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मझवां : तीन बार के बसपा विधायक के सामने 27 साल का सपा प्रत्याशी

Rohit Shukla, Majhwan

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

मीरजापुर : मीरजापुर मंडल की मझवां सीट से खड़े समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रोहित शुक्ला उर्फ़ लल्लू इलाके के रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं. सपा और कांग्रेस के गठबंधन के बाद इलाके में उनकी हनक बढ़ी है, उनका परिवार चूंकि भरापूरा और रसूखदार है तो लोग उन्हें और भी अच्छे से जानते हैं. रोहित शुक्ला का सीधा मुकाबला मझवां के मौजूदा विधायक और बसपा प्रत्याशी रमेशचन्द्र बिन्द से है.

बीते विधानसभा चुनावों की बात करें तो 2012 के चुनावों में रमेशचंद्र बिन्द ने सपा के राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय को तकरीबन दस हज़ार वोटों से हराया था. रमेशचंद्र बिन्द इन चुनावों में 83,870 वोट जुटाने में कामयाब रहे थे. रमेशचंद्र बिन्द पिछले तीन बार से विधायक हैं. भाजपा ने इस सीट पर मिर्जापुर के भूतपूर्व विधायक रमेशचंद्र मौर्य की बेटी सुचिस्मिता मौर्य को टिकट दिया है. इस सीट पर जाति का समीकरण मजबूत है. वोटर साफ़तौर पर जाति के हिसाब से वोट करते हैं और खुलकर बात भी करते हैं कि जाति के हिसाब से वोट करना क्यों जायज है?

रोहित शुक्ला

मझवां सबसे बड़ी विधानसभा सीट है. कोयलीघाट का इलाका मझवां विधानसभा में आता है. छोटी-बड़ी सभी जातियों के लोग यहां रहते हैं. बिन्द, पटेल और कोल बसपा को वोट देने की ख्वाहिश रखते हैं लेकिन इस बात का भी दबाव है कि रमेशचंद्र बिन्द ने काम नहीं कराया है. फिर भी जाति से बाहर सोचना उन्हें थोड़ा परेशान करता है. 48 साल के बाबूराम पटेल कहते हैं, ‘हम लोग का पूरा परिवार बसपा को वोट देता आया है. रमेश जी विधायक हैं. लेकिन आप आए हैं तो देखते जाईये कि हमको का मिला है. जब हाथी का सरकार था तब भी कुछ नहीं कराए, अब जब अखिलेश हैं तो और भी नहीं कराए.’

इलाके में सोलर लाइटें हैं और सड़क ख़राब है. पूरे गांव में किसानों के बच्चे सड़क के किनारे टमाटर लगाकर बेच रहे हैं. टमाटर का भाव है बीस रुपया पसेरी, यानी बीस रूपए में पांच किलो. बाबूराम बताते हैं, ‘फसल बर्बाद है. इस दाम पर निकालना पड़ेगा कि थोड़ा ही सही खर्चा निकल आए. लेकिन एमना सरकार क्या कर लेगी?’
मझवां का क्षेत्रफल इतना बड़ा है कि उसे फौरी तौर पर विकसित या अविकसित मान लेना थोड़ी मुश्किल बात है. यहां 160 ग्राम पंचायतें और 300 गांव हैं. लेकिन वहीँ एक ही विधायक यदि तीन बार से काबिज़ हो तो अभिलाषाएं बन जाती हैं.

मझवां के भरपुरा गांव में रहने वाले 32 वर्षीय लालमणि यादव कहते हैं, ‘बहुत बार देख लिए बिन्द जी को. इस बार साइकिल का मूड बना हुआ है. ऊ प्रत्याशी भी जबर जवान खड़ा किए हैं. जवान आदमी ज्यादा काम करेगा.’ इसी इलाके के श्यामलाल पाण्डेय कहते हैं, ‘जाति का तो मुद्दा सबसे बड़ा है. यहां हमेशा से बाभन और बिन्द का लड़ाई होता आया है. लेकिन इस बार बाभन प्रत्याशी यंग है और लग रहा है कि काम भी कराएंगे तो हम लोग उनको वोट दे सकते हैं.’

