सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
सुल्तानपुर/अमेठी – बात सुल्तानपुर से शुरू करते हैं, जहां की पांचों सीटें इस वक़्त समाजवादी पार्टी के पास हैं. लेकिन 27 फरवरी को होने जा रहे चुनावों में यहां बड़े सियासी फेरबदल की संभावनाएं मजबूत होती जा रही हैं.
सुल्तानपुर लखनऊ और बनारस के बीचोंबीच है, इसलिए न ये लखनऊ हो सका है और न तो बनारस. जहां कई जिलों में सड़कें और बिजली ठीक होती जा रही है, वहीँ सुल्तानपुर अभी भी सड़क के लिए जूझ रहा है. लेकिन यहां यह भी साफ होना चाहिए कि हर जिले की तरह सुल्तानपुर भी मसलों पर वोट नहीं कर रहा है.
गोमती नदी के आसपास बसे सुल्तानपुर में निषाद समुदाय, जिन्हें आम भाषा में मल्लाह कहा जाता है, निर्णायक अवस्था में मौजूद हैं. उनके साथ-साथ मुस्लिम, ब्राहमण और ठाकुर भी सुल्तानपुर की इन पांच सीटों पर निर्णायक अवस्था में हैं. ये पांच सीटें हैं इसौली. सुल्तानपुर, सदर, लम्भुआ और कादीपुर. इनमें से कादीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गयी है. सुल्तानपुर सीट पर 2012 में समाजवादी पार्टी के अनूप संडा ने जीत दर्ज की थी, उस साल इस सीट पर दूसरे स्थान पर बसपा के मोहम्मद ताहिर खान थे. 2012 में अनूप संडा को निषाद समुदाय का भरपूर समर्थन मिला था, लेकिन इस बार निषाद उनसे छिटक गए हैं.
राकेश कुमार निषाद बताते हैं, ‘हम लोगों ने संडा जी को वोट दिया था लेकिन हम लोगों को कोई फायदा तो नहीं हुआ. 2014 में भी हम लोग ने साइकिल को वोट दिया था लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ. हम लोग वोट बर्बाद कर रहे थे.’ निषाद वोटों की संभावना के बारे में राकेश कुमार बताते हैं, ‘हम लोग इस बार भाजपा को वोट देंगे, सूर्यभान सिंह(भाजपा के प्रत्याशी) एक बार हम लोगों के बीच आए हैं, इतना भरोसा तो कम से कम हो गया है कि कुछ काम नहीं करेंगे तो न करें. लेकिन मिल तो लेंगे, बतिया तो लेंगे एक बार. संडा साहब जीतने के बाद तो नहीं आए.’ निषाद समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अन्य लोग भी ऐसा कहते हैं. निषाद समुदाय सुल्तानपुर और सदर क्षेत्र में बहुतायत में हैं. छोटे-छोटे क़स्बों में कई जगहों पर वे फैले हुए हैं. कमोबेश निषाद समुदाय के हर क़स्बे में सपा को लेकर ऐसा ही रुख है. इस सीट पर मुस्लिम भी बहुतायत में हैं, इसलिए मायावती इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी को उतारती आई हैं. इस बार भी बसपा ने मुजीद अहमद को प्रत्याशी बनाया है लेकिन सीधा लाभ मुजीद अहमद को मिलता नहीं दिख रहा है क्योंकि मुस्लिम वोटर यहां भी सपा और बसपा के बीच भ्रमित हैं.
सदर विधानसभा सीट पर भी निषाद समुदाय एक बड़ा फेरबदल करने की तैयारी में दिख रहा है. यहां के मौजूदा विधायक अरुण कुमार भी सपा से ताल्लुक रखते हैं और इस सीट पर भी बसपा के राज प्रसाद ने 2012 में दूसरा स्थान पाया था. ये दोनों ही इस बार प्रत्याशी हैं और साथ ही भाजपा के सीताराम इस सीट पर प्रत्याशी बने हुए हैं. लेकिन इन तीनों नामों से अलग जिस प्रत्याशी ने इस सीट पर बढ़त बनायी हुई है, वह सनत्य कुमार सिंह ‘बबलू सिंह’ हैं. सनत्य कुमार सिंह निषाद पार्टी से सदर विधानसभा से प्रत्याशी के तौर पर खड़े हुए हैं. गौरतलब है कि इस बार कई छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने वाली पीस पार्टी ने पूर्वांचल की इस पार्टी निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया है. सदर पर सनत्य निषाद पार्टी और पीस पार्टी दोनों के संयुक्त प्रत्याशी हैं. इस कच्चे आंकड़े के मुताबिक़ सदर क्षेत्र में निषाद समुदाय के लगभग 45 हज़ार वोट हैं, इसके अलावा पंद्रह से बीस हज़ार मुस्लिमों के भी वोट हैं. जगजीवन निषाद बताते हैं, ‘सदर में तो लगभग आधे से अधिक निषाद भाई सनत्य जी को वोट देने का मन बनाए हुए हैं, कम से कम हम लोगों का कोई सीधा नामलेवा तो आएगा.’ हालांकि इस तथ्य का निषाद समुदाय में कोई असर नहीं है कि खुद सनत्य निषाद समुदाय से ताल्लुक नहीं रखते हैं, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि निषाद पार्टी इस क्षेत्र में बढ़त बनाए हुए है. पीस पार्टी और निषाद पार्टी का कैम्पेन डोर टू डोर चल रहा है, और यदि पीस पार्टी के प्रभाव में कुछ वोट मुस्लिमों के आ खड़े होते हैं तो इस सीट पर एक बड़े फेरबदल की संभावना देखी जा सकती है.
