TwoCircles.net News Desk
नई दिल्ली : रमज़ान का पवित्र महीना शुरु हो चुका है. इस्लामी कैलेंडर का यह नवां महीना वास्तव में अपने साथ अनेकों रहमत व बरकत लेकर आता है. दुनिया भर के मुसलमान बेचैनी से इसकी प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इस महीने में किए गए एक काम के बदले खुदा बंदे को सत्तर नेकियां देता है. लेकिन इस बार यह महीना रोज़ेदारों के भूख, प्यास और सब्र का कड़ा इम्तिहान लेगा.
34 साल बाद जून के ठेठ गर्मी में रमज़ान का ये बरकत वाला महीना आया है. इस बार रमज़ान का कोई भी रोज़ा 15 घंटे से कम का नहीं होने वाला है.
बताते चलें कि 1983 में रमज़ान का ये महीना जून में पड़ा था और उस दौरान भी सारे रोज़े 15 घंटे के ऊपर रहे थे. लेकिन इस बार का रोज़ा 1983 के रोज़ों से 22 मिनट से ज़्यादा के होंगे. पहला रोज़ा 15 घंटे 28 मिनट का होगा, जो 21-22 जून को 14 घंटे 36 मिनट तक हो जाएगा. (यह अवधि अलग-अलग जगहों पर घट-बढ़ सकती है) इससे पहले 1949 के रोज़े भी जून महीने में ही पड़े थे.
ग्रीनलैंड में 21 घंटे का रोज़ा
भारत और बांग्लादेश में रोज़ा पन्द्रह घंटे का होगा, लेकिन पाकिस्तान में इसकी अवधि एक घंटे ज़्यादा होगी. लंदन में साढ़े 18 घंटे का रोज़ा है. तो वहीं सबसे लंबी अवधि का रोज़ा 21 घंटे का ग्रीनलैंड में होगा.
रोज़ा किन पर फर्ज़ है…?
रमज़ान के रोज़े हर मुसलमान पर (चाहे मर्द हो या औरत) फर्ज़ है, अगर उनमें यह शर्ते मिलती हैं-
1. जो शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ हो.
2. जो बालिग़ (व्यस्क) हो. लेकिन 14 वर्ष के बच्चों को रोज़ा रखने पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वो बालिग़ होते-होते पूरी अभ्यस्त हो जाएं.
3. सफ़र की हालत न हो, अपने शहर, अपने फार्म, अपने कारखाने और अपने घर में निवास हो.
4. यह स्पष्ट रुप से निश्चित हो कि रोज़ा कोई क्षति नहीं पहुंचाएगा, न शारिरीक, न मानसिक. (भूख-प्यास इसमें शामिल नहीं है)
रोज़ा जिन पर फर्ज़ नहीं…
इन लोगों पर रोज़ा फर्ज़ नहीं है-
1. बच्चे, जो नाबालिग़ हों.
2. ऐसे मानसिक रोगी या पागल जिनके किसी कार्य पर कोई पकड़ नहीं.
3. वे मर्द और औरतें, जो इतने बूढ़े और कमज़ोर हों कि रोज़ा रखने में समर्थ ही न हों. ऐसे लोगों को क़ज़ा तो नहीं भरना है, लेकिन इसके बदले में एक मोहताज गरीब मुसलमान को पूरे दिन का पेट भर खाना या उसकी क़ीमत चुकानी होगी.
4. ऐसे बीमार, जिनकी बीमारी रोज़ा रखने से प्रभावित हो सकती है, ऐसे लोग बीमारी की हालत में रोज़ा न रखे, तो कोई हरज नहीं, लेकिन बाद में इन्हें क़ज़ा अदा करना पड़ेगा.
5. ऐसे मुसाफिर, जो लगभग 50 मील या उससे अधिक का सफर कर रहे हों. ऐसी स्थिति में जब तक सफर चल रहा हो, रोज़ा न रखने की छूट है.
6. ऐसी औरतें, जिनके बच्चे बहुत छोटे और दूध पीते हों, वे भी रोज़ा क़ज़ा कर सकती हैं.
7. वे औरतें, जिन्हें मासिक धर्म आता हो (अधिक से अधिक दस दिन) और वे औरतें जो प्रसूति-गृह में हों, ऐसी सभी औरतों पर निश्चित अवधि तक रोज़ा माफ है.
रमज़ान के रोज़े जान-बूझकर खाने-पीने या धूम्रपान करने से टूट जाता है. संभोग से भी रोज़ा टूट जाता है. अगर ऐसा कोई करे तो सज़ा के तौर पर उसे साठ दिन के लगातार रोज़े रखने पड़ेंगे या फिर उसे एक दिन के रोज़े के बदले में साठ गरीबों को पेट भर खाना खिलाना होगा.
रोज़ा रखने की दुआ… (सहरी के समय)
“बेसौमे ग़दिन नवैतो मिन शहरे रमज़ान”
अनुवाद- मैंने रमज़ान के महीने के रोज़े की नियत की.
रोज़ा खोलने के वक़्त की दुआ… (इफ्तार के समय)
“अल्लाहुम-म ल-क सुम्तो व बे- क आमन्तो व अलै- क तवक्कलतो व अला रिज़्क़ि- क अफ्तरतो”
अनुवाद- ऐ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तुझ पर ईमान लाया और तुझ पर भरोसा किया और तेरी दी हुई रोज़ी से इफ्तार किया.