TwoCircles.net Staff Reporter
नई दिल्ली : एक बार फिर से मदरसों के आधुनिकीकरण व उन्हें शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के दायरे में लाने की बहस तेज़ हो गई है.
इस बार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को भी आरटीई के तहत मिलने वाली सुविधाएं देने की सिफ़ारिश की है. आयोग ने देश के मदरसों में आधुनिक शिक्षा की पैरवी करते हुए कहा है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को भी आरटीई क़ानून के तहत मिलने वाली यूनिफॉर्म, किताबें और मिड डे मील जैसी सुविधाएं हासिल हों.
आयोग ने ये सिफ़ारिश बुधवार को दिल्ली के कुछ मदरसों के बच्चों व शिक्षकों के चल रहे परामर्श कार्यक्रम के दौरान की. इस कार्यक्रम के दौरान मदरसों में आधुनिक शिक्षा का पुरजोर तरीक़े से समर्थन किया गया.
आयोग ऐसी ही सिफ़ारिश इससे पहले 01 मार्च को झारखंड में भी कर चुकी है. इस कार्यक्रम में आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा था कि केंद्र सरकार की मदद से एनसीपीसीआर झारखंड के गैर-निबंधित मदरसों की मैपिंग कराने जा रही है, ताकि मदरसों में अध्ययनरत बच्चे भी राष्ट्रीय फ़लक पर आ सकें और जनगणना में उनकी गणना ड्रापआउट बच्चों में न हो. फिर इन्हें आरटीई के दायरे में लाने की पहल की जाएगी.
ग़ौरतलब रहे कि मदरसों के आधुनिकीकरण की बहस काफी पुरानी है. पिछले सरकार में भी मदरसों को आरटीई के दायरे में लाने की कोशिश की गई, लेकिन मदरसे से जुड़े कुछ लोगों ने इसका विरोध किया. सवाल उठाया गया कि क्या मदरसों के आधुनिकीकरण की कड़ी में मज़हबी शिक्षा को गौण नहीं कर दिया जाएगा? दारुल उलूम देवबंद ने भी आरटीई का विरोध करते हुए कहा था कि मदरसों व दीगर अल्पसंख्यक इदारों की सम्प्रभुता पर असर पड़ेगा और इससे मदरसों का अधिकार छिन जाएगा. अल्पसंख्यक समुदाय के इसी विरोध व आशंकाओं को दूर करने के लिए 2011 में केन्द्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने आरटीई में संशोधन करके मदरसों समेत अल्पसंख्यक संस्थानों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा.
वहीं 3 दिन पहले अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया है कि अल्पसंख्यक दर्जे वाली शैक्षिक संस्थाओं पर आरटीई एक्ट लागू नहीं होगा. कारण, अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों की हिफ़ाज़त संविधान करता है. ये आदेश मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर और न्यायाधीश एम.एस. सोनक की खंडपीठ ने जारी किया है. इस खंडपीठ ने साफ़ तौर पर कहा कि अब इस आरटीई एक्ट के तहत किसी भी स्टूडेंट को भर्ती करने के लिए अल्पसंख्यक संस्थाओं पर दबाव नहीं डाला जा सकता.