TwoCircles.net News Desk
सहारनपुर : सहारनपुर में जातिगत व सांप्रदायिक हिंसा क्षेत्रों में यूपी की सामाजिक व राजनीतिक संघटन रिहाई मंच ने एक जांच दल बनाकर सात दिवसीय दौरा करते हुए शब्बीरपुर घटना के एक माह पर आज एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में उन्होंने सिलसिलेवार तरीक़े से 25 तथ्यों व अपने सवालों को सामने रखा है, जो सहारनपुर पुलिस-प्रशासन पर कई सवाल खड़े करती है.
जांच दल ने 7 दिनों तक हिंसा ग्रस्त गावों के अलावां अन्य जगहों पर भी विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की, जिसकी फाईंडिंग इस प्रकार हैं :-
1. सड़क दूधली में 13 अप्रैल को जब परमीशन नहीं मिली तो 15 अप्रैल को फिर कोशिश हुई. यह प्रयास विश्व हिंदू परिषद और अशोक भारती द्वारा हुए. जबकि सड़क दूधली में 13 अप्रैल को ही दलितों ने अम्बेडकर भवन में 14 अप्रैल को भण्डारे का कार्यक्रम करने की बात कही थी.
2. जिस तरह से सड़क दूधली में भाजपा सांसद राघव लखनपाल व उनके भाई राहुल लखनपाल, महानगर अध्यक्ष अमित गनरेजा, राहुल झाम, जितेन्द्र सचदेवा, सुमित जसूजा और अशोक भारती ने भाजपा समर्थकों के साथ तांडव किया व उसके बाद एसपी लव कुमार के आवास पर हमला किया, जिसमें उनके परिवार को छुपकर शरण लेनी पड़ी, वह साफ़ करता है कि सरकार के संरक्षण में यह सब हो रहा था.
3. यह सब एक सुनियोजित ड्रामे की तरह रचा गया था, जिसमें बीजेपी सांसद राघव लखनपाल ने अपने भाई को मेयर के चुनाव से पहले लाइम लाइट में लाने के लिए इस बात के लिए पुलिस को तैयार किया कि वह अपने समर्थकों के साथ मुस्लिम बस्ती में थोड़ी दूर जाकर थोड़ा हाथापाई होकर ख़त्म कर देंगे. इसीलिए इस एकाएक निकले जुलूस में मीडियाकर्मी भारी संख्या में मौजूद थे. ऐसा करके राघव लखनपाल सहारनपुर निकाय में जुड़ने की संभावना वाले दलितों के गांवों को एड्रेस करना चाहते थे. ऐसा उन्होंने 2014 में उपचुनावों के वक्त भी शहर में सिख-मुस्लिम विवाद कराकर किया था.
4. सड़क दूधली में मुस्लिम इलाक़े से विरोध में पत्थरबाज़ी और प्रशासन के पंगु होने की स्थिति में एसपी कार्यालय पर हमला करवाकर भाजपा नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया.
5. यहां यह भी सवाल है कि बाबा साहब की शोभायात्रा में जय श्री राम, भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने का क्या औचित्य है.
6. सड़क दूधली के स्थानीय दलितों पर एफ़आईआर, लेकिन बाहरी भाजपाई, बंजरगदल, हिंदू युवा वाहिनी के लोगों को खुली छूट साफ़ करती है कि पुलिस ऐसा करके मुस्लिम-दलितों के बीच तनाव पैदा कर रही है. जबकि 20 अप्रैल की शोभा यात्रा को गांव के दलितों का कोई समर्थन नहीं था और न वे इसमें शामिल थे.
7. आज जो प्रशासन भीम आर्मी को लेकर बहुत चिंतित है. आख़िर छुटमलपुर से लेकर पूरे ज़िले में दलितों के खिलाफ़ हो रही हिंसा के वक़्त वह इतना क्यों नहीं चिंतित था, जिससे कि भीम आर्मी की ज़रुरत पड़ी.
8. इंसाफ़ के सवाल पर भीम आर्मी का बनना और उसके बाद उसका दमन बताता है कि प्रशासन सवर्ण सामंती तत्वों के मनमाफ़िक़ काम कर रहा है. इस एक महीने के दौरान जिन दलित संगठनों या व्यक्तियों ने दलितों के सवाल पर चिंता व्यक्त की वह पुलिस के घेरे में हैं, जबकि पूरे ज़िले में जय राजपूताना के बोर्ड लगे हैं उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
9. जिस तरह से 5 मई की घटना के लिए मास्टरमाइंड शब्बीरपुर के प्रधान शिव कुमार को बताया जा रहा है, जबकि महाराणा प्रताप का जुलूस निकालने और हज़ारों की संख्या में तलवारें लेकर दलितों को मारने-काटने वालों का संरक्षण किया जा रहा है, उससे साफ़ है कि सरकार ठाकुर जाति के लोगों के साथ ही है.
10. मुज़फ्फ़रनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी व केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान का सहारनपुर आकर यह कहना कि साज़िश करने और कराने वाले अब तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं हैं, बल्कि वह खुलेआम घूम रहे हैं. और दूसरे दिन 5 अप्रैल को भीम आर्मी के चन्द्रशेखर, अध्यक्ष विनय रतन, ज़िलाध्यक्ष कमल वालिया और मंजीत के खिलाफ़ गैर-ज़मानती वारंट जारी करते हुए सहारनपुर रेंज के आईजी एस. इमैनुअल द्वारा 12-12 हज़ार रुपए इनाम घोषित करना साफ़ करता है कि शासन-प्रशासन के निशाने पर सिर्फ़ दलित हैं.
11. केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान अगर सहारनपुर के लेकर इतने चिंतित हैं तो आखिर क्यों नहीं वो इस घटना के मुख्य षडयंत्रकर्ता भाजपा सांसद राघव लखनपाल, भाजपा विधायक को गिरफ्तार करवाते. उल्टे भाजपा सांसद राघव लखनपाल और भाजपा के नेता जिन्होंने 20 अप्रैल से सहारनपुर को हिंसा की आग में झोंक दिया है, वो प्रशासन के साथ मिटिंग कर रहे हैं. जिससे साफ़ है कि पुलिस जिन्हें मास्टरमाइंड कह रही हैं, दरअसल उन्हें भाजपा नेता ही मास्टरमाइंड बता रहे हैं.
12. 5 मई को शब्बीरपुर की घटना के बाद जिस तरह से ठाकुर जाति के मृतक एक व्यक्ति को मुआवज़ा दिया गया, जबकि वह व्यक्ति खुद हिंसा करने के लिए गया था और रविदास मंदिर में भी तोड़-फोड़ की, वहीं दलित महिलाओं-बच्चों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाना साफ़ करता है कि हिंसा करने वालों को मुआवजा देकर और पीड़ितों को इग्नोर कर सरकार मनुवादी तत्वों को खुला संरक्षण दे रही है.
13. भीम आर्मी के नाम पर मुज़फ्फ़रनगर में रामपुर तिराहे के निकट बझेड़ी पशु पैठ मैदान में बहुजन धम्म सम्मेलन व उसको लेकर शुक्रताल में चंदा एकत्र करने पर रोक और वहीं सहारनपुर जातीय-सांप्रदायिक हिंसा के षडयंत्रकर्ता संगठन आरएसएस को हिंदू समाज को संगठित करने के नाम पर दिल्ली रोड स्थित सरस्वती विहार स्कूल में कैंप चलाने की इजाज़त देना साफ़ करता है कि आगामी समय में सहारनपुर को ये मुनवादी संगठन फिर हिंसा में झोंकने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें प्रशासन इनके साथ है.
14. भीम आर्मी को लेकर खुफिया इनपुट देने वाली एलआईयू, आईबी सरीखे संगठनों के इनपुट मीडिया में लाकर दलितों के खिलाफ़ नफ़रत बढ़ाने वाले खुफिया विभाग के संगठनों ने 20 अप्रैल से भाजपा सांसद राघव लखनपाल, भाजपा, आरएसएस, बजरंगदल, हिंदू युवा वाहिनी, राजपूतना सेनाओं और महाराणा प्रताप के नाम पर खुलेआम तलवारें लेकर हिंसा करने वालों को लेकर क्या इनपुट दिया. और अगर दिया तो वह क्यों नहीं मीडिया में आया.
15. सहारनपुर में लगातार धार्मिक स्थलों पर आराजक तत्वों द्वारा की जा रही अराजकता साफ़ कर रही है कि सांप्रदायिक-जातिय तत्व लगातार सक्रिय हैं.
