फिर गहरा सकता है सहारनपुर के मसूद परिवार में टकराव

इमरान मसूद अपने भाईयों के साथ

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net


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सहारनपुर: आसपास के लोग इसे गंगोह घराना कहते हैं और इस घराने में सियासत का क्षेत्रीय वर्चस्व यहां के राशिद मसूद ने शुरू किया था. राशिद मसूद की उंगली पकड़कर रशीद मसूद ने चलना सीख लिया और पारिवारिक परम्परा को आगे बढ़ाते हुए इसे बड़ा कर दिया. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण के सबसे विश्वसनीय साथी 15 अगस्त 1947 को जन्मे कई बार के सांसद और केंद्र मे मंत्री रहे सांसद रशीद मसूद अपराधी ठहराए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के जरिए राज्यसभा की सदस्यता खत्म किए जाने वाले भारतीय इतिहास के पहले आदमी रहे हैं.

पिछले कुछ सालो में कानून और परिवार दोनों ने उन्हें बहुत विचलित किया है. रशीद मसूद ने अपने बड़े भाई काजी राशिद मसूद की उंगली पकड़कर सियासत सीखी और इमरान मसूद ने रशीद मसूद की ऊँगली पकड़कर. इमरान अपने पांच भाईयों में सबसे बड़े हैं, उनसे छोटे नोमान हैं और फिर सलमान, अदनान और जीशान हैं.

भारतीय लोक दल से राजनीति की शुरुआत करने वाले मसूद जनता पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और कांग्रेस के बाद अब समाजवादी पार्टी में हैं. वह अपनी पार्टी राष्ट्रीय एकता पार्टी बनाकर भी चुनाव लड़ चुके हैं.

सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने रशीद मसूद को वर्ष 2007 में उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ाया था. वह संयुक्त राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में प्रतिभा पाटिल विजयी हुई थीं. मसूद 75 वोट हासिल कर तीसरे नम्बर पर रहे थे.

काजी रशीद मसूद सहारनपुर के कस्बा गंगोह के रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उच्च शिक्षा हासिल कर काजी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में की थी. नकुड़ सीट से उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे. इसके बाद काजी साल 1977 में जनता पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीतकर दिल्ली पहुंचे. सन 1980 में काजी ने लोकदल के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा का चुनाव सहारनपुर सीट से लड़कर जीता. राजनीतिक जीवन में काजी के धुर विरोधी चौधरी यशपाल सिंह रहे. करीब छह दशक से इन दो दिग्गजों के बीच चुनावी संग्राम में तलवारें खिंचती रहीं. वक्त की नजाकत को भांपने में काजी रशीद मसूद शुरू से माहिर रहे. जब जरूरत समझी तब उन्होंने पाला बदल लिया. 1986 में लोकदल से राज्यसभा पहुंचने वाले रशीद मसूद 89 व 91 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई वाले जनता दल से चुनाव लड़े और विजयी हुए. इसी दरम्यान उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री का ओहदा मिला. एमबीबीएस सीट घोटाला भी इसी समय घटित हुआ.

मुस्लिमों में गहरी पैठ के बावजूद रशीद मसूद सेकुलर मिजाज के नेता कहे जाते रहे हैं. रशीद का समाजवादी पार्टी से भी लंबे समय तक रिश्ता रहा है. 1996 और 97 में वे सपा के ही चुनाव चिन्ह पर लोकसभा के लिए मैदान में उतरे. यह और बात है कि उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. काजी 2004 में सपा के टिकट पर लड़े और जीतकर संसद पहुंचे. उत्तर प्रदेश में 2011 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले टिकट बंटवारे में मुलायम सिंह यादव से अनबन के बाद रशीद मसूद ने सपा को छोड़ दिया.

जबकि क़ाज़ी रशीद मसूद का एक ही बेटा है शाजान मसूद. पिछले 3 साल से सहारनपुर की मीडिया में मसूद परिवार की आपसी झगड़े की खबरें छायी रहती हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें करते हैं. दरअसल क़ाज़ी रशीद मसूद अपने राजनीतिक वारिस के तौर पर अपने बेटे शाजान मसूद को स्थापित करना चाहते थे, मगर बड़े आभामंडल और जोरदार काबिलियत के चलते भतीजा इमरान मसूद आगे निकल गया. इस वजह से घर में पारिवारिक कलह इतनी बढ़ गयी कि एक दूसरे को सामने देखकर रास्ते बदले जाने लगे.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने पहुंचे क़ाज़ी रशीद मसूद

अब भतीजे इमरान के इर्दगिर्द घूमती है सहारनपुर की कयादत

इमरान मसूद पहली बार 2007 में मुजफ्फराबाद विधानसभा से विधायक बने. इसके कुछ महीनों पहले वो सहारनपुर चेयरमैन भी चुने जा चुके थे. बाद में एक पद छोड़ दिया. उनकी जीत एक क्रांतिकारी शुरुआत थी. वो समाजवादी पार्टी में थे और मुजफ्फराबाद से टिकट मांग रहे थे मगर यहीं से सपा ने सरकार में मंत्री जगदीश राणा को टिकट दे दिया.

