‘गौ-कशी के नाम पर शेरपुर में पुलिस का तांडव, दजर्नों घायल’

TwoCircles.net Staff Reporter

मुज़फ़्फ़रनगर/लखनऊ : रिहाई मंच ने मुज़फ्फ़रनगर के शेरपुर गांव में पुलिसिया गोलीबारी में एक लड़के की आंख फूट जाने और कई बच्चों के बदन पर छर्रों के निशान पर सवाल उठाया है.


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रिहाई मंच ने शेरपुर का दौरा करने के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि जो छर्रों के निशान बच्चों के बदन पर दिख रहे हैं वो सामान्य नहीं हैं. ऐसे में इस पूरी घटना की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए, क्योंकि अगर ऐसे किसी विशेष हथियार का पुलिस इस्तेमाल कर रही है तो यह बेहद ख़तरनाक संकेत है.

पुलिसिया गोलीबारी में आंख खो चुके 24 वर्षीय फ़रमान की बहन अंजुम ने जांच दल को बताया कि 2 जून को कांधला से वह साइकिल से मज़दूरी करके रहा था कि पुलिस द्वारा की जा रही गोलीबारी में उसकी आंख में गोली के छर्रे लग गए. बावजूद इसके पुलिस उसे अस्पताल नहीं ले गई. पुलिस वाले उसे ज़बरदस्ती उठा के लेकर चले गए और थाने में उसकी पिटाई भी की.

अंजुम बताती है कि, गोली लगने के बाद आंख निकल आई थी. रात में तीन बजे उसे पुलिस ने छोड़ा जिसके बाद घर वाले उसे पहले मुज़फ्फ़रनगर ले गए. लेकिन वहां इलाज नहीं हो पाने के कारण उसे मेरठ ले जाया गया. लेकिन वहां से भी जब डाॅक्टरों ने जवाब दे दिया, तब उसे दिल्ली ले गए. उसकी पूरी आंख ख़राब हो गई है. छर्रा भी नहीं निकला. डाक्टरों ने कहा है कि एक महीने बाद फिर आॅपरेशन से छर्रा निकाला जाएगा. अंजुम ने बताया कि परिवार में वही एक कमाने वाला था. 

8 साल के असलम ने बताया कि वह दूसरे बच्चों के साथ खेल रहा था तभी उसकी बांह में गोली के छर्रे लग गए. लेकिन पुलिस ने उसका इलाज कराने के बजाए उसे थाने ले जाकर बुरी तरह पीटा और उसके सामने इस्लाम धर्म को गाली देते हुए कहा कि अब तुम लोगों को सूअर के मांस से अफ्तार करवाया जाएगा.

15 साल के शाहरुख़ ने अपनी बांह पर लगे छर्रों के निशान दिखाते हुए बताया कि उसे भी छर्रे लगने के बावजूद पुलिस ने कोई इलाज नहीं करवाया और थाने में पीटा भी. असलम और शाहरुख ने बताया कि पुलिस ने उनको चेतावनी दी कि कोई भी पूछे तो मत बताना कि गोली के छर्रे लगे हैं, यही कहना कि खेलने में चोट लग गई है.

वहीं 15 वर्षीय अकरम ने भी अपनी गरदन में लगे छर्रे के निशान दिखाते हुए भी पुलिसिया जुल्म की दास्तान बताई. 

गांव के अंतिम छोर पर ईदगाह के पीछे कामिल की मां अनवरी मिलीं. रिहाई मंच जांच दल को उन्होंने बताया कि 2 जून को पुलिस एकाएक उनके घर में घुस गई. अफ्तार का वक्त था. जो कुछ सब्ज़ी बनी थी उसको वो कहने लगे कि गाय का मांस बनाए हो और चूल्हा तोड़ दिया.

कामिल की पत्नी रिज़वाना ने बताया कि पुलिस ने घर के अंदर जो बक्सा रखा था, उसे भी पुलिस ने यह कहकर खुलवा दिया कि इसमें गाय का मांस छुपा कर रखा है. जब मैंने विरोध किया तो पुलिस ने मेरा कपड़ा फाड़ दिया और मुझे धक्का दे कर गिरा दिया. इसके बाद बक्सा खोलकर बेटी की शादी के लिए जो गहने बनाए थे, उसको जबरन लेकर चले गए.

रिज़वाना ने बताया कि पुलिस के डर से उन्होंने अपनी बच्चियों को रिश्तेदारी में भेज दिया. उन्होंने जांच दल को बताया कि अनिल और बाल किशुन ने ही सबसे ज्यादा तोड़फोड़ और लूट की. पुलिस ने यूनुस के बेटों के घरो पर भी छापे मारी की और ठीक इसी तरह चूल्हा और घर में तोड़फोड़ की. उनके घर की रिज़वाना और नौशाबा ने पूरे हालात बताएं. 

इस्तख़ार के 75 वर्षीय बीमार पिता याक़ूब को भी पुलिस ने मारापीटा. इस्तख़ार की पत्नी आरिफ़ा ने जांच दल को बताया कि उन्होंने जो अफ्तार के लिए बनाया था उसको पुलिस ने कहा कि ये गाय का मांस है. पुलिस ने गाय के मांस के नाम पर घर की तलाशी ली.

