आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
रसूलपुर जाटान(शाहपुर): मुज़फ्फरनगर के सांसद और केंद्र सरकार में राज्यमंत्री संजीव बालियान का आदर्श ग्राम ‘रसूलपुर जाटान’ के नाम से जाना जाता है. यह गांव जनपद के शाहपुर थाना के अंतर्गत आता है. गांव की पहचान चौधरियों के गांव के तौर पर है और यहां बड़े किसान बसते हैं. यहां तक कि इस गांव ने प्रशांत बलियान जैसा आईएएस अधिकारी भी दिया है और अंकित जैसा राष्ट्रीय कबड्डी प्लेयर भी. गांव की एक बेटी नन्दिनी बालियान रेलवे एआरएम भी हैं.
फौरी तौर पर देखें तो गांव के लोग विकासशील और संपन्न हैं और ज्यादातर परिवारों का एक घर शहर में भी है. अब अमीरों के गांवों को जब यहां के सांसद ने गोद ले लिया तो गांव के विकास में ना यहां के सांसद ने कोई ख़ास रूचि दिखाई और ना ही यहां के ज्यादातर अमीरों ने. लेकिन एक ख़ास बात में यह गांव बहुत रूचि लेता है, वह है यहां की पंचायत. पिछले दिनों यहां एक पंचायत हुई जिसमें रिश्ता तोड़ने वाले लड़के की दो साल तक शादी नही होने देने का फरमान जारी कर दिया गया. जाट बिरादरी के चौधरियों का फरमान न मानने की हिम्मत कौन करता? दंगे के बाद आरोपियों की गिरफ़्तारी के विरोध की पंचायत इसी गांव में लगती थी. शाहपुर बवाल के बाद यहां एक बड़ी पंचायत हुई जिसमें भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी पहुंचे थे. प्रशासन से टकराव के हर मौके पर रसूलपुर सबसे आगे अड़ जाता रहा है. यहां एक भी मुसलमान नहीं है मगर मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद यह अकेला ऐसा गांव नहीं है.
अब गांव के लोगों को इस बात का गुस्सा है कि उनका सिर्फ इस्तेमाल किया गया जबकि गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री और क्षेत्रीय सांसद संजीव बालियान ने अक्टूबर 2014 में आदर्श गांव के तौर पर रसूलपुर जाटान को गोद लिया था. 1952 में अस्तित्व में आई ग्राम पंचायत रसूलपुर जाटान के लगभग सभी ग्रामीण गन्ने की खेती पर निर्भर हैं. खास बात यह है कि इस गांव की साक्षरता की दर शत प्रतिशत है. अपनी मेधा के बल पर कई ग्रामीण गांव का नाम रोशन करते रहे हैं.
गांव में अधिकतर गन्ने की खेती करने वाले किसान रहते हैं. गांव के कुछ लोग खेती के शाहपुर व मुजफ्फरनगर में जाकर अपना व्यवसाय कर रहे हैं. गांव के अनेक लोग सम्पन्न हैं. कुछ परिवार मध्यम श्रेणी के हैं, गांव में अधिकतर लोगों के मकान पक्के हैं. गांव में अधिकतर किसान गन्ने की खेती करते हैं. गांव के ही किसान बिजेन्द्र बालियान गांव में प्याज, लहसुन के अलावा चुकंदर की खेती कर रहे हैं/ गांव के ही डा. हरबीर आर्य हर्बल मेडिसिन के लिए उपयोगी पौधों की खेती कर रहे हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि एक अमीर सांसद ने अमीरों के एक गांव को गोद लिया है.
गांव में सभी राजनैतिक दलों के लोग रहते हैं. गांव के ही सुधीर बालियान साल 1991 में भाजपा की प्रदेश सरकार में कैबिनेट सहकारिता मंत्री रह चुके हैं. वही गांव के ही डा. हरबीर आर्य आरएसएस के जिला कार्यवाह हैं. गांव के ही पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक बालियान बाबा टिकैत के खास सिपहसालारों में रह चुके हैं. गांव में साक्षरता लगभग शत-प्रतिशत है. गांव के लोग अपने-अपने बच्चों को शाहपुर कस्बे, मुजफ्फरनगर व अन्य शहरों में उच्च शिक्षा दिला रहे हैं. गांव में आर्य समाज का अच्छा प्रभाव है. समय-समय पर अपने घरों पर हवन व यज्ञ का आयोजन करते रहते हैं. गांव के कई बच्चे गुरुकुल कांगड़ी और गुरुकुल झज्जर में शिक्षा ग्रहण कर आचार्य भी बन चुके हैं.
