अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मुरादाबाद : देश की पीतल नगरी मुरादाबाद में सियासत का समीकरण सपा और भाजपा दोनों के लिए विपरित दिखाई पड़ रही है. पिछले चुनाव में यहां की सारी सीटें सपा के पास रही हैं. ख़ास बात ये है कि यहां से जीते सारे विधायक मुस्लिम रहे हैं. लेकिन लोगों की मानें तो इन विधायकों ने क्षेत्र में आज तक कोई ठोस काम नहीं किया है. जहां आम जनता इस बात से नाराज़ है, वहीं दूसरी ओर पीतल नगरी के व्यवसाय को नोटबंदी ने काफी चोट की है. ये समस्या भी लोगों से बातचीत में खुलकर सामने आ रही है. यही वजह है कि सपा से नाराज़गी का फ़ायदा उठाने का भाजपा की कोशिशें नाकाम होती दिखाई दे रही हैं. हालांकि इस बीच दोनों ही ओर से वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भी जमकर कोशिशें की जा रही हैं.
कल शाम यहां चुनाव प्रचार समाप्त हो गया. किसे वोट दें या किसे न दें, इसको लेकर यहां चर्चा काफी ज़ोरों पर है. हालांकि यहां का वोटर इतना समझदार है कि वो अपने इरादों का सही आंकलन किसी को भी भांपने का मौक़ा नहीं दे रहे हैं.
शहर के अमरोहा गेट के क़रीब बर्तन बाज़ार में पीतल बर्तन की दुकान चलाने वाले 30 साल के मो. फ़राज़ बताते हैं कि, ‘किसी भी सरकार ने इस ज़िले के लिए कुछ भी खास नहीं किया है. पीतल के बिज़नेस का हब होने के बावजूद आज तक यहां से डायरेक्ट किसी जगह के लिए कोई ट्रेन बनकर चलती नहीं है, जबकि मुरादाबाद जंक्शन है.’
फ़राज़ बताते हैं कि, ‘वैसे तो अखिलेश की चर्चा है, लेकिन भाजपा भी कमज़ोर नहीं है. उसके वोटर चाहे नोटबंदी को लेकर लाख गाली दें, लेकिन वोट तो वो भाजपा को ही देंगे.’ ओवैसी के बारे में पूछने पर फ़राज़ का कहना है कि, ‘यहां उनका कोई रूझान नहीं है. पता नहीं क्यों वो इलेक्शन के वक़्त ही हैदराबाद से बाहर निकलते हैं.’
उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधी मंडल के ज़िलाध्यक्ष दीपक अग्रवाल नोटबंदी को लेकर भाजपा व पीएम मोदी से काफ़ी नाराज़ हैं, हालांकि वो लंबे समय से भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं. इनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि व्यवसायी वर्ग इस बार भाजपा का साथ नहीं देगा. किसे देगा? इस सवाल पर उनका कहना है कि, ये तो अब आख़िरी रात में तय होगा. वो ये भी बताते हैं कि अखिलेश ने भी इस शहर व इस यहां के व्यवसाय पर कोई ध्यान नहीं दिया जबकि राज्य का एक अच्छा-खासा राजस्व का फ़ायदा यहीं से सरकार को मिलता है.
40 साल के शकील अहमद भी अपना दर्द बयान करते हैं. उनका कहना है कि, ‘पूरे 12 घंटे काम करने के बाद हम जैसे मजदूर 300 रूपये कमा पाते हैं. अब आप ही बताइए कि इतने महंगाई के ज़माने में इतने में घर कैसे चलेगा. सरकार ने आखिर हम जैसे गरीब-मजदूरों के लिए क्या किया है.’ वोट किसे देंगे? इस सवाल पर इनका कहना है कि, ‘ये तो आख़िरी रात ही तय होता है. आप उस रात आईए हम बता देंगे कि वोट किसे देना है.’
मो. शहनवाज़ और रऊफ़ की भी कहानी शकील की ही तरह है. इनका भी कहना है कि सरकार किसी की भी हो, हमारे लिए सब एक जैसे ही हैं. पिछली बार इतने जोश में वोट दिया. अपने लोगों को जिताया, लेकिन इन्होंने क्या कर दिया हमारे लिए?
नौशाद व अमन कुमार का भी कहना है कि नेता सिर्फ़ चुनाव के समय ही आते हैं. पिछली बार हमने वोट दिया, उसके बाद ये नेता हमें झांकने तक को नहीं आएं.
स्थानीय पत्रकार सुधीर गोयल का कहना है, ‘यहां के तमाम सीटों पर सपा के विधायकों से हिन्दू तो नाराज़ हैं ही, वहीं मुसलमान भी नाराज़ हैं. यहां दिल्ली रोड पर एक यूनिवर्सिटी बननी थी, लेकिन आज तक नहीं बन सकी. वैसे हिन्दू वोटर तो मोदी जी से भी नाराज़ है. लेकिन इस नाराज़गी का असर शायद ही उसके कोर वोटर में दिखे. इनकी भी मजबूरी है, ये भी हर समय इसी एंगल पर सोच रहे हैं.’
