अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
जामिया मिल्लिया इस्लामिया भारतीय मुसलमानों के लिए सिर्फ़ एक इदारे का नाम नहीं है, बल्कि ये यूनिवर्सिटी जंग–ए–आज़ादी के सालार मौलाना मोहम्मद अली जौहर, शौकत अली, मौलाना आज़ाद, हकीम अजमल खान और ज़ाकिर हुसैन जैसे रहनुमाओं के ख्वाबों की ताबीर है. जिसका मक़सद इस्लामी शनाख्त के साथ मुसलमानों की तालीम व तरबीयत है.
सच पूछे तो जामिया मिल्लिया इस्लामिया सिर्फ़ एक शैक्षिक संस्थान ही नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक भी है. यह उन सरफ़िरों का दयार है, जिनकी मेहनत ने अविभाजित भारत को गरमाहट और ऊर्जा प्रदान की और अपने खून से सींच कर जामिया की पथरीली ज़मीन को हमवार किया. जामिया के दरो–दीवार आज भी उनकी यादों को संजोए हुए हैं और उज्जवल भविष्य के लिए खेमाज़न होने वाले उन दीवानों को जिन्होंने अपने मुक़द्दर को जामिया के लिए समर्पित कर दिया, ढूंढ रहे हैं. भाईचारा, मुहब्बत, इंसानियत दोस्ती के उन मतवालों के सामने देश की एकता एवं विकास सर्वोपरि था, ताकि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक के साथ–साथ राजनीतिक स्तर पर समाज को जागरूक किया जा सके.
लेकिन सद अफ़सोस जो ज़मीन हमारे अज़ीम रहनुमाओं के क़दमों से मुअत्तर है, उसपर आज एक ऐसे शख्स के क़दम पड़े जो आतंकी हमलों का आरोपी है. इस पर सितम ज़रीफ़ी ये है कि वो शख्स मुसलमानों से उन्हें अपने अक़दार तर्क करके घरों में तुलसी का पौधा लगाने की बात कहता है. ये कहने वाला कोई और नहीं, जामिया के संस्थापकों में से एक गांधी की हत्या करने वाली तंज़ीम आरएसएस से जुडे संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का नेता इंद्रेश कुमार है.
इसी इंद्रेश कुमार के आमद के कारण जामिया आज हंगामों के नाम रहा. वजह आरएसएस द्वारा संचालित राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का जामिया में इफ़्तार पार्टी का आयोजन था. जैसे ही इस इफ़्तार पार्टी की ख़बर जामिया के छात्रों को मिली, सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक इसका विरोध शरू हो गया.
आज भी शाम 5 बजते ही छात्र जामिया कैम्पस में जमा होने लगे. उससे पहले उनसे भी अधिक संख्या में दिल्ली पुलिस के जवान पहुंच चुके थे. जामिया की सड़कों पर बैरिकेटिंग की जा चुकी है. छात्रों ने जैसे ही ‘एमआरएम गो बैक’, ‘इंद्रेश कुमार वापस जाओ… बम धमाकों के आरोपी वापस जाओ…’ के नारे लगाने शुरू किए, वैसे ही पुलिस ने इस विरोध को दबाने की कोशिश की. दाढ़ी–टोपी पहने छात्रों की न सिर्फ़ पिटाई की, बल्कि 7 छात्रों को गिरफ़्तार करके भी ले गई, इन 7 छात्रों में एक न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर भी मौजूद था.
इस न्यूज़ रिपोर्टर के मुताबिक़ उसे पुलिस ने सिर्फ़ इसलिए धक्का दिया, क्योंकि पुलिस को मारते समय बस इतना कहा था कि इतना क्यों मार रहे हो. पुलिस हमें पहले सी.आर. पार्क पुलिस चौकी ले जाना चाहती थी, लेकिन पत्रकार के विरोध पर न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में ले गई. हालांकि इफ़्तार के बाद इन सातों लोगों को छोड़ दिया गया. पुलिस द्वारा ले जाए गए इन 7 लोगों में एक रिसर्च स्कॉलर भी शामिल था. उनका भी कहना है कि पुलिस ने उन्हें सिर्फ़ इसलिए पकड़ा, क्योंकि उन्होंने कुर्ता–पाजामा पहन रखा था.
