Home Lead Story बदहाली का नमूना है भाजपा सांसद कौशल किशोर का आदर्श ग्राम

बदहाली का नमूना है भाजपा सांसद कौशल किशोर का आदर्श ग्राम

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

ऑंट गढ़ी सौरा/मलीहाबाद: लखनऊ की मोहनलाल गंज संसदीय सीट से भाजपा सांसद कौशल किशोर का गोद लिया हुआ गांव बदहाली का जीता-जागता नमूना है. यहां बुनियादी सुविधाएं दूर-दूर तक नज़र नहीं आती हैं. जबकि ये पूरे क्षेत्र के लिए एक आदर्श ग्राम पंचायत है. यही नहीं, ये क्षेत्र मलीहाबाद विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और जहां से इस बार सांसद कौशल किशोर की पत्नी जयदेवी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.

लखनऊ से क़रीब 42 किलोमीटर का सफ़र करके जैसे ऑंट गढ़ी सौरा ग्राम पंचायत पहुंचते हैं, इस आदर्श ग्राम की सारी हक़ीक़ते सामने आ जाती हैं.

कई महिलाएं हाथ में लोटा लिए खेतों की ओर जाती हुई नज़र आती हैं. तभी नज़र यहां मौजूद एक शौचालय पर पड़ती है, जिसकी दिवार पर लिखा है, ‘बहू ब्याह कर घर में लाये, पर शौचालय नहीं बनाये. स्वच्छ भारत मिशन, एक क़दम स्वच्छता की ओर.’ शौचालय के अंदर पड़ी गंदगी व धूल ये बताने के लिए काफी है कि इसे कभी किसी ने इस्तेमाल नहीं किया है. लोगों से पूछने पर लोग बताते हैं कि इस शौचालय पर कुछ दबंग ठाकुरों का क़ब्ज़ा है. गलती से अगर कोई गया भी तो उसकी पिटाई हो जाती है. बल्कि कई महीनों तक इसमें ताला लगा रहा.

यहां का पंचायत भवन काफी जर्जर स्थिति में है. इसके बरामदे में सामान रखा पड़ा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि शायद ही ये कभी खुलता हो और हालत तो देखिए कि कब गिर जाए, पता नहीं, ऐसे में यहां कौन बैठेगा. शिक्षा, स्वास्थ और सड़क यह तीनों ही चीजों से यहां के रहने वाले महरूम हैं.

बग़ल में स्वास्थ उपकेन्द्र जबसे बना है, बंद ही पड़ा है. लोगों का कहना है कि यहां आज तक कोई डॉक्टर या अधिकारी नज़र नहीं आया है. लोग बीमार पड़ते हैं तो इन्हें तक़रीबन 6-7 किलोमीटर का सफ़र तय करके माल ग्राम पंचायत में जाना पड़ता है. किसी भी बैंक की शाखा और एटीएम मशीन भी नहीं है. जबकि लोगों की माने तो सांसद कौशल किशोर को सबसे अधिक वोट यहीं से मिला था, इसीलिए उनका प्रेम भी इस गांव से अधिक है.

लगभग साढ़े पांच हज़ार की आबादी वाले इस गांव में सिर्फ़ तीन स्कूल हैं और ये तीनों स्कूल भी सिर्फ़ आठवीं क्लास तक ही हैं. आगे पढ़ने के लिए यहां के बच्चे-बच्चियों को क़रीब 6-7 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है और अगर बारहवीं के बाद भी पढ़ना हो तो इन्हें लखनऊ जाना पड़ता है. हालांकि स्थानीय लोगों की शिकायत है कि यहां पढ़ाई का स्तर काफी नीचे है. बच्चों की बात तो दूर टीचरों को भी सही से लिखना नहीं आता.

