‘वो 22 दिन इतने डरावने रहे हैं कि उसे ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता’ -आफ़ताब आलम अंसारी

TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ : ‘आतंकवाद के आरोपों से घिरे वो 22 दिन इतने डरावने रहे हैं कि उसे ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता. जब मुझे एक लोन गारंटर की शिनाख्त के बहाने कोलकाता से सीआईडी ने उठाया और यूपी एसटीएफ के हाथों दिन रात मारा पीटा गया, मैं कहता रहा कि आतंकवाद से मेरा कोई संबन्ध नहीं है पर वे मानते नहीं थे. हालांकि 23 नवंबर 2007 का एक मेडिकल सर्टीफिकेट मेरी बेगुनाही का प्रमाण बना जिसके बाद मैं रिहा हो सका. मैं उस दर्द को आज भी नहीं भूल सकता कि इस आतंक के कंलक की वजह से मेरी बहन की शादी टूट गई.’


Support TwoCircles

ये बातें आज यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में यूपी की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच द्वारा आयोजित ‘सियासत की क़ैद में बेगुनाह’ सम्मेलन में ‘बेगुनाह दहशतगर्द’  किताब का विमोचन समारोह में कोलकाता से आए आफ़ताब ने 27 दिसंबर 2007 को कोलकाता से उठाए जाने की अपनी दास्तान सुनाते हुए कहा. 

इस सम्मेलन में ‘बेगुनाह दहशतगर्द’  किताब का विमोचन करते हुए आफ़ताब आलम अंसारी की मां आयशा बेगम ने कहा कि जब वह पहली बार लखनऊ अपने बेटे आफ़ताब की रिहाई के लिए आईं थीं उस मंज़र को आज भी सोचकर सिहर जाती हैं और उसे याद नहीं करना चाहती हैं. उस वक्त शुऐब साहब मिले और उनसे मैंने कहा कि मेरा बेटा बेगुनाह है उसे रिहा करवा दीजिए. शुऐब साहब ने मुक़दमा लेने में कोई ना-नुकुर नहीं की. उस दरम्यान बेटे से मिलने के लिए जेल के पास की चाय की दुकानों पर वक्त कटा और जब मैं वापस गई और मालूम चला कि बेटा रिहा होने वाला है और पुलिस के लोग कहने लगे कि वो उनके बेटे को घर छोड़ देंगे तो मैंने शुऐब भाई से बात की कि भाई आप उसे अपने पास रख लीजिएगा नहीं तो वे किसी दूसरे केस में न उसे फंसा दें.

इस पुस्तक के लेखक और रिहाई मंच नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के आरोपों से बरी अन्य नौजवानों के बारे में तथ्यों और दस्तावेज़ी आधार पर बहुत कुछ लिखे जाने की योजना है, क्योंकि इनकी कहानियां सिर्फ किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक पूरे समाज, राज्य मशीनरी से लेकर न्यायपालिका तक में व्याप्त फासीवादी मानसिकता को कटघरे में खड़ा करती हैं. आज़मगढ़ का होने के कारण जिसे आंतकवाद की नर्सरी के बतौर खुफिया विभाग और मीडिया का एक हिस्सा प्रचारित करता रहा है, मैंने इसे अपनी जिम्मेदारी समझा कि इस निर्मित धारणा को तोड़ा जाए जिसका परिणाम यह पुस्तक है.

उन्होंने कहा कि पुस्तक का नाम ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ इसलिए रखा कि राज्य ने इन पर दहशतगर्दी का जो ठप्पा लगाया वो उनके रिहा होने के बावजूद भी नहीं हटा और इसीलिए उनकी रिहाई के बाद जब उनको ज़मानतदारों की ज़रूरत होती है तो शुऐब साहब जैसे लोगों को अपनी पत्नी और साले को ज़मानतदार के बतौर खड़ा करना पड़ता है.

बताते चलें कि ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ नामक इस पुस्तक में आतंकवाद के आरोपों से बरी हुए 14 नौजवानों की कहानी है. बल्कि यूं कहिए 14 बेगुनाहों के उत्पीड़न-दमन का जीता जागता सबूत है कि किस तरह सियासत के वे शिकार बने.

इस सम्मेलन में रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मो. शुऐब ने कहा कि इन 10 सालों में आतंकवाद के नाम पर गढ़े गए हिंदुत्ववादी धारणा को तोड़ने और उसका काउंटर नैरेटिव निर्मित करने की हमारी कोशिश रही है. इसमें हम कितना सफल हुए हम नहीं जानते ये तय करना आवाम का काम है.

उन्होंने कहा कि हमने अवाम से जो वादे किए उनपर क़ायम रहे और आज भी इंसाफ़ के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन सरकार लगातार आवाम से वादा-खिलाफ़ी कर रही है. अखिलेश सरकार ने बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो नहीं निभाया, उल्टे जो लोग अदालतों से बरी हुए उनके खिलाफ़ अपील में जाकर उन्हें फिर जेल भेजने की साजिश रच रही है. रिहाई मंच इस साज़िश को एक बार फिर जनता के सहयोग से नाकाम करेगा.

मो. शुऐब ने कहा कि आज इस पुस्तक का विमोचन करने के लिए हमने आफ़ताब आलम अंसारी की मां आयशा बेगम को इसीलिए बुलाया है ताकि अपने बच्चों के इंसाफ़ के लिए लड़ने वाली मांओं का हम सम्मान करें और रोहित वेमुला जिनकी हत्या का भी कल एक साल होने जा रहा है उनकी मां और नजीब की संघर्षरत मां के साथ अपनी एकजुटता दर्शा सकें. इन्हीं मांओं का संघर्ष नए समाज और देश का निर्माण करेगा.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE