बंधुआ मजदूरी और देह व्यापार के दुश्मन अजीत सिंह

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी : अजीत सिंह बनारस में एक जाना पहचाना नाम हैं. बनारस की अंधी बस्तियों से लेकर बड़े-बड़े मकानों में अजीत सिंह का नाम किसी मसीहा की तरह लिया जाता है. ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि अजीत सिंह ने बनारस से जिस्मफ़रोशी के धंधे को उस रसातल में ले जाकर फेंका है, जहां से उसे वापिस आने में बेहद मशक्क़त करनी पड़ेगी. और इसी के साथ अजीत सिंह बेहद मजबूती के साथ दावा करते हैं कि बनारस से बाल देह व्यवसाय लगभग ख़त्म हो चुका है.
अजीत सिंह

साल 1988, 17 साल के अजीत सिंह बनारस में किसी शादी में शरीक होने गए थे. उस शादी में अजीत सिंह ने एक पेशेवर लड़की को नाचते हुए देखा, ये देखकर अजीत सिंह बेहद परेशान हुए. तभी उन्होंने निर्णय किया कि इस समाज के लिए उन्हें कुछ करना है. अजीत सिंह बताते हैं, ‘लोग जैसे उस लड़की की ओर देख रहे थे, और जैसा उस लड़की के साथ उनका बर्ताव था. मुझे ये देखकर बहुत बुरा लगा. तभी मैंने सोच लिया कि इनके लिए आगे कुछ करना है.’

लेकिन यह कोई ऐसा निर्णय नहीं था, जिस पर अजीत सिंह बहुत दिनों बाद काम शुरू करते. डांस ख़त्म होने के ठीक बाद अजीत सिंह उस लड़की के पास गए और उसके सामने महज़ 17 साल के अजीत सिंह ने प्रस्ताव रखा कि वे उसके बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, उन्हें बेहतर ज़िन्दगी देना चाहते हैं. 17 साल के बच्चे के लिए सुनने में ही यह एक बड़ा कदम लगता है लेकिन अजीत सिंह ने उसी दौरान बदनाम बस्ती के तीन बच्चों को गोद लिया और उन्हें अपने साथ घर ले आए. उन्हें घर पर रखा और उन्हें साथ पढ़ाने लगे.


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गुड़िया परिवार

ऐसा नहीं है कि अजीत सिंह के इस कदम का विरोध नहीं हुआ. 17 साल का लड़का इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने की ज़िद करे तो घर में लोग सोचते हैं और परेशान होते हैं. अजीत सिंह के घर में भी यही हुआ. अजीत कहते हैं, ‘ज़ाहिर है कि घर और आसपास इसका बहुत विरोध हुआ था, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे ये करना है. पहले तो लोग कहते थे कि बच्चों को क्यों लेकर आए, फिर कहने लगे कि लेकर आए तो मुसलमान की बच्ची को क्यों लेकर आए?’

अजीत ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए बनारस के रेड लाइट एरिया में जाना शुरू कर दिया. वहां बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. अजीत सिंह की योजना थी कि शिक्षा और जानकारी बांटने से मसले हल हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अजीत सिंह ने देखा कि देह व्यापार का क्षेत्र ज्यादा संगठित और अपराध की दुनिया से ज्यादा गहराई से जुड़ा हुआ है. बकौल अजीत, उस पूरे समुदाय की समस्याओं को शिक्षा और एचआइवी या एड्स के बारे में जानकारी देकर हल नहीं किया जा सकता था. उसके लिए और ज्यादा सख्ती भरे कदम दरकार थे. ठीक इसी मोड़ पर 1993 में अजीत सिंह ने ‘गुड़िया’ संस्था को पंजीकृत कराया.

गुड़िया के प्रशिक्षण केंद्र में काम सीखती छुड़ाई गयी महिलाएं

अजीत सिंह बताते हैं, ‘गुड़िया के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर हमने बहुत कुछ किया. लेकिन कहें तो हमारी संस्था का प्रमुख उद्देश्य बाल वेश्यावृत्ति और वेश्यावृत्ति के नाम पर फ़ैल रही दास प्रथा के खात्मे से लेकर उसके पूरे आपराधिक तन्त्र को नुकसान पहुंचाना है.’ हालांकि अजीत सिंह कहते हैं कि उनका मूल काम एनजीओ के बाहर का है.

