Home Lead Story ‘नेकी की दीवार’ पर नफ़रत का वार!

‘नेकी की दीवार’ पर नफ़रत का वार!

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ यानी नेकी की दीवार… दिल्ली के जामिया नगर में एक मासूम की इस पहल को कुछ स्थानीय लोगों ने ही कामयाब नहीं होने दिया. दसवीं क्लास में पढ़ने वाला सोलह साल का अली हसनैन मुर्तुज़ा नाम के एक बच्चे ने बड़े जतन से ये दीवार बनाने की कोशिश की थी. मक़सद था कि दुनिया भर में मशहूर ‘नेकी की दीवार’ को लोगों के दिलों में जगह देना, मगर मुर्तुज़ा के पड़ोसी को ये बात समझ में नहीं आई, इसलिए इसके मासूम कोशिश को ही ध्वस्त कर दिया. लेकिन मुर्तुज़ा के हौसले अभी भी बुलंद हैं. वो अभी हारा नहीं है, बल्कि पूरी शिद्दत के साथ फिर से इस मिशन को पूरा करने की कोशिश में जुट गया है.

Wall of Kindness

बताते चलें कि जामिया नगर के नूर नगर इलाक़े में मुर्तुज़ा ने अपने चार-पांच दोस्तों की मदद से ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ की शुरूआत की थी. स्थानीय लोगों ने इसकी इस पहल की न सिर्फ़ जमकर तारीफ़ की बल्कि पूरा साथ भी दिया.

मुर्तुज़ा का कहना है कि -‘यहां के स्थानीय लोगों का मुझे पूरा सपोर्ट मिला. मुझे बहुत खुशी मिलती थी जब मैं ये देखता था कि कोई गरीब इस कंपा देने वाली ठंड में आकर अपने लिए कपड़े ट्राई करके ले जाता था. लेकिन जब एक दिन स्कूल से लौटा तो देखा कि सारे कपड़े वा सामान सड़क पर बिखरे पड़े हैं और दीवार में लगे हैंगर को तोड़ दिया गया है. पता करने पर मालूम चला कि ये काम मेरे ही एक पड़ोसी ने की है.’

फिर वो आगे यह भी कहता है कि -‘ये तो मुझे पता था कि जहां भी कुछ अच्छा काम होता है, वहां कोई न कोई विरोध करने ज़रूर आता है. मतलब अब हमें यक़ीन हो गया कि हमने कुछ अच्छा ज़रूर किया था.’

मुर्तुज़ा की मां इस घटना से काफी दुखी हैं. वो TwoCircles.net के साथ बातचीत में कहती हैं -‘मेरे बच्चे ने एक मासूम कोशिश की ताकि अच्छाई को बढ़ावा दिया जा सके, लेकिन समाज के दुश्मनों को उसकी ये अच्छाई पसंद नहीं आई. किस हैवानियत के साथ लोगों ने उसके ज़रिए लगाए हैंगर को नोच दिया है.’

पड़ोसी अली (जो खुद को आईबी का अधिकारी बता रहे थे) से भी जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि -‘किसी ने एमसीडी से इसकी शिकायत की थी, जिसके बाद एमसीडी व पुलिस वाले मेरे घर आए थे. उसके बाद इसे हटा दिया गया.’

उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि इससे गली के लोगों को आने जाने में परेशानी हो रही थी.

क्या परेशानी? ये पूछने पर उनका कहना था कि मीडिया को किसने ऑथराईज्ड किया है कि वो कहीं भी किसी के दीवार को क़ब्ज़ा करे.

लेकिन मुर्तुज़ा का इनके जवाब में कहना है कि एमसीडी से शिकायत अली साहब के घर से ही की गई थी. बक़ौल मुर्तुज़ा ‘एमसीडी के एक अधिकारी ने बताया कि किसी महिला ने इसकी शिकायत की थी, लेकिन उस अधिकारी ने यह भी बोला कि चाहे मेरी नौकरी चली जाए, मैं इस दीवार को नहीं हटाउंगा. ये एक अच्छी पहल है.’

