TwoCircles.net News Desk
लखनऊ : सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने अमरनाथ यात्रा पर हुए आतंकी हमले पर उठ रहे सवालों पर सरकार से जवाब मांगते हुए इसे प्रथम दृष्टया संदिग्ध क़रार दिया है.
मंच ने प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक माहौल बनाने और अक्षरधाम मंदिर हमले जैसे संदिग्ध आतंकी घटनाओं में भूमिका का पुराना रिकार्ड देखते हुए इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की है.
मंच ने इसे सन 2000 में वाजपेयी सरकार में हुए चट्टीसिंहपुरा जैसा फ़र्ज़ी आतंकी हमला बताया है, जिसमें 34 सिक्खों की हत्या कर दी गई थी और जिसे तत्कालीन अमेरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा करवाया गया हमला बताया था.
मंच ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को तत्काल हटाने और इस पूरे घटनाक्रम में उनकी संदिग्ध भूमिका की भी जांच की मांग की है.
रिहाई मंच नेता और अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए कथित आतंकी हमले पर आधारित पुस्तक ‘आॅपरेशन अक्षरधाम’ के लेखकों राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि 2002 में स्वामीनारायण मंदिर में बड़े पैमाने पर आस्था रखने वाले पटेल समुदाय के ध्रुवीकरण के लिए जिस तरह से अक्षरधाम मंदिर पर हमले का षड़यंत्र कर बेगुनाहों को मारा गया, ठीक उसी तरह आगामी गुजरात चुनावों में पटेल समुदाय व जीएसटी का विरोध करने वाले व्यवसायियों को साधने के लिए अमरनाथ में बेगुनाहों का खून बहाने का षड़यंत्र एक राजनीति के तहत हुआ है.
आगे उन्होंने कहा कि, यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि मारे गए और घायल लोगों में अधिकतर वलसाड और सूरत के हैं, जहां पिछले 10 दिनों से व्यापारियों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ जीएसटी के विरूद्ध अपनी दुकानें बंद रखी हैं और चार दिन पहले ही डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ रैली निकाली थी. यही वो इलाकें हैं जो मोदी और गुजरात की भाजपा सरकार से नाराज़ चल रहे पटेल समुदाय के आंदोलन का केंद्र है, से भी संदेह उत्पन्न होता है. ऐसे में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले को लेकर विवादित एनएसए अजित डोभाल जिन पर कश्मीरी जनता हज़रत बल से लेकर तमाम फ़र्ज़ी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का आरोप लगाती रही है, की भूमिका की जांच होना ज़रूरी हो गया है.
‘आॅपरेशन अक्षरधाम’ के लेखकों ने कहा कि गुजरात में मुसलमानों के जनसंहार के बाद मोदी से नाराज़ चल रहे पटेल समुदाय को बाग़ी पूर्व मुख्यमंत्री केशू भाई पटेल से अलग करने के लिए ही स्वामी नारायण सम्प्रदाय जिससे पटेल समुदाय का विशेष लगाव रहा है, के मंदिर अक्षरधाम पर आतंकी हमले का षड़यंत्र हुआ था. जिसके बाद पटेल समुदाय ने हिंदुत्व के नाम पर मोदी को वोट दिया था. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी और भाजपा से नाराज़ पटेल वोट बैंक को साधने के लिए मोदी सरकार ने ये हत्याकांड करवाया हो. इसलिए इस पूरे मामले की सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश की निगरानी में जांच करानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि घटना पर उठ रहे सवाल जैसे उच्च स्तरीय सुरक्षा के बीच होने वाली इस यात्रा में बिना रस्ट्रिेशन के गुजरात की बस का तय समय शाम सात बजे के बाद भी चलना और इस पूरे सफ़र में उसका कहीं पर भी चेक न किया जाना और बिना रस्ट्रिेशन के भी बस के आगे-आगे सुरक्षा के नाम पर एक पुलिस वैन का चलना और कथित आतंकी हमले में किसी भी सुरक्षाकर्मियों का न मारा जाना या न घायल होना और सिर्फ़ दर्शनार्थियों का मारा जाना, साबित करता है कि उन्हें किसी साज़िश के तहत मौत के मुंह में धकेला गया.
मंच नेताओं ने यह भी कहा है कि मीडिया रिपोर्टस में पुलिस के हवाले से इस बात की पुष्टि होना कि उस बस के वास्तविक मालिक का नाम दस्तावेज़ी आधार पर न पता चल पाना भी इस आशंका को पुष्ट करता है कि इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव से गुज़रने वाले गुजरात से इन यात्रियों को इस बस में मौत के मुंह में धकेलने के लिए ही तो नहीं लाया गया था? अमरनाथ यात्रियों पर हमेशा भाजपा सरकार में ही हमले होना भी इस संदेह को पुष्ट करता है कि यह घटनाएं कहीं राजनीतिक षड़यंत्र का हिस्सा तो नहीं है.
लेखकों ने कहा कि यह कथित आतंकी घटना अननंतनाग के ही चट्टीसिंहपुरा जनसंहार से काफी मिलती-जुलती है, जहां 29 मार्च 2000 को अज्ञात हत्यारों ने 34 सिक्खों को मौत के घाट उतार दिया था. जिसकी निंदा अलगाववादी समूहों समेत हिजबुल मुजाहिदीन ने ही नहीं की थी बल्कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जिनके भारत दौरे से एक रात पहले यह हत्याकांड हुआ था, उन्होंने भी इसे भारतीय एजेंसियों का काम बताया था.
उन्होंने कहा कि अमरनाथ यात्रियों की हत्या पर कश्मीरी चरमपंथी संगठनों का इसे कराने से इनकार करना कोई सामान्य घटना नहीं है, क्योंकि कश्मीर जैसे हिंसक संघर्ष से गुज़र रहे क्षेत्र जहां दर्जनों चरमपंथी संगठन सक्रीय हों, वहां किसी भी हमले की तत्काल ज़िम्मेदारी लेना उन संगठनों को अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए सबसे अहम होता है. ऐसे में इस घटना से चरमपंथी संगठनों का इनकार करना और इसके लिए भारतीय सुरक्षा और खुफ़िया एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाना इस पूरे मामले की जांच की ज़रूरत के लिए आधार बनाता है.
मंच नेताओं ने कहा कि घटना को अंजाम देने से इनकार करने वाला एक चरमपंथी संगठन है, सिर्फ़ इस आधार पर उसके पक्ष को खारिज कर देना न्याय के हित में नहीं होगा और ना ही यह भारतीय अवाम के हित में होगा जो इस निमर्म हत्याकांड की सच्चाई जानना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि इस दावे को जांच के केन्द्र में रखना इसलिए भी ज़रूरी है कि साम्प्रदायिक शक्तियां इसे हिंदू श्रद्धालुओं पर मुसलमानों द्वारा हमले के बतौर प्रचारित कर देश के दूसरे हिस्सों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुओं में हिंसक जनमत तैयार कर रहे हैं.
रिहाई मंच ने कहा कि पिछले दिनों पत्थरबाज़ी और पैलटगन के सवाल पर जो सक्रियता माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिखलाते हुए पत्थरबाज़ी रोकने को कहा था, ऐसे में जब कश्मीर के अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों ने अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली तो इसकी न्यायिक जांच होना आवश्यक हो जाता है. यह इसलिए भी की इस घटना से कश्मीर की जो छवि बनाई गई, उससे व्यापक स्तर पर भारतीय जनमानस में उसके ख़िलाफ़ अलगाव की भावना बढ़ेगी जिसे निष्पक्ष जांच द्वारा सामने लाकर ही रोका जा सकता है.