16. सहारनपुर में इंटरनेट को तो दस दिन तक बाधित किया गया पर स्थानीय मीडिया जिसने लगातार अफ़वाहों को गर्म किया उस पर क्या कार्रवाई होगी.
17. 5 मई की घटना के बाद कार्रवाई के लिए प्रशासन पर दबाव व चन्द्रशेखर समेत अन्य दलित नेताओं के साथ वार्ता के साथ ही शब्बीरपुर की घटना व इंसाफ़ न होने पर विरोध करने वालों पर लाठी चार्ज कर पूरे शांतीपूर्ण आंदोलन को अराजक बनाने की कोशिश प्रशासन ने की, जिससे शब्बीरपुर के इंसाफ़ का सवाल दब जाए.
18. जब शब्बीरपुर जल रहा था तो फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को न जाने देने वाले ठाकुर जाति के लोगों को क्यों नहीं मास्टर माइंड मानता प्रशासन.
19. दलितों के विभिन्न गांवों की घेराबंदी और ठाकुरों के गांवो में कोई फोर्स नहीं, जबकि अब तक दलितों ने सिर्फ़ इंसाफ़ के लिए प्रोटेस्ट किया. वहीं ठाकुर जाति के लोगों ने हजारों की संख्या में तलवारें लेकर हमला किया.
20. 23 मई को बसपा प्रमुख मायावती के आने के बाद लगातार चन्द्रपुर में विभिन्न लोगों पर ठाकुर जाति के लोगों ने दिन दहाड़े तलवारें लेकर हमले किए, जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हुई. दलितों के आंदोलन को नक्सल से जोड़ा गया, पर ठाकुर जाति के हमलों को पुलिस ने दरकिनार करने की कोशिश की.
21. 2014 के उपचुनाव के वक्त सहारनपुर में सांपद्रायिक हिंसा को कश्मीर से जोड़ना व मई 2017 की जातिगत हिंसा को नक्सल से जोड़ना साफ़ करता है कि यह यहां के पुलिस के एक ट्रेंड है सवालों को भटकाने का.
22. जांच दल ने पाया कि सहरानपुर के क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में महाराणा प्रताप जयंती पर शोभा यात्रा निकालने का ट्रेंड विकसित हुआ है और इसमें ठाकुर जाति के लिए अपनी अस्मिता, मान-सम्मान से जोड़ते हुए और स्थानीय तनावों से जोड़ते हुए इसका सांप्रदायिक रूप विकसित कर हमलावर होते हैं, जो अबकी बार शब्बीरपुर में जातिगत हिंसा के रुप में परिणित हो गया.
23. गाय को मां बताकर पूरे देश में हिंसा करने वालों ने शब्बीरपुर में जानवरों पर भी हमले किए और गाय तक को ज़ख्मी किया जो इनकी गौ-माता की राजनीति को बेनक़ाब करता है कि दलित महिलाएं को तो ये मां नहीं समझते वहीं गाय को भी नहीं.
24. 18 अप्रैल को दलित संगठनों ने प्रशासन को यह अवगत करा दिया था कि बाबा साहब की जयंती पर अब कोई कार्यक्रम उनके नहीं होने हैं तो ऐसे में 20 अप्रैल की सड़क दूधली की शोभा-यात्रा भाजपा की राजनीति की रणनीति का हिस्सा था, जिसने पूरे क्षेत्र को हिंसा की आग में झोंक दिया.
25. आंदोलनकारी दलित नेताओं पर ईनाम रखकर पूरे मामले और आंदोलन को क्रिमिनलाइज़ किया जा रहा है. अगर ऐसा नहीं है तो 20 अप्रैल को हुई घटना के बाद जिन भाजपा के लोगों ने एसएसपी के घर पर हमला किया उस पर पुलिस ने क्या किया.
इस जांच समूह में सेड्यूल कास्ट कम्यूनिटी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद, रिहाई मंच नेता शाहनवाज़ आलम, सेंटर फाॅर पीस स्टडी से सलीम बेग, लेखक व स्तंभकार शरद जायसवाल, पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष सिंह, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव और सहारनपुर से सामाजिक कार्यकर्ता अरशद कुरैशी के साथ शामिल रहे.