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बताते चलें कि ये दीवार एक सरकारी स्कूल की है. इस संबंध में इस स्कूल के प्रिसिंपल से भी हमने मिलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी. हालांकि स्कूल के टीचरों का कहना था कि इससे किसी को क्या समस्या हो सकती है.

दिल्ली के गुड समैरिटन स्कूल में पढ़ने वाले अली हसनैन मुर्तुज़ा ईरान में पैदा हुए हैं. हालांकि उनके पिता मौलाना क़मर हसनैन यूपी के ग्रेटर नोएडा के छलौस गांव के रहने वाले हैं. वो उच्च शिक्षा के लिए ईरान गए और वहीं बस गए. लेकिन 2010 में पूरा परिवार वापस दिल्ली आ गया. अब उन्होंने यहां लड़कियों के पढ़ने के लिए ‘जमीअतुल फ़ातिमा’ नाम का मदरसा खोला है. इस मदरसे में इस समय 45 बच्चियां रहकर पढ़ रही हैं.

 

यहां एक मस्जिद में भी है ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’

जामिया नगर के बटला हाउस इलाक़े में एक मस्जिद के अंदर भी ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ खड़ी है. बटला हाउस के जोगा बाई इलाक़े में यमुना किनारे स्थित ‘मुस्तफ़ा मस्जिद’ में भी इस तरह की पहल की गई है.

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इस मस्जिद के इमाम के मुताबिक़ ये ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ पिछले तीन महीनों से अधिक समय से है. इस ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ की ख़ास बात ये है कि लोग दोपहर के ज़ुहर की नमाज़ व रात में एशा की नमाज़ में कभी-कभी गरम खाना भी लाते हैं. इस दीवार के पास ही प्लेटें भी रखीं हुई हैं. जिन्हें ज़रूरत होती है कि वो खाना निकाल कर खा लेते हैं. अगर नहीं कोई खाता तो उसे पास के किसी के घर में खाने को भेज दिया जाता है.

इस मस्जिद के इमाम का कहना है कि -‘हमारा धर्म दूसरों की मदद करना सिखाता है. बस हमारी कोशिश है कि हर आदमी एक दूसरे की मदद करना सीखें.’

वो आगे बताते हैं कि -‘मैं लोगों को बार-बार इस हदीस का भी हवाला देता हूं कि जो अपने लिए पसंद करो वही दूसरों के लिए भी पसंद करो. जो खाना तुम खुद नहीं खा सकते उसे दूसरे को कभी मत खिलाओ.’

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जानकार बताते हैं कि ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ की शुरूआत ईरान के लोगों के ज़रिए की गई थी. मदद के तौर पर एक शख्स ने एक दीवार पर हुक लगाकर गर्म कपड़े टांग दिए और दीवार पर लिख दिया, अगर आपको इन कपड़ों की ज़रूरत नहीं है तो छोड़ दें और ज़रूरत है तो इन्हें ले जाएं. बस यहीं से इसकी शुरूआत हो गई.  इसके बाद ईरान के कई क़स्बों और शहरों में इसकी शुरुआत हो गयी. कुछ ही समय के बाद इन दीवारों पर कपड़ों के साथ-साथ कई और सामान भी रखे जाने लगे. अब इन दीवारों को बहुत सलीक़े से रंग दिया जाता है और सजाया भी जाता है. इस तरह से देखते-देखते ये कंसेप्ट अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. हमारा मुल्क भारत भी इससे अछूता नहीं है.

भारत के संदर्भ में अगर बात कही जाए तो नेकी की ये दीवार इस दौर में एक बेहद ही सुखद हैरानी की तरह है, जब चारों तरफ़ नफ़रत की फ़सीलें खड़ी की जा रही हैं. जब लोगों को कभी जाति कभी मज़हब के नाम पर एक दूसरे के खून का प्यासा होने की तालीम दी जा रही है. ऐसे में नेकी की दीवारों के फलने-फुलने का पूरा सामान मुहैय्या कराया जाए, ये हमारी गुज़ारिश भी है और दुआ भी.