सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
इलाहाबाद : फूलपुर विधानसभा के वोटर श्याम सिंह बताते हैं, ‘सपा का टिकट मुसलमान को, बसपा का टिकट मुसलमान को. हमको आप एक कारण बताइये कि हम अपना वोट भाजपा को क्यों न दें?’ 34 बरस के श्याम सिंह का यह कहना इलाहाबाद की राजनीतिक करवट को समझाने के लिए थोड़ा साफ़ है.
इलाहाबाद का पिछ्ला समीकरण जो भी कहता हो, लेकिन इस बार इलाहाबाद जाने पर मालूम होता है कि पूर्वांचल में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का नया केंद्र इलाहाबाद हो सकता है. यहां हिन्दू बनाम मुस्लिम की राजनीति थोड़ी ज्यादा मजबूत तरीके से अपना आधार बनाते हुए दिख रही है.
इलाहाबाद में कुल 12 विधानसभा सीटें हैं. इनमें फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, प्रतापपुर, हंडिया, मेजा, करछना, शहर उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी, बारा और कोरांव शामिल हैं. इनमें बारा, कोरांव और सोरांव सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. फौरी तौर पर यदि इलाहाबाद का पिछ्ला चुनाव देखें तो इनमें से आठ सीटें सपा के पास हैं, तीन बसपा के हैं और एक कांग्रेस के पास है. सपा की आठ सीटों में फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, प्रतापपुर, हंडिया, मेजा, दक्षिणी और बारा की सीटें शामिल हैं. इनमें कांग्रेस की एक सीट को शामिल करना हो तो शहर उत्तरी की सीट को भी जोड़ा जा सकता है. इसके अलावा बसपा की सीट पर करछना, पश्चिम और कोरांव की सीट शामिल है. यानी बीते चुनाव यहां सपा-कांग्रेस गठबंधन को बढ़त देते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं.
पहले फूलपुर, प्रतापपुर और हंडिया की सीटों पर बात की जाए. ये इलाके इलाहाबाद से बाहर मौजूद हैं और सुविधाओं से दूर हैं. सड़क ठीक-ठाक है और कभी तो उतनी भी ठीक नहीं है. बिजली नहीं रहती है.
फूलपुर में सपा के सईद अहमद ने 2012 में यहां 72,898 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी, जबकि बसपा के प्रवीण पटेल 64,998 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. इस बार प्रवीण पटेल भाजपा के टिकट पर यहां से उम्मीदवार हैं. और बसपा के टिकट पर मोहम्मद मशरूर लड़ रहे हैं. लेकिन मजेदार बात यह है कि बड़े अंतर से जीत दर्ज करने वाले सपा के सईद अहमद का टिकट अखिलेश यादव ने काट दिया. अखिलेश ने सईद अहमद का टिकट मंसूर आलम को दिया है.
अब फूलपुर में देखिए तो सपा और बसपा के एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी हैं. और भाजपा का प्रत्याशी हिन्दू है. इस इलाके में मुस्लिम और हिन्दू समुदाय की संख्या लगभग बराबर है. यह भी बात सही है कि पिछड़ी जातियों और दलितों के वोट इस इलाके में मौजूद तो हैं, लेकिन ये वोट भी अभी अनिर्णय की स्थिति में हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटों के सपा और बसपा के बीच बंटने के साथ-साथ हिन्दू वोटों के एकीकृत होने के भी आसार मजबूत हैं.
श्याम सिंह के पास ही मिले मोहम्मद मंज़ूर उनके हिंदूवादी होने के रवैये को भांपते हुए बताते हैं, ‘वोट तो मोदी को देंगे’, कारण और काम पूछने पर वे कोई जवाब नहीं दे पाते हैं. उनके जाते ही श्याम सिंह बताते हैं, ‘अरे हम थे तो मोदी बोल दिया, ऐसे अखिलेश यादव का नाम बोलता.’ मोहम्मद मंज़ूर का डर कुछ देर बाद ही साफ़ हो जाता है क्योंकि पुराने ठिकाने से दूर मिलने पर बताते हैं, ‘हम वहां बोलते तो चार लोग मेरे ऊपर पिल पड़ते कि मोदी क्या गलत किए हैं?’
45 वर्षीय मोहम्मद राऊफ़ कहते हैं, ‘अभी तक तो सोचा है नहीं कि वोट किसको देंगे. पिछली बार सपा को दिए थे. अभी तक मन भी उसी का बना हुआ है. सात-आठ दिन है, हो सकता है कि कुछ नया-ताजा से वोट बदल जाए.’ नया-ताजा से वोट बदलने का मतलब भी साफ़ है, वह भाजपा की ओर जाने से रहा, इसलिए वह बसपा की ओर बंट सकता है.