बहरहाल, संस्था के निर्माण के बाद अपने कार्यकर्ताओं और प्रशासन की कुछ सहायता के साथ अजीत सिंह ने बनारस के बदनाम मोहल्ले शिवदासपुर में छापेमारी शुरू की. पहले दिन में ही अजीत सिंह ने लगभग 15 बच्चियों को छुड़ाया. अपने इस 24 साल से ज्यादा के सफ़र में गुड़िया के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर अजीत सिंह ने लगभग 2000 से भी ज्यादा बच्चों को बाल देह व्यापार के चंगुल से मुक्त कराया है. वे अब भी इस कार्य में बेहद शिद्दत से लगे हुए हैं.

बेहद छोटी-सी सोच से शुरू हुआ अजीत सिंह का सफ़र अब सिर्फ बच्चियों को बचाने तक सीमित नहीं रह गया है. उन्हें गांवों या दूसरे इलाकों से निर्यात करने वाले सेक्स के व्यापारियों की धरपकड़ और उनके खिलाफ मुक़दमे कर उन्हें जेल भेजना भी अजीत सिंह और उनकी संस्था की पहचान है. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में गाहे-बगाहे फंसे हुए लोगों को कानूनी सुविधा मुहैया कराना, बरामद किए गए बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना, देह व्यापार का दर्द झेल रहे परिवारों के पुनर्वास के बारे में विचार करना अजीत सिंह के बड़े संकल्पों में से एक है.

अपने अभियान को थोड़ा और बड़ा करते हुए अजीत सिंह और उनकी संस्था ने बहुत सारे गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया है. उन्होंने अब तक 800 बच्चों को पढ़ाया है, और अभी भी उनके केंद्र में 350 से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से कुछ बदनाम बस्तियों के हैं और तो कुछ ऐसी जगहों से ताल्लुक रखते हैं, जहां शिक्षा धन के अभाव में मुमकिन नहीं है.

गुड़िया परिवार

छापेमारी में बरामद किए गए बच्चों के बारे में अजीत सिंह बताते हैं, ‘हम हरेक बच्चे का नाम-पता अपने यहां दर्ज रखते हैं. बच्चों के मिलने के बाद हम पहले उन्हें अपने पास रखते हैं, फिर कुछ दिनों बाद उन्हें उनके घरों या सरकारी बसेरों में भेज देते हैं. बच्चों के बारे में इस बात पर नज़र बनाए रखते हैं कि उन बच्चों को वापिस से देह व्यापार में न धकेला जाए. क्योंकि इसका ख़तरा भी बना रहता है.’

अपने काम में अजीत सिंह मारपीट से लेकर जान लेने की धमकियां तक झेल चुके हैं. अजीत कहते हैं, ‘जब आप संगठित अपराध के खिलाफ़ खड़े होते हैं, तो ऐसा होना आम बात है. हम और हमारे लोग यही सब झेल रहे हैं, लेकिन यह तय है कि पीछे नहीं हटना है.’ अजीत सिंह द्वारा किए गए मुकदमों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है, लेकिन अजीत सिंह पर लगातार हमले होते रहते हैं.

अजीत सिंह द्वारा ईंट भट्ठे से बचाकर लाए गए बंधुआ मजदूर

अजीत सिंह को मिले पुरस्कारों और उनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त इतनी बड़ी है कि सभी का ज़िक्र कर पाना मुमकिन नहीं है. फिलहाल देह का व्यापार संचालित करने वालों के खिलाफ़ 1800 के आसपास मुक़दमे अजीत सिंह और उनकी संस्था ने दर्ज किए हैं. इसके साथ वे लगभग हर मामले में सुनिश्चित करते हैं कि उनके द्वारा किए गए मुक़दमों में किसी अपराधी को जमानत न मिले, इस मुहीम में भी उन्हें 584 मुकदमों में सफलता मिल चुकी है. अपने गवाहों और सूत्रों का हर कीमत पर बचाव अजीत सिंह और उनकी संस्था करती आई है.

हर साल कई विदेशी यहां इन बच्चों के बीच काम करने पहुंचते हैं. उनसे जुड़ते हैं, काम सीखते और अपने तीन-त्यौहार इन बच्चों के बीच मनाते हैं. संस्था से जुड़े स्वयंसेवक कई तरीकों से – जिनमें जनजागरूकता से लेकर खुफिया कैमरों से रिकॉर्डिंग तक जैसे खतरे शामिल हैं – बनारस, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ चंदौली, जौनपुर, मिर्ज़ापुर और महाराजगंज के इलाकों में देह व्यापार को दफ्न करने को आमादा हैं. संस्था अब बीते कुछ सालों से बंधुआ मजदूरी के खिलाफ भी मजबूती से काम कर रही है. अजीत सिंह और उनके साथियों ने उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों से बंधुआ मजदूरों की मुक्ति का अभियान चलाया है और काफी हद तक वे अपनी इस मुहीम में सफल भी हुए हैं.

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