आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
बिजनौर : यूपी के बिजनौर में मुसलमान हमेशा से प्रभावशाली रहा है. इसे दलितों व मुस्लिमों के एकता की नर्सरी भी कहा जाता है. 2007 में यहां से सभी बसपा विधायक जीत गए, जिनमें 3 मुस्लिम विधायक थे. 2012 में बसपा से दो विधायक बने.
मुसलमानों के दबदबे का अंदाज़ा यहां पिछले नगर पंचायत चुनाव में हुआ. यहां कुल 18 नगर पंचायत हैं, जिनमें 17 मुस्लिम चेयरमैन बने. सिर्फ़ हल्दौर जैसी एक छोटी नगर पंचायत से आपसी टकराव में मुसलमान चेयरमैन बनते बनते रह गया.
इसी तरह जनपद की पंचायत व्यवस्था पर भी मुस्लिमों का प्रभाव रहा है. 60 फ़ीसद से ज्यादा हिस्सेदारी इन ग्राम प्रधानों में मुसलमानों की रही है. इस सबके साथ यहां मुसलमानों का आत्मविश्वास चरम पर था. मगर 2014 में दिल्ली की सरकार बदली और बिजनौर के मुसलमानों की क़िस्मत भी. भाजपा के कुंवर भारतेंदु सिंह ने 2014 में सपा के शाहनवाज़ राणा को हराकर जीत हासिल की और फिर उसके बाद एक के बाद हुई घटनाओं ने मुसलमानों का वजूद मिट्टी में मिला दिया. इन 3 सालों में हालात बिल्कुल बदल गए हैं.
Twocircles.net ने बिजनौर के कई मुसलमानों से बातचीत की. बात करके पता चला कि कभी चरम पर रहा यहां के मुसलमानों का आत्मविश्वास अब चूर-चूर हो चुका है.
बिजनौर के डॉक्टर दानिश के मुताबिक़, एहसास-ए-कमतरी की इस भावना की शुरुआत लोकसभा चुनाव से हुई, जो अब बहुत ज्यादा हो गई है.
अब्दुल रहमान कहते हैं कि, पुलिस की मनमर्ज़ी बहुत बढ़ गई है. ख़ासतौर पर मुस्लिम मामलों में यहां अब मुसलमानों का कोई पुरसंहाल नहीं है. अब पेदा को ही देख लो कि कोई नहीं सुन रहा है.
जमील अहमद खान के मुताबिक़ मुसलमानों ने आपसी रंजिश में खुद को इस हालात में पहुंचा दिया है. अब किसी को क्यों दोष दें. यह सच है कि यहां का मुसलमान डर गया है.
जुबैर अहमद के मुताबिक़ सभी नेता आपस में विरोधी हैं. क़ारी अनवारुल हक़ को अपनो ने ही फंसवा दिया. विरोधी तो बस मौक़े का फ़ायदा उठा रहे हैं.
पिछले 2 सालों में हुए इन 5 घटनाओं ने ज़मीदोज़ किया मुसलमानों का आत्मविश्वास
—सितम्बर 2014
मध्यप्रदेश की खंडवा जेल से फ़रार संदिग्ध कथित तौर पर बिजनौर में छिपकर रह रहे थे. यहां किराये के एक मकान में एक ब्लास्ट हुआ, जिससे ये कहानी प्रकाश में आया. उनकी सहायता करने के आरोप में पुलिस ने दो महिलाओं सहित 5 लोगों को गिरफ़्तार किया. साथ ही बाद में खंडवा जेल से फ़रार होने वाले कुछ कथित आतंकियो को मार गिराने की ख़बर आई. इनमें से कुछ बिजनौर कनेक्शन वाले भी थे. इस घटना ने बिजनौर की छवि राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित की. बिजनौर बदनाम हुआ और मुसलमानो में डर पैदा हुआ.
—अप्रैल 2016
एनआईए के सीओ तंज़ील अहमद की सहसपुर में ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर पत्नी सहित हत्या कर दी गई. तंज़ील अहमद पठानकोट हमले की जांच कर रहे थे. इस हत्याकांड ने सुरक्षा एंजेसियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी. इस हमले के आतंकी कनेक्शन पर खूब बात हुई. भटकल तक पर शक गया. हालांकि बाद में एक स्थानीय अपराधी मुनीर के ज़रिए उनके क़त्ल क़बूल करने की कहानी सामने आई.
—सितम्बर 2016
शहर कोतवाली के गांव पेदा की लड़की के साथ स्कूल जाते समय छेड़छाड़ हुई. विरोध पर नाश्ते कर रहे कमज़ोर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर घेर कर गोलियों से भून दिया गया. 4 लोगों की मौक़े पर मौत हो गई. अब दबंग हमलावर और पुलिस दोनों मिलकर आपसी फैसला कर लेने का दबाव बना रहे हैं. नहीं मानने पर पुलिस यहां के लोगों खासतौर पर औरतों को परेशान कर रही है. नतीजे में गांव से मुसलमान पलायन कर रहे हैं.
—अक्टूबर 2016
यहां की बड़ी मस्जिद के इमाम और चर्चित धार्मिक नेता क़ारी अनवारुल हक़ के विरुद्ध बलात्कार का मुक़दमा दर्ज किया गया. उन्होंने अपने ऊंचे रसूख का हवाला देते हुए एसपी के स्टार उतरवाने की धमकी दे दी. यह मुक़दमा आपसी खींचतान में लिखा गया था और षंड्यंत्र साफ़-साफ़ दिखता था. अनवारुल हक़ को शहर का मुसलमान नेता मानने लगा था, मगर उन्हें जेल जाना पड़ा. वो अभी भी जेल में हैं. इस घटना से मुसलमानों के वक़ार को काफ़ी चोट लगी.
—अप्रैल 2017
यूपी एटीएस ने बिजनौर में कई जगह छापामारी करके 5 लोगों को हिरासत में लिया, जिनमें मस्जिद के इमाम, मुवज्ज़िन और मदरसे में पढ़ने वाला एक नाबालिग़ छात्र भी था. बाद इन सभी को छोड़ दिया गया. मगर तब यहां का मीडिया इनका चरित्र हनन कर चुका था और बिजनौर को आतंक की नर्सरी का नाम दिया जा चुका था.