मोहम्मद राऊफ़ के साथ ही मिले 48 साल के अय्यूब बताते हैं, ‘हम लोग का वोट समाजवादी पार्टी को जाएगा.’ हम उनसे ‘हम लोग’ का मतलब पूछते हैं और इसकी जांच करते हैं कि उनके ‘हम लोग’ में कितनी एकता शामिल है? इस पर वे कहते हैं, ‘हम लोग का मतलब हम कहना चाह रहे थे कि हमारे साथ के एक-दो लोग. बाकी हमारे इलाके में अभी भी यह बात साफ़ नहीं है कि वोट किसको देना है. अधिकतर लोग सपा का मूड बनाए हुए हैं, लेकिन आगे का देखिए क्या होता है?’
फूलपुर में सपा बसपा के मुकाबिले पीछे इसलिए भी छूटती दिख रही है क्योंकि यहां के मौजूदा विधायक का टिकट काट दिया गया है. सईद अहमद मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं और उनकी छवि भी दागदार है. जब अखिलेश और मुलायम में प्रत्याशियों को लेकर उठापटक चल रही थी, तब मुलायम ने इनको टिकट दिया था लेकिन अखिलेश ने काट दिया था. अब इसका असर इलाके में देखने को मिलता है.
ऐसा फूलपुर में ही नहीं, इलाहाबाद की अन्य विधानसभा सीटों पर भी है कि वहां अन्य पार्टियों द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने के बाद वोट भ्रमित हुआ है और इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल रहा है. प्रतापपुर में भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला. प्रतापपुर के जितेन्द्र सिंह बताते हैं, ‘यहां पर इलाहाबाद में कौन हो और प्रदेश में कौन हो? इन दोनों बातों में बड़ा अंतर आ जाता है. प्रदेश में लगता है कि मायावती आ जाएंगी लेकिन इलाहाबाद का मन है कि यहां भाजपा आ जाए.’ वे आगे बताते हैं, ‘यहां भाजपा और बसपा में लड़ाई हो रही है. भाजपा चाह रही है कि हिन्दू वोट जुट जाए और बसपा चाह रही है कि मुस्लिम वोट जुट जाए. और मजेदार बात यह है कि इन दोनों के बीच में सपा मौजूद है, जो दोनों को नुकसान पहुंचा रही है और ज्यादा नुकसान बसपा को ही पहुंचा रही है.’
प्रतापपुर में भी हिन्दू बनाम मुसलमान का समीकरण इसलिए काम कर सकता है क्योंकि यहां सपा की विजमा यादव मौजूदा विधायक हैं और उनका टिकट बरकरार रखा गया है. 2012 में विजमा यादव ने यहां 62,582 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी, वहीं बसपा के मोहम्मद मुजतबा सिद्दीक़ी 49,774 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. बसपा ने भी मोहम्मद मुजतबा सिद्दीक़ी का टिकट बरक़रार रखा है. इस सीट पर भाजपा ने प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है क्योंकि समझौते के तहत यह सीट अपना दल के कोटे में गयी है. अंतिम दिनों में यहां अपना दल से बृजेश कुमार पाण्डेय को टिकट दिया गया है. भाजपा समर्थित होने का लाभ बृजेश पाण्डेय को मिल सकता है, लेकिन इसमें भी पूरी तरह से संदेह है. ऐसा इसलिए क्योंकि अपना दल के ही केएल पटेल और कारन सिंह बाग़ी हो गए और इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशियों के तौर पर अपना नामांकन कर दिया है. ऐसे में पूरा संदेह है कि अपना दल के वोट बंट जाएंगे. अभी भी इस सीट पर विजमा यादव और मोहम्मद मुजतबा सिद्दीक़ी के बीच मुकाबला माना जा रहा है लेकिन जो हिन्दू वोटिंग है और आसपास की सीटों पर मुस्लिमबहुलता है तो इस सीट के भी प्रभावित हो जाने के आसार बेहद मजबूत हैं.