इस गांव में सड़क लगभग नदारद ही हैं. गांव की सड़कें टूटी फूटी पड़ी हैं. कई स्थानों पर खड़ंजे उखड़े हुए हैं और कई स्थानों पर रोड नाम की कोई चीज ही नहीं है.

72 साल के गंगा राम साहू का कहना है, ‘गांव में पानी की समस्या है. इसके लिए यहां सांसद जी के फंड से पानी की टंकी बननी थी, लेकिन आज तक कोई टंकी नहीं बन पाई है. बस दिखावे के लिए एक पाईप डाल दिया गया है.’

वहीं अरविन्द सिंह का कहना है कि गांव के 70 फ़ीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है, उन्हें शौच के लिए खुले में ही जाना पड़ता है. वो आगे बताते हैं, ‘वैसे सांसद जी की वजह से बिजली के खंभे लग गए हैं, तार भी बदले गए हैं.’ 

पंचायत से हम तक़रीबन 3 किलोमीटर दूर जलौली गांव जाते हैं. यहां हमारी मुलाक़ात 60 साल के चंगा से होती है, लेकिन चंगा अभी चंगा नहीं है. चलने में समस्या है, लेकिन उनकी चिंता है कि गांव में तो कोई डॉक्टर है नहीं, तो फिर दिखाए किसे. चंगा को इस बात की भी फ़िक्र है कि गांव में एक भी स्कूल नहीं है, इसलिए ज़्यादातर लोग अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ा पाते हैं. दुर्गेश सिंह भी चाहते हैं कि यहां स्कूल का होना बहुत ज़रूरी है. इनकी दूसरी फिक्र यह है कि लोगों को शादी-ब्याह में काफी समस्या आती है, क्योंकि पूरे ऑंट गढ़ी सौरा में कोई सामुदायिक भवन नहीं है. 

यहां के ज़्यादातर लोगों की शिकायत है कि चुनाव के समय भी नेता वोट मांगने नहीं आते. हां, बस उनके लोग आकर बता देते हैं कि किसे वोट देना है और फिर गांव वाले तय करते हैं कि इस बार किसे वोट दिया जाए.

73 साल के सेवानिवृत्त शिक्षक उदय प्रताप सिंह का कहना है कि ये जलौली गांव तक़रीबन 300 साल पुराना गांव है. इस गांव के कई लोग शिक्षक बने, बावजूद इसके आज तक यहां एक भी स्कूल नहीं खुल पाया. हालांकि हमने काफी प्रयास किया, लेकिन सरकार की ओर से किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया.

वो बताते हैं, ‘इस जलौली गांव में तक़रीबन 100 घर हैं और उनमें क़रीब 800 लोग बसते हैं. ज़्यादातर मकान कच्चे ही हैं. यहां 60 फ़ीसदी आबादी दलितों की हैं, वहीं 40 फ़ीसदी स्वर्ण जाति के लोग हैं.’ 

ग्राम विकास अधिकारी सुनील कुमार के मुताबिक़, ‘सांसद आदर्श ग्राम होने के बावजूद इस योजना के तहत कोई अलग से फंड इस ग्राम पंचायत को नहीं मिला है. अलग से अब तक कोई धन-राशि जारी नहीं हुई है. और जब फंड ही नहीं मिलेगा तो काम कैसे होगा.’ तब इस गांव को आदर्श गांव होने का क्या लाभ मिला? इस सवाल पर उनका कहना है कि इस सवाल का जवाब तो सांसद जी को ही बेहतर पता होगा. और लोगों को क्या लाभ मिला है, वो तो गांव के लोग आपको बता ही चुके हैं.

सांसद आदर्श ग्राम योजना का मक़सद गांव की तक़दीर बदलना था, मगर ये योजना यहां सिर्फ़ कागज़ों पर ही सिमटी हुई नज़र आती है. सांसद कौशल किशोर के ज़रिए गोद लिए गांव का ये हाल एक बानगी भर है, जहां ज़मीन और कागज़ में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं मौजूद है.