इमरान ने बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए जगदीश राणा को हराकर सनसनी फैला दी. उसके बाद सूबे में माया सरकार बनी मगर जीतकर इमरान सपा में शामिल हो गए और विपक्ष की राजनीति की. 2012 में वो नकुड से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. बेहट के एक टिकट उमर अली खान के विवाद पर उन्होंने सपा से निकलकर कांग्रेस की सदस्यता ले ली. नकुड विधानसभा चुनाव में उन्हें रिकॉर्ड 85,000 वोट मिले मगर वो तब भी बसपा के धर्म सिंह सैनी से हार गए. 2014 मे उन्हें सपा ने फिर अपना प्रत्याशी बनाकर लोकसभा टिकट थमा दिया. मगर चाचा जी थोड़ा रूठ गए और भतीजे का टिकट कटवाकर बेटे शाजान मसूद को दिलवा आये. इमरान कांग्रेस में फिर से चले गए और 4 लाख मत पाकर भी भाजपा के राघव लखनपाल से 50 हजार से हार गए. इस समय वे कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

रशीद मसूद को मेडिकल सीट मामले में दोषी ठहराया गया. इमरान का सगा भाई होने के कारण उनके बेटे शाजान मसूद को लगा कि उनके पिता की यह हालात इनकी वजह से हुई है. 69 साल के रशीद मसूद ने बड़ी गलती 2014 के लोकसभा चुनाव में की जब समाजवादी पार्टी ने उनके भतीजे इमरान मसूद को सहारनपुर से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया और ‘नेता जी’ ने अपने पुराने साथी के अनुरोध पर इमरान का टिकट काटकर पुत्र शाजान को सहारनपुर लोकसभा से प्रत्याशी बना दिया.

इमरान वापस कांग्रेस में चले गए और अब लड़ाई वर्चस्व की हो गयी. इस लड़ाई में इमरान मसूद का चर्चित बयान आया और चुनाव में उन्हें शाजान से आठ गुना ज्यादा वोट मिले. इसके बाद इमरान कांग्रेस में और क़ाज़ी रशीद अपने बेटे व पोते के लिए समाजवादी पार्टी में उठापटक करते रहे. इस बीच कुछ लोगों ने इन्हें करीब लाने की कोशिश भी की. क़ाज़ी रशीद मसूद ईद पर इमरान के घर पहुंचे भी मगर बिना मुंह मीठा किये लौट आये. दोनो अलग-अलग दल में थे और अपने-अपने वजूद की लड़ाई लड रहे थे. इसलिए अंदरुनी टकराव नहीं हो रहा था मगर अब जैसे ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में समझौते की बात हवा में तैर रही है तो टकराव की संभावना बढ़ रही है. इमरान गंगोह से अपने जुड़वा भाई नोमान को कांग्रेस के टिकट पर लड़ाना चाहते हैं और नकुड़ पर अपनी पत्नी साइमा को. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (अखिलेश) द्वारा सहारनपुर में सीटों के बंटवारे को लेकर इमरान और रशीद मसूद गुट में टकराव तय है.

सलमान मसूद व पिता राशिद मसूद

सपा-कांग्रेस मिलन पर ग्रहण

2012 में मसूद परिवार के सपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लेने की भी यही वजह थी. अब इमरान का अपना स्तर अपने चाचा रशीद मसूद से ऊंचा हो गया है और सहारनपुर के लोग इमरान को अपना नेता मानते है. रशीद मसूद का दौर बीत गया है मगर समाजवादी पार्टी में काजी रशीद मसूद की बात में आज भी दम है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेशभर के तमाम नेताओं पर तरजीह देकर सिर्फ पिछले एक सप्ताह में उनसे मिले और कांग्रेस के साथ टिकट बंटवारे पर बातचीत की, यह बातचीत सहरनपुर पर केंद्रित रही क्योंकि वहां इमरान कांग्रेस को नम्बर दो की हैसियत में ले आये है जबकि समाजवादी पार्टी नम्बर चार पर है.

ऐसी संभावनाएं हैं कि पश्चिम में इसी एक जिले को लेकर सपा और कांग्रेस मिलन में खटास पड़ सकती है. उधर इमरान मसूद के भाई सलमान ने भी नकुड़ से चुनाव लड़ने की बात कही है, वैसे इसे सिर्फ एक राजनीतिक दबाव माना जा रहा है. गंभीर बात यहां टिकटों के बंटवारे की है, जिसको लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ही झुकने को तैयार नहीं हैं. इससे काजी परिवार में ईद पर शान्त हुई लड़ाई फिर शुरू होने के प्रबल आसार हैं.

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