजी से हो रहा है.

यही नहीं सपा के पूर्व सांसद रामकिशुन यादव द्वारा बीच जंगलों में विवादित ‘मुलायम सिंह यादव विश्वविद्यालय’ के निर्माण से भी यहां के लोगों पर असर पड़ रहा है. इस विश्वविद्यालय की नींव कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य के बेशकीमती जंगलों को साफ़ करके रखी जा रही है. मड़िहान में मौजूद यह निर्माणाधीन विश्वविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस से महज़ 15 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है. इसके बारे में मड़िहान में मिले सतीश कुमार पटेल बताते हैं, ‘विश्वविद्यालय बनने से अच्छा है कि यहां के लोग को पढने के लिए पास में ही एक यूनिवर्सिटी मिल जाएगा. ये समाजवादी पार्टी का महत्त्वपूर्ण कदम है.’

कुछ सालों पहले गोयनका ग्रुप को ठीक इसी जगह पर बिजली का कारखाना लगाने की अनुमति हाईकोर्ट ने यही कह कर नहीं दी थी, कि इससे वन संपदा को नुकसान होगा. लेकिन अब समाजवादी पार्टी के बैनर तले पेड़ काटे जा रहे हैं और पठारों को समतल किया जा रहा है. नियम और भी ताक पर रख दिए जाते हैं जब कॉलेज के आसपास की जमीन पर हाउसिंग सोसायटी के लोग कब्जा जमा लेते हैं.

लेकिन यह बात भी साफ़ है कि वोटर को इन अनियमितताओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है. उसे अपने स्तर पर कुछ होता दिखता है तो उसे ख़ुशी होती है. सतीश कुमार पटेल आगे इसीलिए कहते हैं, ‘आप चाहते हैं कि हम पढ़ें, आप चाहते हैं कि लोग दूर जाकर भी न पढ़ें, ये भी कि पास में पढ़ें तो कहीं तो यूनिवर्सिटी बनेगी न.’

मड़िहान में पटेल वोटों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसी बात को ध्यान में रखकर बसपा ने इस सीट पर अवधेश सिंह पटेल को टिकट दिया है लेकिन उनके बारे में क्षेत्र में ज्यादा बातचीत नहीं है. 44 वर्षीय रमेश सिंह कहते हैं, ‘पटेल वोट ज्यादा हैं लेकिन प्रत्याशी तो दिखे. कोई सामने मैदान में ही नहीं आ रहा है. आप लाख कह लीजिए कि मड़िहान में ललितेशपति त्रिपाठी काम नहीं कराए हैं, लेकिन मड़िहान की गंवई जनता को इससे ही सबसे ज्यादा मतलब है कि एक विधायक है जो उनके बीच मौजूद है, उनकी बातें सुनता है और लगभग रोज़ उन्हें दिख भी जाता है.’ भाजपा समर्थित अपना दल से कल ही शिवकुमार सिंह का नाम सामने आया है, जिस पर अपना दल और भाजपा में काफी खींचतान मची हुई थी. माना तो ऐसा भी जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा चाह रही थी कि अपना दल रामशंकर पटेल को अपने प्रत्याशी के तौर पर उतारे लेकिन इस बात से अपना दल में नाराज़गी हो गयी है. पार्टी ने कहा कि जब यह सीट उसे मिली है तो वह किसी और को क्यों उतारे?

ललितेशपति त्रिपाठी मड़िहान में एक जननेता के तौर पर उभरे हैं. विधानसभा नई है, इसलिए मौके भी बहुत ज्यादा हैं. लोग उन्हें पसंद भी करते हैं और यह भी कहते हैं कि उन्हें हरा पाना नामुमकिन है. उनके खुद के जारी किए हुए प्रशस्तिपत्र में 1000 करोड़ रुपयों से ऊपर बिजली उपकेन्द्र, सड़क, नहर परियोजना, एलपीजी कनेक्शन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने की बात सामने आती है. कुछ काम दिखते हैं, कुछ नहीं दिखते हैं. उनके समर्थक कहते हैं कि वक़्त दीजिये. ऐसे में भाजपा के विरोधाभास के बीच यदि ललितेशपति त्रिपाठी इस सीट को बिना किसी विवाद के निकाल ले जाते हैं तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए.