TwoCircles.net Staff Reporter
नई दिल्ली : राजस्थान के अजमेर दरगाह में हुए ब्लास्ट मामले में पूरे 9 साल के बाद आज जयपुर के राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के मामलों की स्पेशल कोर्ट ने असीमानंद समेत सात आरोपियों को बरी कर दिया, वहीं तीन आरोपियों देवेंद्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को इस मामले में दोषी पाया है. दोषी पाए गए अभियुक्तों में से सुनील जोशी की मृत्यु पहले ही हो चुकी है.
यह ब्लास्ट 11 अक्टूबर 2007 को रमज़ान के महीने में इफ़्तार के समय शाम क़रीब 6:15 बजे हुआ था. इस ब्लास्ट में 3 लोगों की मौत हुई थी, वहीं 20 लोग गंभीर रुप से घायल हुए. ब्लास्ट के लिए दरगाह में दो रिमोट बम प्लांट किए गए थे, लेकिन इनमें से एक ही फटा था.
इस मामले में दोषी क़रार पाए देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल को एनआईए कोर्ट आगामी 16 मार्च को सज़ा सुनाएगी. ये दोनों दोषी आरएसएस के सदस्य हैं. बचाव पक्ष के वकील जगदीश एस. राणा के मुताबिक़ कोर्ट ने स्वामी असीमानंद समेत हर्षद सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, मेहुल कुमार, भरत भाई जैसे सात लोगों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. वहीं देवेंद्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को आईपीसी की धारा-120 बी, 195 और धारा-295 के अलावा विस्फोटक सामग्री क़ानून की धारा-3:4 और गैर-क़ानूनी गतिविधियों का दोषी पाया है.
बताते चलें कि अदालत ने इस मामले की अंतिम बहस 6 फ़रवरी को सुनने के बाद 25 फ़रवरी को फैसला सुनाने की तारीख तय की थी, लेकिन बाद में अदालत ने 8 मार्च को फैसला सुनाने का फैसला किया था.
गौरतलब है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओेर से 149 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गए, 442 दस्तावेज़ी साक्ष्य पेश किए गए, लेकिन अदालत में गवाही के दौरान 24 से अधिक गवाह अपने बयानों से मुकर गए थे. बचाव पक्ष की ओर से दो गवाह पेश किए गए. इस मामले में कुल 14 लोगों को आरोपी बनाया गया. 8 आरोपी 2010 से न्यायिक हिरासत में हैं. एक आरोपी रमेश गोविल को ज़मानत मिलने के बाद मौत हो गई थी, जबकि एक और आरोपी सुनील जोशी की दिसम्बर 2007 में मध्य प्रदेश में हत्या कर दी गई थी. हालांकि इस मामले में चार आरोपी रमेश वेंकटराव, संदीप डांगे, रामजी कलसांगरा और सुरेश नायर अभी भी फ़रार हैं.
राज्य सरकार ने मई 2010 में इस मामले की जांच राजस्थान पुलिस की एटीएस शाखा को सौंपी थी. बाद में केंद्र ने इस मामले को एक अप्रैल 2011 को एनआईए को सौंप दिया था. चार्जशीट में असीमानंद को मास्टर माइंड बताया गया था. असीमानंद और छह अन्य पर हत्या, साज़िश रचने, बम लगाकर धमाका करने और घृणा फैलाने का आरोप लगाया गया था.
स्पष्ट रहे कि असीमानंद कई अन्य बम ब्लास्ट के मामले में भी आरोपी है, जिसमें हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 2007 में ब्लास्ट और उसी साल समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट शामिल है जिसमें लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी.
असीमानंद को 19 नवंबर 2010 को उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया. साल 2011 में उसने मजिस्ट्रेट को दिए इक़बालिया बयान में कहा था कि अजमेर की दरगाह, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और अन्य कई स्थानों पर हुए बम विस्फोटों में उनका और दूसरे हिंदू चरमपंथियों का हाथ था. लेकिन बाद में वो अपने बयान से पलट गया और इसे एनआईए के दबाव में दिया गया बयान बताया था. साल 2014 में भी असीमानंद ने ‘दि कारवां’ पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वर्तमान सरसंघ चालक मोहन भागवत समेत आरएसएस के पूरे शीर्ष नेतृत्व ने चरमपंथी हमले के लिए हरी झंडी दी थी. हालांकि असीमानंद ने इसका खंडन किया लेकिन पत्रिका ने उसके इंटरव्यू का ऑडियो टेप जारी किया था. असीमानंद 1990 से 2007 के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम के प्रांत प्रचारक प्रमुख रहा है. यहां यह भी स्पष्ट रहे कि समझौता एक्सप्रेस धमाका मामले में अगस्त 2014 में ही असीमानंद को ज़मानत मिल गई थी.