सिराज माही, TwoCircles.net
गो-मांस या बीफ़ को लेकर राजनीति अपने उफान पर है. कई राजनीतिक बयानों के बाद आज ताज़ा बयान अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू का आया है. उन्होंने साफ़ तौर पर कहा है कि वह खुद भी बीफ़ खाते हैं और ऐसा करने में कुछ भी ग़लत नहीं है. खांडू भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं.
सिराज माही ने गो-मांस खाने के बारे में कई लोगों से बात की तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आएं. गो-मांस खाने वाले अधिकतर मुस्लिम उन राज्यों से हैं, जहां की सरकार उन्हें गो-मांस खाने की इजाज़त देती है.
मानवाधिकार संगठन एसीएचआरओ के अध्यक्ष अन्सार इंदौरी कहते हैं, जहां तक मुझे जानकारी है उत्तर भारत का मुसलमान गो-मांस नहीं खाता. अगर वह कभी गाय ख़रीद कर कहीं से ले जाता है, तो महज़ उसे पालने के लिए.
उनका कहना है कि ऐसे ही अगर गाय के नाम पर मुसलमानों की हत्याएं होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब गांवों का मुसलमान गाय पालना छोड़ देगा. अन्सार राजस्थान से ताल्लुक़ रखते हैं.
मोहम्मद नजमुज़्ज़मा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं. फिलहाल वो दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमने अब तक न कभी गो-मांस देखा है और ना ही खाया है.
वो आगे कहते हैं कि मैंने गो-हत्या के नाम पर कई जगह दंगों की ख़बरें ज़रूर सुनी हैं. वह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के लिए गो-मांस खाना वैसे भी जायज़ नहीं है, क्योंकि यहां की सरकार इसकी इजाज़त नहीं देती.
हरियाणा के मेवात ज़िले से ताल्लुक़ रखने वाले वारिस मेव का कहना है कि यहां सरकार ने गो-मांस खाने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है, इसलिए हम गो-मांस नहीं खाते.
वो आगे बताते हैं कि हरियाणा में अब सरकार का महत्व भी नहीं रह गया है. यहां के लोग ही सरकार हो गए हैं. वही सबसे पहले अपना फ़ैसला सुना देते हैं.
मोहम्मद आलम राजस्थान के कोटा जिसे से ताल्लुक़ रखते हैं. यह वही कोटा ज़िला है, जो आईआईटी की कोचिंग के लिए देशभर में मशहूर है. आलम का कहना है कि 40 साल की अपनी उम्र में हमें अब तक कभी पता ही नहीं चला कि गो-मांस किस दुकान पर मिलता है. इसलिए हमने कभी गो-मांस नहीं खाया है.
आलम का कहना है कि हमने ऊंट का गोश्त ज़रूर खाया है, क्योंकि वह यहां आसानी से मिल जाता है.
तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई में रहने वाले सैय्यद अनवर का कहना है कि मैं बचपन से गो-मांस खाता आ रहा हूं. तमिलनाडू के हमारे सभी हिंदू और मुस्लिम दोस्त गोमांस खाते हैं. हमें राज्य सरकार गो-मांस खाने की इजाज़त देती है.
वो आगे बताते हैं कि तमिलनाडू में एक बहुत ही स्वादिष्ट पकवान है, जिसे लोग ‘चिल्ली बीफ़’ के नाम से जानते हैं. इस डिश को हमारे एक हिंदू दोस्त ने खाने के लिए प्रेरित किया. तब से चिल्ली बीफ़ मेरा पसंदीदा पकवान है.
वो कहते हैं कि, उत्तर भारत की अगर बात करें तो पहली बार हमने भैंस का गोश्त खाया था. हमें यह बड़ा अजीब लगा कि यहां लोग भैंस का गोश्त खाते हैं.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले से ताल्लुक़ रखने वाले नाबिद हुसैन बताते हैं कि दक्षिण भारत में अक्सर मुसलमान गो-मांस खाते हैं.
उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी साफ़ तौर पर कहती हैं कि खाने के मामले में लोगों को पूरी आज़ादी होनी चाहिए. बता दें कि महाराष्ट्र में गो-मांस पर प्रतिबन्ध की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निंदा की थी.
मोहम्मद जाबिर जो दक्षिण भारत के केरल राज्य से ताल्लुक़ रखते हैं. अभी वह दिल्ली विश्वविद्यालय से शोसल वर्क में पीएचडी कर रहे हैं. उनका अलग मत है.
उनका कहना है कि हम केरलवासी चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान गाय को माता की तरह नहीं पूजते. हममें से अधिकतर लोग गो-मांस खाते हैं. हमें हमारी सरकार गो-मांस खाने की इजाज़त देती है. हालांकि केरल के पकवान में मछली बहुत खास है.
उनका कहना है कि कुछ उत्तर भारत के लोगों के पूजा के चलते हम गो-मांस नहीं छोड़ सकते.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर के शिलांग ज़िला से ताल्लुक़ रखने वाले मोहम्मद आरिफ़ बताते हैं कि यहां हम लोग बिना किसी रोक-टोक के गो-मांस का सेवन करते हैं.
वो आगे कहते हैं कि, हमें सुनने में बहुत अजीब लग रहा है कि उत्तर भारत में लोग सिर्फ़ इसलिए लोगों को मार रहे हैं कि वहां लोग गाय को पालने के लिए बाज़ार खरीद कर ले जाते हैं.
हालांकि ऐसे लोगों से भी हमारी बात हुई है, जिन्होंने गो-मांस खाया है. नाम न बताने की शर्त पर कुछ लोगों का कहना है कि कांग्रेस सरकार में गो-मांस पर प्रतिबन्ध के बावजूद हमें बैल का गोश्त मिल जाता था. लेकिन जबसे केन्द्र में भाजपा सरकार आई है इस पर राजनीति इतनी बढ़ गई है कि खाने का अब दिल ही नहीं करता.
बताते चलें कि पिछले तीन सालों में कथित ‘गो-हत्या’ के नाम पर कई मुसलमानों की पीट-पीट हत्या कर दिए जाने की खबरें आ चुकी हैं. हाल ही में केन्द्र सरकार ने मवेशियों की ख़रीद बिक्री पर रोक लगा दी है. सरकार के इस फ़ैसले की चारों तरफ़ आलोचना हो रही है.