आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
सहारनपुर: जनपद की राजनीति में अब काफी ताकतवर हो चुके इमरान मसूद फिर हार गए. इस बार उन्हें 90 हजार वोट मिले. वो नकुड़ विधानसभा से भाजपा के धर्म सिंह सैनी से लगभग 4 हज़ार वोट से हार गए. पिछले चुनाव में भी उन्हें धर्म सिंह सैनी ने ही हराया था, तब उन्हें 80 हज़ार वोट मिले थे.
इमरान मसूद के भाई नोमान भी चुनाव हार गए. उनको भाजपा के प्रदीप चौधरी ने हराया. पहले प्रदीप चौधरी कांग्रेस से विधायक थे. नोमान को 61 हजार वोट मिले और वो दूसरे नम्बर पर रहे. यहां कांग्रेस को 5 और सपा को 2 सीट मिली थी, जिनमें से 3 पर ही जीत मिली.
इमरान बेशक चुनाव हार गए मगर मुश्किल हालात में भी वे कांग्रेस की 7 में से दो सीटें जिता ले गए हैं, जिसकी वजह से उनका कद बढ़ गया है.
2014 लोकसभा चुनाव में इमरान मसूद ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ललकार दिया था. एक गांव में चुनाव प्रचार के दौरान उनका मोबाइल फोन से वीडियो बना लिया गया और वीडियो वायरल हो गया था. इमरान की हेटस्पीच पर तुरंत राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रतिक्रिया दी और यह चुनावी मुद्दा बन गया. इमरान के खिलाफ मुक़दमा दर्ज़ हो गया और जेल भेज दिए गए.
जिस समय इमरान मसूद जेल में थे तब भी राहुल गांधी उनका चुनाव प्रचार करने पहुंचे. इमरान को 4 लाख से ज्यादा वोट मिले, फिर भी वे चुनाव हार गए. इमरान मसूद को इससे पूरे भारत मे प्रचार मिला और नरेंद्र मोदी तक ने एक सभा मे उनका जिक्र कर दिया. एक विवाद ने इमरान की कट्टर छवि बना दी जो उनके राजनीतिक जीवन से बिल्कुल इतर थी.
इमरान पहली बार चर्चा में तब आये थे जब उन्होंने मुजफ्फराबाद विधानसभा से जीते और कैबिनेट मंत्री रहे जगदीश राणा को अपनी ही पार्टी से बग़ावत कर हरा दिया था. इमरान तब समाजवादी पार्टी में थे और यहां से टिकट मांग रहे मगर जगदीश राणा मुजफ्फराबाद से विधायक और मंत्री थे. मुलायम सिंह यादव ने जगदीश राणा का टिकट काटने से इनकार कर दिया. आश्चर्यजनक रूप से इमरान ने पार्टी से बग़ावत कर दी और निर्दलीय पर्चा भर दिया. इमरान मुजफ्फराबाद (अब बेहट) से विधायक बने और जश्न सहारनपुर में मना. राजनीतिक हलके को उनकी ताक़त का अहसास हो गया था.
2014 में पहले उन्हें समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था मगर उनके चाचा पूर्व केंद्रीय मंत्री क़ाज़ी रसीद मसूद ने पुत्र मोह में उनके साथ भितरघात करते हुए उनका टिकट कटवाकर अपने पुत्र शादान को प्रत्याशी बनवा दिया. पूरी ताकत लगाने के बावजूद इमरान को शादान से 8 गुना ज्यादा वोट मिले. शादान 50 हजार पर सिमट गए मगर इतने ही वोटों से इमरान सांसद नहीं बन सके. 5 साल बसपा शासन में इमरान मसूद ने पहले सहारनपुर से ही विधायक रहकर मुख्यमंत्री बनी मायावती का पूरी ताक़त से विरोध किया और 2012 में पूरे जिले में बढ़िया असर होने के बावजूद नेता जी से टिकट वितरण को लेकर उनकी बात बिगड़ गयी. वो कांग्रेस में चले गए और सहारनपुर में मरी पड़ी कांग्रेस पार्टी को ज़िंदा कर दिया.
जिले में कांग्रेस को दो विधायक मिले हैं जबकि समाजवादी पार्टी, जिसमें पास एक भी नहीं था, को भी एक विधायक मिल गया है. इमरान कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाये गए और राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खाट सभा और सभी रोड शो में शिरकत की. इमरान अपनी वर्तमान छवि के विपरीत बिल्कुल भी साम्प्रदायिक नहीं है. इसका अंदाज़ इसी बात से लग जाता है कि मुकेश चौधरी, नरेश सैनी और विश्वदयाल छोटन के टिकट के लिए जी जान लगा रहे थे और अब नरेश सैनी जीत भी गए हैं, जबकि छोटन को 61 हजार वोट मिले. सहारनपुर के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस में इमरान मसूद के कद और उनकी राजनीति को लेकर यह बात हो रही है कि इमरान ने खुद को साबित किया है.