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बिहार के अल्पसंख्यक मंत्री खुर्शीद उर्फ फ़िरोज़ अहमद के शपथ-पत्र में छिपा है उनका सच

TwoCircles.net Staff Reporter

पटना : बदलते मौसम के साथ बिहार में सरकार बदल चुकी है. महागठबंधन की जगह अब एनडीए गठबंधन है. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की जगह अब सुशील कुमार मोदी हैं. साथ ही इस नई सरकार का मंत्रिमंडल भी तैयार हो चुका है. सभी 26 मंत्रियों ने शपथ भी ले ली है.

लेकिन इन सब में सिर्फ़ एक मंत्री पिछले तीन दिनों से ज़बरदस्त चर्चे में हैं. पहले ‘जय श्री राम’ का नारा लगाकर खुद चर्चे में रहे और अब इमारत शरिया के एक मुफ़्ती ने तथाकथित रूप से ‘फ़तवा’ जारी कर उन्हें चर्चे में ला दिया है.

हम यहां बात कर रहे हैं जदयू के सिकटा विधानसभा क्षेत्र के विधायक ख़ुर्शीद उर्फ़ फ़िरोज़ अहमद की, जो महागठबंधन की सरकार में गन्ना विभाग के मंत्री थे और अब एनडीए गठबंधन में गन्ना मंत्री के साथ-साथ अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के भी मंत्री बन चुके हैं. बताते चलें कि सिर्फ़ दसवीं पास खुर्शीद नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में इकलौते मुस्लिम चेहरा हैं.

दरअसल, बिहार के नए अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद उर्फ़ फ़िरोज़ अहमद की सच्चाई उनके चुनावी शपथ-पत्र में छिपी हुई है. इन शपथ-पत्रों को किसी और ने नहीं, बल्कि खुद उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ते समय चुनाव आयोग में दाखिल किया है.

बताते चलें कि खुर्शीद सबसे पहले जनवरी 2005 में बतौर निदर्लीय उम्मीदवार चुनाव लड़े और चुनाव हार गए थे. अक्टूबर 2005 में कांग्रेस के टिकट खुर्शीद चुनाव जीत कर पहली बार विधायक बने. लेकिन 2010 में इन्होंने जदयू का दामन थाम लिया लेकिन चुनाव में जीत नसीब नहीं हुई. 2015 में भाजपा के दिलीप वर्मा को मात्र 2835 वोटों से हराकर पहली बार मंत्री पद के हक़दार बनें.

खुर्शीद के नाम बदलने की कहानी भी दिलचस्प है. उनका चुनावी शपथ-पत्र बताता है कि जनवरी 2005 में उनका नाम ‘खुर्शीद आलम उर्फ़ फ़िरोज़ आलम’ था. अक्टूबर 2005 में वो सिर्फ़ खुर्शीद रह गए, आलम गायब हो चुका था लेकिन फ़िरोज़ आलम बरक़रार रहा. मगर इस बीच 2010 में वो फ़िरोज़ आलम से फ़िरोज़ अहमद हो चुके हैं.

इस बीच खुर्शीद की सम्पत्ति में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है. साल 2010 में इनके पास सिर्फ़ 59.82  लाख की कुल सम्पत्ति थी, साल 2015 में ये बढ़कर 1.74 करोड़ हो गई. मंत्री बनने के बाद साल 2015 में उनके पास 1.66 करोड़ की सम्पत्ति रही.

इनके शपथ-पत्रों के मुताबिक़ इनकी उम्र में असामान्य बढ़ोत्तरी हुई है. वे पांच साल में 6 साल बड़े हो गए हैं. उनके द्वारा चुनाव आयोग में दाखिल चुनावी शपथ-पत्र बताते हैं कि वो साल 2005 में 43 साल के थे, लेकिन साल 2010 में वो 47 साल के हो गए. यानी पांच साल में उनकी उम्र सिर्फ़ चार साल बढ़ी. लेकिन 2015 में उनकी उम्र 6 साल बढ़कर 53 साल हो गई.

उनके जो आपराधिक मामले हैं वो भी उनके चरित्र की बानगी पेश करते हैं. जनवरी 2005 के चुनावी शपथ-पत्र के मुताबिक़ उन पर 6 आपराधिक मामले दर्ज हुए थे. लेकिन अक्टूबर 2005 में घटकर 5 रह गए. 2010 में इसमें बढ़ोत्तरी हुई. अब ये मामले फिर से 6 हो गए.

इन मामलों में इन पर काफी गंभीर आरोप लगे हैं. इन पर 147, 302, 353, 364, 379, 406, 420, 448, 467, 468, 504 और 506 जैसी आईपीसी की धारा लगी हुई हैं. इनका चुनावी हलफ़नामा बताता है कि मंत्री जी पटना कोतवाली पुलिस स्टेशन के वाद संख्या 178/2006 मामले में 13 अप्रैल 2010 को पटना की फर्स्ट क्लास ज्यूडिशियल मस्जिट्रेट रचना श्रीवास्तव के फैसले में इन्हें दोषी क़रार दिया गया है. इस मामले में इन पर 448, 353, 504, 506 जैसी धाराएं हैं. यह मामले में अपील के बाद पिछले सात साल से पटना एडीजे कोर्ट में पेंडिंग पड़ा हुआ है. यही नहीं, दो मामलों में इन पर चार्ज फ्रेम किया जा चुका है तो वहीं दो मामले अदालत के संज्ञान में हैं.

कुल मिलाकर अगर खुर्शीद उर्फ़ फ़िरोज़ अहमद को समझना हो तो उनके द्वारा दाखिल किया गया चुनावी हलफ़नामा ही चलती-फिरती पाठशाला है.