इस्तख़ार ने बताया कि घर में 36 हज़ार रुपए रखे थे, पुलिस निकालकर लेकर चली गई. यहां भी उनके घरों में कांस्टेबल अनिल और बाल-किशुन घुसे थे. 

जांच समूह ने इस संबन्ध में गांव की प्रधान अफ़सरी बेगम के पति राव मुहम्मद हाशिम से मुलाक़ात की.

उन्होंने बताया कि मकानों की तलशी के नाम पर औरतों को बेइज़्ज़त किया गया. रात के खाने के लिए बने कढ़ी के पकौड़ी को फोड़वाकर चेक करवाया गया कि गौ मांस तो नहीं है. इसके बाद हमने सीओ साहब को फोन किया.

उन्होंने कहा कि वे थोड़ी देर में आएंगे. उसके बाद गाड़ी से पुलिस आई हमने सोचा कि सीओ साहब हैं, पर जैसे ही गाड़ी रुकी पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया. राव मुहम्मद हाशिम ने अपने शरीर पर लगे ज़ख्मों के निशान दिखाते हुए बताया कि इसके बाद पुलिस गांव वालों पर लाठी चार्ज गोली चलाने लगी. 2 जून को शाम साढ़े पांचछह बजे के बीच की यह घटना है. चौकी इंचार्ज विनोद कुमार के साथ अनिल कुमार, अतुल, योगेश और बिना वर्दी में बाल कृष्ण आए थे.

लोगों के मुताबिक़ पुलिस गांव के पांच लड़कों को भी उठाकर ले गई. जिसमें अबरार, फ़रमान, सरफ़राज़, शाहरुख़ एक अन्य शामिल थे. जिसमें पुलिस ने अबरार और सरफ़राज़ का चलान करके जेल भेज दिया और बाक़ी 3 को छोड़ दिया. राव मुहम्मद हाशिम ने जांच दल को बताया कि 27 मई को भी मुर्गा काटने के नाम पर हुए विवाद में उनकी सीओ और एसपी से वार्ता हुई थी. 

रिहाई मंच ने जांच समूह ने जांच के दौरान पाया कि दरअसल यह मुर्गा काटने के नाम पर वसूली का मसला था, जिसमें पुलिस जब अवैध वसूली नहीं कर पाई तो गौमांस के नाम पर इस तरह का हमला किया. 

रिहाई मंच का यह भी कहना है कि, गांव के जिन बच्चों को गोली के छर्रे लगे उनको पुलिस ने कहा कि किसी को यह मत बताना कि ये गोली के छर्रे के निशान हैं. कोई पूछे तो यही बताना कि आपस में मारपीट में चोट लग गई. जबकि पुलिस ने इस घटना पर जो एफ़आईआर दर्ज किया है उसमें साफ़ लिखा हैभीड़ को हटाने के लिए सरकारी पम्प एक्शन 12 बोर से 3 हवाई फ़ायर भी कराएजिससे साफ़ है कि जिन बच्चों को छर्रे लगे हैं वो पुलिस द्वारा की गई फ़ायरिंग में ही लगे हैं. 

स्पष्ट रहे कि पुलिस ने 21 लोगों के ख़िलाफ़ जो नामज़द मुक़दमा दर्ज किया है. उसके तहत गांव वालों पर संगीन मुक़दमें दायर किए हैं .जिनकी धराएं कुछ इस तरह हैंमुक़दमा अपराध संख्या 1081/17, धारा  147/143/149/332/333/353/354/504/307/427/435/336/349 भारतीय दंड विधान 7 सीएलए एक्ट. 

एफआईआर में यह भी लिखा है कि सूचना पर कि गांव शेरपुर में ईदगाह के पीछे कामिल बुंदा के घर में गौकशी होने की सूचना है. यह बात पुष्ट करती है कि पुलिस गौकशी के नाम पर गांव गई थी. अगर गौ-कशी हुई थी तो क्यों नहीं गौ-मांस पकड़ा गया. गाय के मांस का पाया जाना साबित करता है कि सूचना ही या तो ग़लत थी या फिर पुलिस ने गो-मांस के बहाने मुसलमानों पर हमला बोला और उनके पैसों और गहनों की लूट की. गो-कशी की झूठी ख़बर को अख़बारों ने भी छापा है.

रिहाई मंच ने अपने विज्ञप्ति में यह भी बताया है कि मुज़फ्फ़रनगर के ग्राम नसीरपुर में 6 जून को सांप्रदायिक हिंसा के बाद बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गई, जिसमें महिलाओं को भी पुलिस उठाकर ले गई.

इस जांच दल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम, लेखक पत्रकार शरद जायसवाल, सेंटर फाॅर पीस स्टडी के सलीम बेग, आॅल इंडिया एससी कम्यूनिटी आॅर्गनाइजेशन के लक्ष्मण प्रसाद, पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष सिंह शामिल थे.

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