गोयल आगे बताते हैं कि ‘पिछले एक महीनों में ही कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें ज़िले की साम्प्रदायिक माहौल को ख़राब करने की कोशिश की गई. लेकिन यहां का स्थानीय मीडिया इन ख़बरों को दबा दिया. बावजूद इसके ऐसा लग रहा है कि वोटिंग वाले दिन इसका असर शायद ज़रूर नज़र आए. और वैसे भी सारे समीकरण आखिरी दिन ही बनता है.’
मुरादाबाद को पीतल नगरी इसलिए कहा जाता है कि यहां बनने वाला पीतल पूरे देश में सप्लाई होता है. भले ही यहां का पीतल पूरे देश-दुनिया में जाती है, मगर ये पीतल नगरी सरकारी उपेक्षा से इन दिनों कराह रही है. रही-सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी है. सियासत ने इसके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की जगह सिर्फ़ वायदों का नमक छिड़क दिया है. इस बदहाली में चुनावी दौर के वायदे यहां के बाशिंदों के समझ में नहीं आ रहे हैं. ऐसे में मुरादाबाद की राजनीत में बड़े उलट-फेर की आशंका जताई जा रही है.
मुरादाबाद ज़िले में 6 विधानसभा सीट हैं. 2012 चुनाव में कांठ व ठाकुरद्वारा विधानसभी सीट को छोड़कर मुरादाबाद ग्रामीण, मुरादाबाद नगर, कुंदरकी और बिलारी सीट पर सपा की जीत हुई थी. 2014 में जब ठाकुरद्वारा सीट जिस पर भाजपा जीती थी, लेकिन 2014 में हुए उपचुनाव में ये सीट भी सपा के खाते में चली गई, वहीं कांठ सीट से पीस पार्टी का विधायक भी सपा में शामिल हो गया.
बताते चलें कि मुरादाबाद नगर सीट पर जहां सपा-कांग्रेस गठबंधन, बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं जिनकी उम्मीद मुस्लिम वोटो पर टिकी हैं वहीं भाजपा के उम्मीदवार को मुस्लिम वोटो के बिखराव पर नज़र है. मुरादाबाद ग्रामीण सीट की खास बात ये है कि सभी पार्टियों ने नए चेहरे मैदान में उतारे हैं. कुन्दरकी सीट पर अगर आप देखें तो भाजपा प्रत्याशी रामवीर सिंह को उनकी मुस्लिम समाज में पैठ की वजह से मुस्लिम वोट भी मिलते दिख रहे हैं. कांठ सीट पर लाउडस्पीकर काण्ड की वजह से चर्चा बनी हुई है. उस मंदिर का अब रंग रोगन हो गया हैं. पुराने गुलाबी रंग की जगह अब शांति के प्रतीक सफ़ेद रंग से पुताई हो गयी है, लेकिन लोगों के दिलों में आज भी अशांति है. बिलारी सीट पर बसपा के बागी अनिल चौधरी ने रालोद से चुनाव में उतर कर समीकरण बिगाड़ दिए हैं. ठाकुरद्वारा सीट पर महान दल भी ठीक वोट पाता दिख रहा है. विजय यादव महान दल के कैंडिडेट 2007 में बसपा से विधायक रह चुके हैं.
यहां ये भी बताते चलें कि इस बार मुरादाबाद शहर की सीट से 16 प्रत्याशी मैदान में हैं. बसपा से अतीक़ सैफ़ी, सपा से मो. यूसुफ़ अंसारी, रालोद से रऊफ़, पीस पार्टी से अब्दुल रौक, भाजपा से रितेश कुमार गुप्ता, एआईएमआईएम से शहाबुद्दीन, राष्ट्रीय कांग्रेस से देशपाल सिंह, आरक्षण विरोधी पार्टी से राजीव कुमार दूबे, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से राधे श्याम, राष्ट्रीय मजदूर एकता पार्टी से विजेता गुप्ता, निर्भल इंडियन शोषित हमारा आम दल से विनय प्रकाश, शिवसेना से बी.के. सैनी और सोशलिस्ट यूनिटी से हरिकिशोर सिंह चुनावी मैदान में हैं. वहीं ऋषि भारद्ववाज, ममता गुप्ता और ज्ञानेन्द्र कुमार बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं.
वहीं मुरादाबाद ग्रामीण से इस बार 17 प्रत्याशी मैदान हैं. ठीक इसी प्रकार कांठ से 14, ठाकुरद्वारा से 10, कुंदरकी से 14 और बिलारी से 13 प्रत्याशी इस बार चुनावी मैदान में हैं. इस ज़िले के तमाम सीटों पर मतदान 15 फरवरी को है.