सपा प्रत्याशी रोहित शुक्ला मात्र 27 साल के हैं और यह भी मुमकिन है कि वे इस समय पूरे उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के प्रत्याशी हैं. उनके भाई धेनु शुक्ला मीरजापुर के मशहूर बिनानी डिग्री कालेज के छात्रसंघ सदस्य रह चुके हैं और बीते साल उन्होंने जिला पंचायत का भी चुनाव लड़ा था. रोहित शुक्ला ने मीरजापुर के मशहूर बिनानी डिग्री कॉलेज के छात्रसंघ में महामंत्री पद का चुनाव भी लड़ने की तैयारी की थी लेकिन तत्कालीन मायावती सरकार में छात्रसंघ के चुनावों पर रोक लगा दी गयी. इसके बाद कई हफ़्तों तक चले प्रदेशव्यापी छात्र आन्दोलन में रोहित शुक्ला ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. रोहित शुक्ला पहले छात्र मोर्चा के सदस्य रहे बाद में समाजवादी युवजन सभा में गए. वे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. लेकिन उनके समर्थकों और इलाके के लोगों का मानना है कि उन्हें टिकट करीबी की वजह से नहीं बल्कि उनकी साफ़-सुथरी छवि और युवाओं पर उनकी पकड़ के चलते दिया गया है.

मझगवां के 26 वर्षीय नीटू सिंह बताते हैं, ‘रोहित जी युवा हैं, छात्र लोग उनको जानते हैं. उनके भाई हैं धेनु शुक्ला, उनको भी हम सब लोग जानते हैं. हम लोग बिनानी पढ़ने गए तो उनका नाम सुने और आज तक सुनते आ रहे हैं. उनका हम लोगों के बीच बहुत प्रभाव है. हमको तो भरोसा है कि बिन्द से ज्यादा काम करेंगे.’

जनता की राय से ज्यादा आंकड़े बोलते हैं. मझवां विधानसभा में 60 हज़ार से ज्यादा ब्राह्मण वोट हैं, और इतने ही वोट लगभग दलितों के हैं. आगे 30 हज़ार के आसपास यादवों के वोट हैं और लगभग इतने ही वोट ठाकुरों के हैं. इसके साथ बिन्द, कुशवाहा, पाल और अल्पसंख्यक वोट भी निर्णायक स्थिति में हैं. अब सपा और कांग्रेस साथ में हैं, तो इस इलाके से ताल्लुक रखने वाले दिवंगत कांग्रेसी नेता लोकपति त्रिपाठी अब समाजवादी पार्टी के भी हैं. रोहित शुक्ला बातचीत में उनका नाम भी कई बार लेते हैं. रोहित शुक्ला कहते हैं, ‘बिन्द यहाँ कई सालों से विधायक हैं. लेकिन आप एक काम निकालकर दिखा दीजिये जो सचमुच में जनकल्याण का काम हो. यहां जनकल्याण लोकपति त्रिपाठी ने करवाया था और प्रदेश में अखिलेश यादव जी हैं. जनता को जाति के मुद्दे पर वोट नहीं करना है, बल्कि उसे सचमुच का विकास चाहिए.’

ज़मीन पर यह सच दिखता भी है. मझगवां के ही 73 वर्षीय किसान प्यारेलाल बिन्द कहते हैं, ‘बिन्द हमारी जाति के हैं लेकिन सच में इलाके में जो काम लोकपति त्रिपाठी कराके चले गए, उसी की वजह से मीरजापुर जाना जाता है. इसे कौन नकारेगा.’

मीरजापुर की इस सीट पर लम्बे समय से बिन्द बनाम ब्राह्मण का बोलबाला रहा है. रमेशचन्द्र बिन्द से पहले भाजपा के रामचंद्र मौर्या यहां के विधायक थे, जिनकी बेटी और भाजपा की मौजूदा प्रत्याशी सुचिस्मिता मौर्या को फिलहाल इलाके में कम पहचान हासिल है. ब्राह्मण प्रत्याशी इलाके में लगभग हर बार दूसरे स्थान पर सिमटा रहा है क्योंकि बिन्द के साथ दलितों और कुशवाहा वोट भी संगठित हो जाते हैं. लेकिन इलाके में पुराने विधायक से थोड़ी बोरियत साफतौर पर देखी जा सकती है क्योंकि सड़क से लेकर बिजली तक सभी थोड़ा-बहुत खराब है. रोहित शुक्ला को युवा होने और पूरे मीरजापुर में पहचान की बढ़त हासिल है तो वहीँ रमेश बिन्द को जाति की. यहां जाति की लड़ाई ही तय है लेकिन इसमें यदि विकास का पैमाना जोड़ दिया जाए तो रोहित शुक्ला जीत भी सकते हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि सपा के पास इस इलाके में भगवान माने जा रहे लोकपति त्रिपाठी का भी साथ है, जिसे लोगों के बीच बातचीत में सुना जा सकता है. सपा और बसपा की इस कांटे की लड़ाई में कौन जीतेगा यह तो नहीं पता लेकिन यह तय है कि भाजपा पूर्वांचल की इस सीट पर भी पीछे छूटती हुई नज़र आ रही है.