हंडिया सीट पर जाति का विशुद्ध समीकरण है. यहां मुस्लिम वोटों की संख्या बेहद मजबूत नहीं है इसलिए मामला ब्राह्मण बनाम ठाकुर या ब्राह्मण बनाम भूमिहार का हो जाता है. बनारस-इलाहाबाद हाइवे पर मौजूद हंडिया पर जब आप पहुंचते हैं तो बिजली नहीं मिलती है और इलाका अंधेरे में मिलता है. लेकिन बिजली से क्या फर्क पड़ता है जब इलाहाबाद शहर से चालीस किलोमीटर दूर मौजूद इस गांव में पॉलिटेक्निक संस्थान मौजूद है. लेकिन फिर भी लोग विकास के नाम पर वोट करने को तैयार नहीं दिखते हैं. हंडिया में पिछड़ी जातियों के भी वोट मौजूद हैं लेकिन वे जनाधार निर्धारित कर पाने की न स्थिति में हैं, न उनमें कोई ऐसी एकता दिखती है. राजू बिंद कहते हैं, ‘यहां पर या तो ठाकुर रहता है, या बाभन या भूमिहार. पिछड़ा जाति से कोई विधायक नहीं बना. अब इतना साल से कोई नहीं बना तो हम लोग भी इधर ही वोट दे देते हैं, फालतू में काहे वोट खराब करें.’ साधू समर सिंह कहते हैं, ‘हम अपना वोट साइकिल को देंगे. साइकिल विकास किया है हंडिया में.’ हम उनका इस तथ्य से सामना कराते हैं कि आपके यहां तो लाईट ही नहीं है, फिर आप विकास की बात कैसे कर रहे हैं? तो वे कहते हैं, ‘अरे केवल बिजली विकास होता है क्या? आदमी को भी तो देखना होता है.’
हंडिया से सपा के प्रशांत कुमार सिंह विधायक हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनावों में प्रशांत कुमार सिंह के पिता महेशनारायण सिंह विधायक चुने गए थे लेकिन एक साल बाद उनका निधन हो जाने से उनके बेटे प्रशांत कुमार सिंह 2013 के उपचुनाव में खड़े हुए और बहुत भारी अंतर से जीत दर्ज की. इस चुनाव में प्रशांत ने रिकार्ड 81,665 वोट पाए थे और बसपा के पंकज त्रिपाठी 54,838 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन इस सीट पर अखिलेश यादव ने टिकट दे दिया है वासुदेव यादव की बेटी निधि यादव को. निधि यादव अखिलेश यादव के पर्यटन विभाग में सलाहकार के पद पर हैं और यह उनके जीवन का पहला चुनाव है. बसपा ने इस सीट पर हकीम लाल बिंद को टिकट दिया है. बसपा का दुर्भाग्य यह है कि उनके प्रत्याशी को इलाके में बहुत ज्यादा पहचान नहीं हासिल है.
इसके बाद इलाके में थोड़ी मजबूत स्थिति में मौजूद अपना दल पर आएं तो यहां मंत्री रह चुके और भाजपा और बसपा की सरकारों में हंडिया से कुल चार बार विधायक रह चुके राकेशधर त्रिपाठी की पत्नी प्रमिला त्रिपाठी चुनाव लड़ रही हैं. इलाके में राकेशधर त्रिपाठी का दबदबा बना हुआ है और इसका लाभ उनकी पत्नी को मिलने के पूरे आसार हैं लेकिन यहीं पर एक पेंच आ जाता है. राकेशधर त्रिपाठी के बेटे प्रभात त्रिपाठी भी इस चुनाव में अपनी माँ के खिलाफ़ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए हैं. प्रभात त्रिपाठी 2013 के उपचुनाव के दौरान ही प्रशांत कुमार सिंह को टक्कर देना चाहते थे लेकिन राकेशधर त्रिपाठी ने उन्हें बिठा दिया. इलाके के राममणि वैभव हंसते हुए कहते हैं, ‘बेटवा ताव में आ गईस है. अब ऊ बैठाय न बईठी.’ हालांकि कालेधन के आरोप में जेल की हवा काट चुके राकेशधर त्रिपाठी का पूरा समर्थन उनकी पत्नी प्रमिला तिवारी के साथ है, इसलिए रुबाब का थोड़ा फर्क पड़ेगा. सपा के मौजूदा विधायक का टिकट कट जाने से इलाके के कार्यकर्ता गुस्से में हैं और निधि यादव के पक्ष में खुलकर सामने नहीं आए हैं. ज्ञात हो कि निधि यादव 2013 से ही इस विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही थीं. कार्यकर्ताओं के इस गुस्से का असर सपा के वोटबैंक पर पड़ेगा, साथ ही निधि का ब्राह्मण, ठाकुर या भूमिहार न होना भी उनके वोटबैंक पर अच्छा खासा असर डाल सकता है.