आगे देखें तो इसौली विधानसभा में मुस्लिम वोटों का समीकरण सफलता से समझने के बाद सपा ने इस बार भी मौजूदा विधायक अबरार अहमद को टिकट दिया है. पिछली बार इस सीट पर पीस पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. अब देखें तो इसौली सीट पर ब्राह्मण वोटर भी अच्छी-खासी संख्या में मौजूद हैं. इसीलिए शायद बसपा और भाजपा दोनों ने ही ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया है. बसपा की ओर से शैलेन्द्र त्रिपाठी लड़ रहे हैं तो भाजपा की ओर से ओमप्रकाश पाण्डेय लड़ रहे हैं. इस सीट पर ब्राह्मण तो स्पष्ट रूप से भाजपा की ओर जा रहे हैं लेकिन इस सीट पर थोड़ी संख्या में मौजूद ठाकुर समुदाय के लोग सपा और भाजपा को लेकर पशोपेश में हैं. ऐसे में इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच की लड़ाई में बसपा कहीं न कहीं कुछ ब्राह्मण वोटों के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करने जा रही है. लम्भुआ की सीट पर भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं, सपा के संतोष पाण्डेय, बसपा के विनोद सिंह और भाजपा के देवमणि इस सीट पर लगभग बराबर-बराबर संख्या में मौजूद कुर्मी, ठाकुर, भूमिहार और ब्राह्मण वोटों को खींचने की जुगत में लगे हुए हैं.
अब अमेठी को देखें तो हर बार से सपा और कांग्रेस के बीच झूलती रही अमेठी की विधानसभा सीटें इस बार पेंच में चली गयी हैं. सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया है और कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले इस जिले में यह गठबंधन थोड़ी मुश्किल में फंसा हुआ है. अमेठी विधानसभा सीट पर सपा और कांग्रेस एकदूजे के सामने फेस ऑफ की स्थिति में खड़े हैं. विवादित खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के सामने अनीता सिंह खड़ी हैं, दोनों के बीच कड़ा मुकाबिला है. अपनी छवि की हालिया लीपापोती के बाद गायत्री प्रजापति थोड़ा पीछे खिसक रहे हैं और महिला प्रत्याशी होने का फायदा अनीता सिंह उठा सकती हैं. लेकिन इस मुकाबिले में अच्छा फायदा भाजपा की रानी गरिमा सिंह को मिलता दिख रहा है. कुछ ऐसा ही समीकरण गौरीगंज विधानसभा सीट पर है. यहां कांग्रेस के मोहम्मद नईम के सामने सपा के राकेश प्रताप सिंह खड़े हैं. लेकिन यहां पर गठबंधन के दोनों दलों के बीच की लड़ाई में बसपा और भाजपा दोनों ही फायदा उठाने की स्थिति में दिख रही हैं, इस संघर्ष को भुनाने के लिए बसपा और भाजपा दोनों ने ही ब्राह्मण प्रत्याशी खड़े किए हैं. ऐसे में गौरीगंज सीट पर मामला चौकोना हो गया है.
अमेठी की बाक़ी विधानसभा सीटों की बात करें तो जगदीशपुर और तिलोई में गौरीगंज और अमेठी में हो रहे संघर्ष का असर पड़ रहा है. अमेठी में कहीं भी ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ के पोस्टर नहीं दिख रहे हैं, दिख भी रहे हैं तो इक्का-दुक्का जगहों पर. राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र में महज़ दो बार आए और प्रियंका गांधी एक बार भी नहीं आयीं. सपा और कांग्रेस का गतिरोध दो अन्य सीटों पर भी अपना मजबूत प्रभाव डाल रहा है, जिसके चक्कर में राहुल गांधी की जान सांसत में फंसी हुई है कि कहीं उनके नाक के नीचे से भाजपा और बसपा यहां की विधानसभा सीटों पर बढ़त न बना ले जाएं.