जितेंद्र बालियान की पुत्री पूजा बालियान कालका डेन्टल कालेज मेरठ में प्रोफेसर हैं. गांव के पूर्वमंत्री सुधीर बालियान के चाचा सतेन्द्र कुमार अमेरिका में भौतिकी विशेषज्ञ हैं. दूसरे चाचा नरेन्द्र वर्मा केंद्रीय अनुसंधान केंद्र रुड़की में निदेशक हैं. नरेन्द्र वर्मा के पुत्र नवीन्दु रघुवंशी आईआईएम अहमदाबाद में कार्यरत हैं. इसके अलावा गांव के कई युवा प्रशासनिक सेवाओं में कार्य करते हुए गांव का नाम रोशन कर रहे हैं. यह तथ्य फिर से बता देना चाहिए कि गांव में एक भी मुस्लिम नहीं है.
गांव की आबादी लगभग 3500 है. 2650 मतदाता हैं, जिनमें महिला व पुरुषों की संख्या बराबर है. इनमें 75 प्रतिशत जाट, 13 प्रतिशत दलित, 5 प्रतिशत कश्यप व बाकी में ब्राहमण, उपाध्याय, कुम्हार, लुहार, व वाल्मीकि आदि हैं. गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नही है लेकिन इतना हाईप्रोफ़ाइल होने के बावजूद गांव में न कॉलेज है औरना ही खेल का मैदान है. जबकि सांसद ने यहां बैंक शाखा और अस्पताल का भी वादा किया था. इस बारे में पूछने पर संजीव बालियान कहते हैं, ‘मैंने हर मुमकिन कोशिश की है. किसानों को अत्याधुनिक कृषि यंत्र और उन्नत बीज उपलब्ध कराए हैं. जमीन न मिलने के कारण कॉलेज, खेल का मैदान, बैंक शाखा व अस्पताल का निर्माण नहीं हो पाया है.’
मगर सामने संजीव बालियान का पीछा नही छोड़ते सवाल हैं कि साढ़े तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में होना क्या था और हुआ क्या? यहां अस्पताल खुलना था, नहीं खुला. बैंक की शाखा खुलनी थी, नहीं खुली/ कॉलेज और खेल के मैदान का प्रस्ताव भी बना था, बना ही रह गया क्योंकि इन योजनाओं के लिये अभी तक जमीन ही नहीं मिली.
अब जरा दूसरी तरफ चलें. गांव में शाम को बिजली पहले भी नहीं आती थी, अब भी गायब रहती है. गांव में 25 सोलर स्ट्रीट लाइटें लगी हैं, जिनमें 10 खराब हैं. यहां 28 सरकारी हैंडपम्प हैं, इनमें से 20 का पानी पीने लायक नहीं है, क्योंकि उनमें टीडीएस ज्यादा है. गांव में सफाईकर्मी नियुक्त है, फिर भी हर तरफ गंदगी के दर्शन होते हैं. गांववालों को इलाज के लिये 20 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल जाना पड़ता था, आज भी वहीं जाना पड़ता है. शौचालयों की स्थिति जरूर बेहतर हुई है. आदर्श गांव घोषित होने के बाद 130 घरों में शौचालय बनवाए गए हैं. अब सिर्फ 35 घर शौचालय से वंचित हैं. ग्राम प्रधान सुनीता चौधरी विकास न हो पाने की मूल वजह प्रशासनिक उदासीनता बताती हैं. ग्रामीण बिजेंद्र सिंह मानते हैं कि कृषि क्षेत्र में कुछ काम जरूर हुआ है.
प्राइमरी स्कूल है, जो आठवीं तक है. मगर यहां बमुश्किल 50 बच्चे आ पाते हैं जो चौधरियों के नहीं हैं. अशोक बलियान कहते हैं कि गांव की दशा सुधारने की जिम्मेदारी सबकी है सिर्फ सांसद की नहीं.
अगर सांसद संजीव बालियान इसे ना भी चुनते तो भी गांव में इतने सक्षम लोग हैं जो इसे आदर्श ग्राम बना सकते है. मगर इसके लिए वे जरुरी इच्छाशक्ति नही दिखा रहे हैं. अब अशोक बालियान अपने दम पर प्रयास कर रहे है. यहां के अरविन्द कुमार को आप कबड्डी के बेहतरीन खिलाड़ी के तौर पर जानते हैं. वे बताते हैं कि उनका साथी अंकित अपने खेल के दम पर पुलिस में दारोगा बन गया, मगर कुछ महीनों में ही उसकी शहादत हो गयी. फिर भी वो हमारा रोल मॉडल है. खेत में गन्ना छीलते भुद्धन कहता है, ‘कैसा विकास साहब कुछ मजदूरी बढ़वा दो.’
[यह रिपोर्ट भारतीय अमरीकी मुस्लिम परिषद् (Indian American Muslim Council – IAMC) के सहयोग से पूरी की गयी है.]