दो पीढ़ियों की सियासी महत्वाकांक्षाओं के बीच फंसा हिंदुत्व का प्रोजेक्ट
अभिषेक श्रीवास्तव, TwoCircles.net
गोरखपुर: ढाई साल का वक्त आदमी और सियासत दोनों को बदल देने के लिए काफी होता है. अपने छोड़ जाते हैं तो गैरों को बेमन से गले लगाना पड़ता है. मूल्य ताक पर रख दिए जाते हैं तो सत्ता की मायावी ठगिनी के सामने बंदर की तरह नाचना पड़ता है. अजय सिंह बिष्ट के साथ आजकल यही हो रहा है. अजय सिंह बिष्ट – कहें तो योगी आदित्यनाथ, जिनका भरे सदन में बुक्का फाड़कर रोना आज भी लोगों को अच्छे से याद है, आज रो भी नहीं पा रहे हैं. कठोर छवियों के साथ यही दिक्कत होती है.
उनका अपना बच्चा हिंदू युवा वाहिनी उनसे बग़ावत कर बैठा है. उनका तीन बार जिताया सांसद चुनाव प्रचार में जनता द्वारा खदेड़ा जा चुका है. उनके वोटर बिदक चुके हैं. ‘गोरखनाथ की प्रतिष्ठा अपनी जगह लेकिन इस बार भाजपा नहीं आएगी’, जगह-जगह लोग यही बात कह रहे हैं. गोरखपुर में टंगे भाजपा के बैनर-पोस्टर समेत अखबारी विज्ञापनों से उनका चेहरा नदारद है. चुनावी हालत इतनी पतली है कि अमित शाह को प्रचार के आखिरी दिन 2 मार्च को ध्रुवीकरण के आखिरी प्रयास में शहर के मुस्लिमबहुल इलाकों से रोड शो निकालना पड़ा है.
गोरखपुर से भाजपा सांसद और कट्टर हिंदूवादी नेता योगी के लिए सुकून की बात बस इतनी है कि संकट की इस घड़ी में इंटर में पढ़ने वाले दो छात्र गले में भाजपा का गमछा डाले गुरुवार को सुबह-सुबह उनके सामने मत्था टेकने को तैयार बैठे थे. घंटे भर में तीन बार गलियारे में झाड़ू लग चुकी थी. एक कारिंदा लगातार चप्पलों को कतारों में सजा रहा था. उनकी मेज़ कार्यालय के ठीक सामने प्रेसवार्ता वाले स्थान पर करीने सजा दी गई थी. उसके ऊपर भगवा रंग की कलम बीचोबीच रखी थी. कुर्सी पर भगवा कवर चढ़ा था. दो भक्त छात्रों के अलावा एबीपी न्यूज़, दि हिंदू, पीटीआई, न्यूज़ 18 समेत स्थानीय मीडिया के दर्जन भर पत्रकार उनके दर्शन के इंतजार में झड़कर नीचे गिरते पीले पत्तों को निहार उबासियां ले रहे थे.
आठ बजे का कह कर योगी नौ बजे अचानक गलियारे में नमूदार हुए. सीधे दफ्तर के भीतर गए. दो मिनट बाद बाहर निकले. पत्रकारों में बीच आए, लेकिन किसी से निगाह नहीं मिलायी. दो साधुओं से लिखित आवेदन लिए. कारिंदों को एक वाक्य का निर्देश दिया और पूरी निस्पृहता के साथ चलते बने. योगी के चेहरे पर तैर रहे कठोर भाव बता रहे थे कि उनके किले में दरार पड़ चुकी थी.
ढाई साल पहले का वक्त और था जब योगी ने इसी संवाददाता को घंटा भर वक्त दिया था. अपनी गौशाला में रामा-श्यामा समेत दर्जनों गायों से मिलवाया था. पीछे से गोरखनाथ मंदिर के दर्शन करवाए थे और तमाम विषयों पर खुलकर बात की थी. इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. योगी अपनी एसयूवी पर चढ़कर मैदान में निकल गए. उस मैदान में, जहां केवल धूल उड़ रही है और भविष्य धुंधला है. शनिवार यानी आज होने वाला मतदान योगी के राजनीतिक भविष्य का इम्तिहान होगा.
ठीक दो दिन पहले बुधवार को कायस्थ विकास परिषद ने अनिल शास्त्री और प्रदीप माथुर जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में कांग्रेस के साथ अपनी निष्ठा जताई थी. कायस्थ मतदाता गोरखपुर शहर में सबसे ज्यादा हैं. उनकी संख्या करीब 80,000 है. यह एक बड़ा शिफ्ट था क्योंकि यह समुदाय परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी का वोटर रहा है. इसके बाद 45,000 ब्राह्मण मतदाता भाजपा के वोटर के रूप में गिने जाते हैं. इस बार यह समुदाय कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के बीच बंट रहा है.
यूपी विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा गैर-यादव पिछड़ों की हुई है. गोरखपुर जिले में एक लाख से ज्यादा निषाद वोटर हैं जो आज तक बसपा और भाजपा के बीच बंटते आए थे. अबकी उनका अपना दल निषाद पार्टी मैदान में है. लिहाजा वे अपनी पार्टी को वोट दे रहे हैं. दलित बसपा के साथ जाएगा. मुसलमान बसपा और गठबंधन के बीच खप जाएगा. भाजपा के गढ़ में मतदान से एक रात पहले सौ टके का सवाल बना हुआ था कि भाजपा को वोट कौन देगा.
गोरखपुर में एक कॉन्सपिरेसी थियरी भी चल रही है कि योगी भाजपा प्रत्याशियों को हरवाना चाहते हैं. इस बात में कितना दम है, यह हिंदू युवा वाहिनी के अध्यक्ष सुनील सिंह से बात कर के समझ में आता है. सुनील सिंह समेत वाहिनी के कई पदाधिकारियों को योगी ने संरक्षक की हैसियत से निलंबित कर दिया है. प्रतिशोध में सुनील सिंह कहते हैं, ‘वो हमें क्या निकालेंगे? युवा वाहिनी का एक संविधान है, नियमावली है. उसके लिए बैठक करके दो-तिहाई से प्रस्ताव पारित करवाना होता है. 25 साल तक हम लोगों का वे इस्तेमाल करते रहे.’
इस बार हिंदू युवा वाहिनी की बग़ावत योगी के लिए दर्द बन गई है. वैसे तो हर बार युवा वाहिनी के प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं और लोग भी समझते हैं कि वे प्रत्याशी डमी हैं. प्रचार के आरंभ में ऐसी बातें हुई थीं लेकिन इस बार की बग़ावत में दम है. वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह कहते हैं, ‘इस बार सुनील सिंह की घर वापसी नहीं होगी.’ सुनील दावा करते हैं कि उनके साथ वाहिनी का 75 फीसदी काडर है.
सुनील को असल गुस्सा इस बात का है कि भाजपा लगातार योगी की उपेक्षा करती रही, उन्हें बदनाम करती रही लेकिन उन्होंने अमित शाह के आगे सरेंडर कर डाला. अपने मोबाइल पर एक फोटो दिखाते हुए सुनील कहते हैं, ‘ये देखिए… योगी को कैसे अमित शाह कुहनी मारकर धक्का दे रहा है… मतलब एक गरिमा होती है राष्ट्रीय अध्यक्ष की. इतना अपमान महाराजजी क्यों बरदाश्त कर रहे हैं समझ नहीं आ रहा रहा. लगता है भाजपा ने उनके ऊपर काला जादू कर दिया है.’
सुनील की इस बात से मनोज सिंह भी सहमत दिखते हैं. वे कहते हैं, ‘ये लड़के आज से बीस-पचीस साल पहले योगी के साथ जुड़े थे. योगी ने जो कहा जैसा कहा वैसा ये करते रहे. अब ये सब चालीस पार हो गए हैं. उनकी भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, लेकिन योगी नहीं चाहते कि उनके सामने कोई और राजनीतिक रूप से मज़बूत हो.”
ठीक यही दलील पार्टी में योगी की उपेक्षा के मामले में भी लागू होती है. योगी इस चुनाव में बतौर स्टार प्रचारक 150 से ज्यादा जनसभाएं कर चुके हैं लेकिन तस्वीरों में वे नदारद हैं. सुनील कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी नहीं चाहते कि उनके सामने योगीजी जैसा एक मजबूत छवि वाला व्यक्ति खड़ा हो. हमारा असंतोष इस बात को लेकर भी है. हिंदुत्व और विकास के जिन मूल्यों को लेकर योगीजी चले थे, वह सब समाप्त हो चुका है. अब सारी लड़ाई सत्ता की है. हम लोग सत्ता के लिए नहीं, मूल्य के लिए राजनीति करते हैं.’
चालीस के लपेटे में पहुंच चुके हिंदू युवा वाहिनी के पदाधिकारियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भले देर से जगी हो, लेकिन नए लड़कों में यह अभी से देखी जा रही है. योगी का इंतज़ार कर रहे ग्यारहवीं में पढ़ने वाले छात्र और वाहिनी के वार्ड अध्यक्ष 17 वर्षीय शिवम पटवा खुद को कट्टर हिंदू कहते हैं. उनका कहना है, ‘अभी मेरे अंडर में साठ लड़के हैं. उनकी उम्र 40 तक की है. सब मुझे भइया कहते हैं तो अच्छा लगता है.’ वाहिनी में रहकर शिवम आगे क्या करेंगे? उनका दिमाग इस सवाल पर बिलकुल साफ़ है. कहते हुए उनकी आंखों में चमक आ जाती है, ‘राजनीति करूंगा. चुनाव लडूंगा. योगी महाराज का सेवक हूं. उनका आदेश रहा तो बहुत आगे जाऊंगा और समाज की सेवा करूंगा.’
वाहिनी में बग़ावत के सवाल पर ये दोनों छात्र बगलें झांकने लगते हैं. विश्वकर्मा जाति से आने वाला दूसरा छात्र और वाहिनी का एक और वार्ड अध्यक्ष जो शिवम से उम्र में एक साल छोटा है, कहता है, ‘ये सब बेकार बातें हैं. योगी महाराज के बगैर वाहिनी कुछ भी नहीं हैं. वो लोग गलत लोग हैं. भाजपा सारी सीटें जीत रही है.’
हिंदू युवा वाहिनी की दो पीढियों के बीच फंसे योगी आदित्यनाथ की राजनीति अब उन्हीं के घर में उनसे सवाल खड़े करने लगी है. युवाओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने पुराने किस्म की राजनीति को चुनौती दे डाली है. यही योगी के लिए बड़ा सिरदर्द है. दूसरी ओर भाजपा जिस तरीके से योगी का ‘कैलकुलेटेड’ इस्तेमाल कर रही है, वह योगी के चाहने वालों को पसंद नहीं आ रहा. गुरुवार को जब स्थानीय अखबारों के पहले पन्ने पर अमित शाह के रोड शो का विज्ञापन छपा और और उसमें योगी की तस्वीर नहीं दिखी, तो यह मुद्दा अचानक चर्चा में आ गया.
योगी करीब साढ़े नौ बजे अपनी सभा करने निकले और उसके बाद अमित शाह को लेकर रोड शो में आए. रोड शो में अपेक्षा के अनुरूप भीड़ काफी कम रही. दोनों की परस्पर भाव-भंगिमाएं भी स्वस्थ संकेत नहीं दे रही थीं. वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं, ‘पांच सीटों पर बसपा आगे है. केवल दो पर भाजपा फंसी हुई है. हो सकता है सारी सीटें भाजपा हार जाए.’
पूर्वांचल के चुनाव रुझानों के संबंध में एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि दिल्ली के स्टूडियो में बैठे संपादक जहां भाजपा को आगे दिखा रहे हैं, वहीं उन्हीं टीवी चैनलों के पत्रकार जो पूर्वांचल के दौरे पर हैं, भाजपा की हालत खराब बता रहे हैं. गोरखपुर में प्रचार के आखिरी दिन से एक रात पहले टीवी के पत्रकार प्रांशु मिश्र और संकेत उपाध्याय ने इस बात की ताकीद की कि सीधी लड़ाई बसपा और भाजपा के बीच है.
बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई के सवाल पर काम करने वाले संगठन रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम जो फिलहाल बलिया में हैं, एक काम की बात कहते हैं. उनका कहना है कि नोटबंदी पर खुद को डिफेंड करने के चक्कर में भाजपा ध्रुवीकरण करने में पीछे रह गई. चूंकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही भाजपा का आखिरी चुनावी हथकंडा होता है लिहाजा इस चुनाव में उसे इसकी कीमत झेलनी पड़ेगी.
क्या नोटबंदी वास्तव में इस चुनाव में कोई मुद्दा है, इस सवाल पर गोरखपुर के वैश्य समुदाय में एक सहमति है. एक स्थानीय कारोबारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘सभी को नोटबंदी से दिक्कत हुई है. भाजपा का प्रत्याशी अग्रवाल है. तीन बार से विधायक हैं. हमें उन्हें वोट देने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्होंने 15 साल में कोई काम नहीं करवाया. हम उन्हें वोट देंगे तब भी वे हार जाएंगे.’
तीन बार के विधायक और सदर से भाजपा प्रत्याशी डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल की बेचैनी का आलम ये है कि पिछले दो सप्ताह में उन्होंने कथित रूप से 60 लाख रुपये विज्ञापन पर खर्च कर डाले हैं. एक स्थानीय अखबार के मार्केटिंग मैनेजर बताते हैं, ‘इतना पैसा किसी और दल ने खर्च नहीं किया. खबरें रुकवाने और खबरें चलवाने के लिए अग्रवाल ने पैसे दिए हैं.’ कुछ दिन पहले शहर में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें प्रचार के दौरान अग्रवाल को स्थानीय औरतों ने दौड़ा लिया था. मौके पर मौजूद एक स्थानीय अखबार के संवाददाता ने जब अपने यहां इस संबंध में खबर चलाई तो उसे रोक दिया गया क्योंकि आखिरी मौके पर अग्रवाल का फुल पेज विज्ञापन सभी अखबारों को मिल गया.
पैसा, ध्रुवीकरण, रैलियां, स्टार प्रचारक- अब तक कुछ भी भाजपा के काम नहीं आया है. असली इम्तिहान 4 मार्च को होना है. सिन्हा कहते हैं कि बहुत संभव है शहर की सीट भाजपा अगर मैनेज कर भी ले गई तो बाकी सीटों पर उसकी हार सुनिश्चित है. गोरखपुर में भाजपा की हार योगी की हार होगी. योगी की हार का मतलब है सांप्रदायिकता और तानाशाही के गढ़ तथा संगठन में और दरारें. इसका मतलब बिलकुल साफ़ है – 2019 भाजपा का द्रोहकाल साबित होगा. फिलहाल, गोरखपुर में इसकी नींव पड़ती साफ़ दिख रही है.