बहरहाल, छात्रों का विरोध जारी रहा. उधर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के कार्यक्रम के स्थान कैस्ट्रो कैफ़े से बदल कर नवाब मंसूर अली खान पटौदी स्पोर्टस कॉम्पलेक्स में कर दिया गया था. सुरक्षा का ख़ास इंतज़ाम था. सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल व कई बड़े अफ़सर तैनात थे.
स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के इंडोर स्टेडियम में ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ का मंच लगाया गया था. ये स्टेडियम आधे से अधिक खाली पड़ा था. मुश्किल से 100-150 लोग होंगे. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के छोटे वक्ताओं के बाद इंद्रेश कुमार मंच पर आएं और वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया और अपने संबोधन में वो यह भी भूल गए कि इफ़्तार का वक़्त हो चुका है. मग़रिब के आज़ान होने के पांच मिनट बाद तक तक़रीर करते रहे और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के लोग उन्हें सुनते रहे. भाषण की समाप्ति के बाद लोग इफ़्तार के बजाए उनके साथ सेल्फ़ी लेते नज़र आए. कुछ लोगों के याद दिलाने पर इंद्रेश कुमार इफ़्तार के लिए बाहर आएं. इस इफ़्तार में कहीं भी गाय का दूध नज़र नहीं आया, जिसका ज़िक्र इंद्रेश कुमार कई बयानों में कर चुके हैं. ख़ास बात यह है कि इस इफ़्तार में लोगों ने चिकन बिरयानी का भी लुत्फ़ लिया.
इधर जामिया के छात्र जामिया मेन कैम्पस के गेट पर प्रोटेस्ट करते रहे. सड़क पर ही खजूर के साथ अपना रोज़ा तोड़ा और सड़क पर ही नमाज़ अदा की और फिर से अपना विरोध जारी रखा.
कुल मिलाकर देखा जाए तो ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ का ये इफ़्तार पार्टी सुपर फ्लॉप रहा. इस इफ़्तार पार्टी को सुपर फ्लॉप इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें शामिल अधिकतर लोग बाहर से आए थे. इस इफ़्तार पार्टी में शामिल लोगों के मुताबिक़ इसमें क़रीब 30 से अधिक लोग मेरठ से आए थे, तो वहीं एक अच्छी–खासी संख्या मेवात के लोगों की भी थी. जामिया का कोई भी छात्र, टीचर और यहां तक कि वाईस चांसलर तलत अहमद भी शामिल नहीं हुए जो इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथी थे.
दरअसल, जामिया के छात्र इस इफ़्तार पार्टी को मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष शैक्षणिक इदारों में आरएसएस के घुसपैठ करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं. ये वही इंद्रेश कुमार है जिसका नाम मालेगांव और अजमेर बम धमाकों में आता रहा है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच आरएसएस का ही है, जिसका दावा है कि वह मुसलमानों के बीच काम करता है. इंद्रेश कुमार भी मुसलमानों को ये संदेश साफ़ तौर पर देना चाहते हैं कि मुसलमान अपने मज़हबी तौर–तरीक़ो को छोड़ दें और हिन्दुओं के रहन–सहन को अपना लें, इसी में उनका फ़ायदा है. इंद्रेश का ये बयान हमारे बुजुर्गों की रूह को तड़पाने और जामिया से जुड़े लोगों को बेचैन करने वाला है. ये हमारी बुनियाद को ख़त्म करने जैसा है.
सच पूछे तो क़रीब 97 साल के अपने लंबे सफ़र में जामिया ने हवाओं के गर्म थपेड़ों का बखूबी सामना किया है. हर उस तूफ़ान से लड़ा, जिसकी रवानी ने उसे कुचलने का मंसूबा बनाया. लेकिन आज का ये सफ़र क़ाबिल–ए–तारीफ़ है कि जामिया के छात्र आज भी मुल्क के सेकूलरिज़्म के लए खड़े हैं और मुल्क के संविधान को ख़त्म करने की कोशिश करने वालों का हर जगह विरोध कर रहे हैं.
आख़िर में इस बात को भी हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि कैसे बानियान–ए–जामिया और मुहिब्ब–ए–जामिया ने मुश्किल से मुश्किल हालात में मुल्क के एकता–अखंडता व सेकूलरिज़्म की शमा को जलाए रखा है. मुल्क के ताज़ा हालात में जामिया को एक बार फिर से उसी ‘ख़िलाफ़त आन्दोलन’ की शुरूआत करने की ज़रूरत है, जिसकी ज़रूरत कभी मौलाना मुहम्मद अली जौहर व गांधी जी ने महसूस की थी.